मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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चिन्तक
साहित्यकारों में कोई कहानीकार होता है, कोई व्यंग्यकार होता है, कोई गीतकार होता है. माननीय स्वयं को चिन्तक बताते हैं. लोग भूलवश उनका परिचय मात्र साहित्यकार के रूप में दे देते हैं तो वह स्वयं माइक पर जाकर भूलसुधार करवाते कि बताइये सबको कि मैं मूलतः चिन्तक हूँ एवं यही मेरी साहित्य साधना का मूल है. चिन्तन करते करते वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि लोगों में साहित्यिक चेतना विकसित करना उनके अन्य चिन्तन कार्यों में व्यवधान डाल रहा है अतः उन्होंने अपना तखल्लुस ही चिन्तक रख लिया. राधे श्याम तिवारी ‘चिन्तक’. चिन्तक हैं तो विभिन्न विषयों पर चिंता स्वाभाविक है. आज उनसे जब उनकी चिंता का विषय जानना...
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"वीर हिंदुस्तान के"
(राधेगोपाल)
बिछ गए हैं जो धरा पर वीर हिंदुस्तान के ।
गुनगुनाते हैं सभी अब हम गीत उनकी शान के ।।
अपनी मां का लाडला वह उसका अभिमान था ।
जी रही थी देखकर के देश का वरदान था।।
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वैचारिक विविधता और छठ पर्व पर सुंदर रचनाओं का संकलन। सार्थक चर्चामंच प्रस्तुति। बधाई। सादर।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात मयंक भाई
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत ही सुंदर सार्थक प्रस्तुति। सादर आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शुक्रवारीय अंक। आभार आदरणीय 'उलूक' के पन्ने को भी आज की चर्चा में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चामंच प्रस्तुति। बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक चर्चा...आभार
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