मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
--
--
--
--
उतारकर सब नग, मुहब्बत पहनो
मज़ा आने लगा है जीने में।
मैकदे की तरफ़ भेजा था जिसने
बुराई दिखती है अब उसे पीने में।
हवाओं का रुख देखा नहीं था
क़सूर निकालते हैं सफ़ीने में।
रुत बदली दिल का मिज़ाज देखकर
आग लगी है सावन के महीने में।
उतारकर सब नग, मुहब्बत पहनो
देखो कितना दम है इस नगीने में।
जीने लायक़ सब कुछ है यहाँ पर
क्या ढूँढ़ रहे हो ‘विर्क’ दफ़ीने में।
साहित्य सुरभि
--
--
--
मकतब -ए-इश्क का दस्तूर निराला देखा ,
उसको छुट्टी न मिली ,जिसने सबक याद किया।
(ये भाईसाहब पाठशाला इश्क की है
यहां तो हाल ये हैं -इश्क पे ज़ोर नहीं ये वो आतिश ग़ालिब ....
बोझ वो सर पे गिरा है के उठाये न उठे ...)
Virendra Kumar Sharma
--
यादें
यादों का ये कैसा जाना-अनजाना सफ़र है,
भरी फूल-ओ-ख़ार से आरज़ू की रहगुज़र है ...
कविता मंच पर
Ravindra Singh Yadav
--
--
--
--
--
यमक और रूपक अलंकार
*यमक अलंकार - जब एक शब्द, दो या दो से अधिक बार अलग-अलग अर्थों में प्रयुक्त हो*। *दोहा छन्द* - (1) मत को मत बेचो कभी, मत सुख का आधार लोकतंत्र का मूल यह, निज का है अधिकार ।। (2) भाँवर युक्त कपोल लख, अंतस जागी चाह भाँवर पूरे सात लूँ, करके उससे ब्याह ।। *रूपक अलंकार - जब उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाए अर्थात उपमेय और उपमान में कोई अंतर दिखाई न दे...
शुभ प्रभात
ReplyDeleteआभार
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteउम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति चर्चामंच की । सादर आभार।
ReplyDeleteसुंदर चर्चा
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय
सुंदर प्रस्तुति चर्चामंच की । सादर आभार। www.hindiarticles.com
ReplyDeletewww.hindiarticles.com
ReplyDelete