मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शुभ काज को छोड़ अकाज करें ,
कछु लाज न आवत है इनको ,
एक रांड बुलाय नचावत हैं ,
घर को धन -धान लुटावन को
Virendra Kumar Sharma
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थकन
बहुत थक गयी हूँ मेरे जीवन साथी !
जीवन के इस जूए में
जिस दिन से मुझे जोता गया है
एक पल के लिए भी
गर्दन बाहर निकाल लेने का
मौक़ा ही कहाँ मिला है मुझे !
चलती जा रही हूँ चलती जा रही हूँ
बस चलती ही जा रही हूँ
निरंतर, अहर्निश, अनवरत...
Sudhinama पर sadhana vaid
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अपरिचित नींद
नींद भी आज कल कुछ ख़फ़ा ख़फ़ा हो
अपरिचित बेगानी सी रहती हैं
पलकों की खुशामदी दरकिनार कर
आँखों से कोसों दूर रहती हैं...
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मधुर झंकार
एकांत पलों में
जाने कब मन वीणा की
हुई मधुर झंकार
कम्पित हुए तार
सितार के मन लहरी के
पर शब्द रहे मौन
जीवन गीत के...
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शुभप्रभात आदरणीय,
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं पठनीय रचनाएँ है आज के अंक की।मेरी रचना को मान देने के लिए हृदय से आभार।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअप्रतिम
आभार
सादर
बहुत सुन्दर सूत्र आज की चर्चा में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका ह्रदय से आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंसभी पोस्टस अच्छी है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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