मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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भ्रम रोमांचित करता है
जब किसी की नई नई तोंद निकलना शुरू होती है तो वो बंदा बड़े दिनों तक डिनायल मोड में रहता है. वह दूसरों के साथ साथ खुद को भी भ्रमित करने की कोशिश में लगा रहता है. कभी टोंकते ही सांस खींच लेगा और कहेगा कहाँ? या कभी कहेगा आज खाना ज्यादा खा लिया तो कभी कमीज टाईट सिल गई जैसे बहाने तब तक बनाता रहता है जब तक कि तोंद छिपाए न छिपे...
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कागज में लिखा चाँद
कुछ कागज में लिखी स्मृतियाँ
कुछ में सपने कुछ में सुख कुछ में दुख
कुछ में लिखा चाँद
चांद रोटियों की शक्ल में ढल गया ...
Jyoti Khare
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गुरु - गुरुदेव - गुरुघंटाल
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgC3QUvecwWLLJXpVo51j890j9vx1LwCBYl4XAuNtpfghUa1ncjevhZXZdlgiiDcl1hVgC0_h7hup2JpRhZso6Y4w52cFxk_OvGpNN2sbEkCjHXGDnZBF51Tv3zoWPWcAIwYPz2dUuHEe1G/s400/2017_2image_10_13_231639240baba-ll+%25281%2529.jpg)
ढोंगी बाबाओं के आश्रमों का मकड़जाल इस लेख का मकसद उन सच्चे गुरुओं और उनके द्वारा संचालित आश्रमों का अपमान करना बिलकुल नहीं है जो अपनी निस्वार्थ सेवा से जनता का भला कर रहे हैं ! प्रयत्न यह है कि उन कारणों को समझा जाए जिनकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में लोग अनेक कपटी बाबाओं के जाल में फँसते चले जाते हैं ...
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सदियों से इन्सान यह सुनता आया है /
साहिर लुधियानवी
सदियों से इन्सान यह सुनता आया हैदुख की धूप के आगे सुख का साया हैहम को इन सस्ती ख़ुशियों का लोभ न दोहम ने सोच समझ कर ग़म अपनाया है...
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रनर
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnq0zLOOQcp09LlzOUBs0rzV5lZV3bVoZULSXeAVJD3yNxNNgJXUuMy-S3i4L-Dt6yrwAu1HcaEI9B7KjyrZF8mz5suFnavHbOhRptdUgYeYCsMUH7KjHosUKZKCD_l0nwk8h7NkCsVv4/s320/neel+kalam.jpg)
"नवरंग" के वार्षिकांक (2017) में प्रकाशित कहानी ‘रनर’- पूंजीवाद चुनाव तंत्र के उस रूप से साक्षात्कार कराती है जिसमें चुनाव प्रक्रिया एक ढकोसला बनती हुई दिखती है। नील कमल मूलत: कवि है, और ऐसे कवि हैं जिनकी निगाहें हमेशा अपने आस पास पर चौकन्नी बनी रहती हैं। कहानी एवं उनके आलोचनात्मक लेखन पर भी यह बात उतनी ही सच है। यह भी प्रत्यक्ष है कि उनकी रचनाओं की प्रमाणिकता एक रचनाकार के मनोगत आग्रहों से नहीं, बल्कि वस्तुगत स्थिति के तार्किक विश्ले षण के साथ अवधारणा का रूप अख्तियार करती है...
लिखो यहां वहां पर विजय गौड़
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hindime पर Faiyaz Ahmad
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ऐ जाग जाग मन अज्ञानी
ये जग है माया की नगरी
अभिमान न कर
खल-लोभ न कर...
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गीत "आँखों के बिन जग सूना है"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgF2aCQBhX5VOIodJGb3gkNUqX9MsbkaLN-x223nw0DUG2LUvBPbpKu_9V4EL7gyA8rste7W8x73Z0edQSMzyX6tz697wVGgMwvW-GZMQ6t7IDJWHKdQKZP1utG_8BLki9w1-yIz8KLRxar/s640/080_.jpg)
शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंआभार...
सादर
very nice presentation.thanks
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सोमवारीय चर्चा।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंशुभ रात्रि, बहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंशुभ रात्रि, बहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअग्रज सुंदर सूत्र संयोजन के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंमुझे सम्मलित करने का आभार
सभी रचनाकारों को बधाई
सादर