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शुक्रवार, अक्तूबर 20, 2017

"दीवाली पर देवता, रहते सदा समीप" (चर्चा अंक 2763)

मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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चर्चा मंच पर प्रतिदिन अद्यतन लिंकों की चर्चा होती है।
आश्चर्य तो तब होता है जब वो लोग भी चर्चा मंच पर 
अपनी उपस्थिति का आभास नहीं कराते है, 
जिनके लिंक हम लोग परिश्रम के साथ मंच पर लगाते हैं।
अतः आज के बाद ऐसे धुरन्धर लोगों के ब्लॉग का लिंक 
चर्चा मंच पर नहीं लगाया जायेगा।
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शुभ दीपावली !! 

अनुशील पर अनुपमा पाठक 
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जो तेरे साथ बीती,  

ज़िंदगी वही थी 

प्यार भरे दिलों में दीवार उठी थी 
दूर हो गये हम, कैसी हवा चली थी। 

एक मोड़ पर आकर हाथ छूट गया 
भरी दोपहर में एक शाम ढली थी।

महफ़िल में आया जब भी नाम तेरा 
मेरे सीने में एक कसक उठी थी । 

हर बीता दिन गहरे ज़ख़्म दे गया 
दम तोड़ती रही, जो आस बची थी।

दिन तो अब भी कट रहे हैं किसी तरह 
जो तेरे साथ बीती, ज़िंदगी वही थी।

बस यही सोचकर ख़ुश हो लेते हैं हम 
जुदा होकर ‘विर्क’ तुझे ख़ुशी मिली थी।
Sahitya Surbhi पर Dilbag Virk 
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4 टिप्‍पणियां:

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