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शुक्रवार, अक्टूबर 06, 2017

"भक्तों के अधिकार में" (चर्चा अंक 2749)

मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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अपने रूदन और क्रदन से.... 

रश्मि वर्मा 

सामर्थ्य नहीं अब शब्दों में 
कहना कुछ भी है व्यर्थ तुम्हें... 
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal  
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थकन 

बहुत थक गयी हूँ मेरे जीवन साथी ! 
जीवन के इस जूए में 
जिस दिन से मुझे जोता गया है 
एक पल के लिए भी 
गर्दन बाहर निकाल लेने का 
मौक़ा ही कहाँ मिला है मुझे ! 
चलती जा रही हूँ चलती जा रही हूँ 
बस चलती ही जा रही हूँ 
निरंतर, अहर्निश, अनवरत... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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अपरिचित नींद 

नींद भी आज कल कुछ ख़फ़ा ख़फ़ा हो 
अपरिचित बेगानी सी रहती हैं 
पलकों की खुशामदी दरकिनार कर 
आँखों से कोसों दूर रहती हैं... 
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL 

छूटे हुए पल 

कहीं कुछ छूट जाता है जब न 
समेट पाने की वजह से नहीं, 
बल्कि जानबूझकर छोड़ दिया जाता है... 
अन्तर्गगन पर धीरेन्द्र अस्थाना  
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मधुर झंकार 

एकांत पलों में 
जाने कब मन वीणा की 
हुई मधुर झंकार 
कम्पित हुए तार 
सितार के मन लहरी के 
पर शब्द रहे मौन 
जीवन गीत के... 
Akanksha पर Asha Saxena  
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पुरानी टी शर्ट 

अर्चना चावजी Archana Chaoji  

6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात आदरणीय,
    सुंदर एवं पठनीय रचनाएँ है आज के अंक की।मेरी रचना को मान देने के लिए हृदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात
    अप्रतिम
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सूत्र आज की चर्चा में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका ह्रदय से आभार शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं

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