मित्रों!
चर्चा मंच पर प्रतिदिन अद्यतन लिंकों की चर्चा होती है।आश्चर्य तो तब होता है जब वो लोग भी चर्चा मंच पर
अपनी उपस्थिति का आभास नहीं कराते है,
जिनके लिंक हम लोग परिश्रम के साथ मंच पर लगाते हैं।
अतः आज के बाद ऐसे धुरन्धर लोगों के ब्लॉग का लिंक
चर्चा मंच पर नहीं लगाया जायेगा।
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रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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एक ग़ज़ल :
छुपाते ही रहे अकसर---
छुपाते ही रहे अकसर ,जुदाई के दो चश्म-ए-नम
जमाना पूछता गर ’क्या हुआ?’ तो क्या बताते हम...
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आपको लोग नाम से जानते हैं
कि घर के नंबर से ?
...समय काफी बदल गया है; गंगा में बहुत सा पानी बह चुका है जो अपने साथ-साथ लोगों की आँख का पानी भी बहा कर ले गया है ! अब तो मौहल्ले, कालोनी को छोड़िए लोग अपने पड़ोसी तक को पहचानने से गुरेज करने लगे हैं ! आस-पड़ोस के लोगों की पहचान भी घरों के नंबर से होने लगी है, किसी से पूछिए मल्होत्रा जी कहाँ रहते है तो छूटते ही उलटा पूछेगा, कौन 312 वाले ? जो गंजे से हैं ? किसी कालोनी में जा किसी बच्चे से कोई पूछे कि शर्मा जी को जानते हो तो पलट कर वही पूछेगा, घर का नंबर क्या है...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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एक रोज।।
एक रोज छुपा दूंगा सारे लफ्ज तुम्हारे
और तुम मेरी खामोशी पर फिसल जाओगी!!
देखता हूँ कब तलक छुपी रहोगी मुझसे
एक दिन अपनी ही नज्म से पिघल जाओगी...
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महाशाप...
किसी ऋषि ने
जाने किस युग में
किस रोष में
दे दिया होगा
सूरज को महाशाप
नियमित, अनवरत, बेशर्त
जलते रहने का
दूसरों को उजाला देने का...
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
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सिक्के मुस्कराहटों के
मैंने टांक दिया है आज
फ़िर तेरे खामोश लिबास पे
हँसी की जेब को
जिसमें कुछ सिक्के भी
रख छोड़े हैं मुस्कराहटों के
जो तुम्हें चाह कर भी
खिलखिलाने से नहीं रोक पाएंगे !!
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स
आभार
सादर
बढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रविवारीय अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स एवं प्रस्तुति .... आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स... आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंको का संयोजन. सादर
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