भावानुवाद (पाब्लो नेरुदा की नोबल प्राइज प्राप्त कविता)
रविकर
जो पुस्तकें पढ़ता नहीं,
जो पर्यटन करता नहीं,
अपमान जो प्रतिदिन सहा,
जो स्वाभिमानी ना रहा,
जो भी अनिश्चय से डरे।
तिल तिल मरे, आहें भरे।।
जो जन नहीं देते मदद ,
जो जन नहीं लेते मदद,
संगीत जो सुनता नहीं,
रिश्ते कभी बुनता नहीं,
जो पर-प्रशंसा न करे।
तिल तिल मरे, आहें भरे।।
रोमांच से मुख मोड़ते।
आदत कभी ना छोड़ते।
जो लीक से हटते नहीं।
हिम्मत जुटा डटते नहीं।
वह आपदा कैसे हरे।
तिल तिल मरे आहें भरे।।
जो स्वप्न तो देखे बड़े।
पर हाथ कर देते खड़े।
नाखुश दिखे जो काम से।
चिंतित दिखे परिणाम से
आवेग रखकर वह परे।
तिल तिल मरे आहें भरे।।
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अभिनव
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मुक्तक
रविकर
जद्दोजहद करती रही यह जिंदगी हरदिन मगर।
ना नींद ना कोई जरूरत पूर्ण होती मित्रवर।
अब खत्म होती हर जरूरत, नींद तेरा शुक्रिया
यह नींद टूटेगी नहीं, री जिंदगी तू मौजकर।।
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नयी सुबह
Gopesh Jaswal
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राम भगवान् हैं ,सीता जी भक्ति हैं ,भक्त हनुमान हैं।सीताजी शान्ति का भी प्रतीक हैं।रावण शान्ति भंग करता है।
Virendra Kumar Sharma
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंनोबेल पुरस्कार से सम्मानित पाब्लो नेरुदा की कविता के भावानुवाद के साथ विविध वैचारिक रचनाओं का समागम आज का चर्चामंच। बधाई आदरणीय शास्त्री जी। धन तेरस की शुभकामनाऐं। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी रचना "ख़ाकी" को चर्चामंच में स्थान देने के लिए।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरोमांच से मुख मोड़ते।
जवाब देंहटाएंआदत कभी ना छोड़ते।
जो लीक से हटते नहीं।
हिम्मत जुटा डटते नहीं।
वह आपदा कैसे हरे।
तिल तिल मरे आहें भरे।।
पाब्लो नेरुदा जी की अद्भुत कविता। wahhh
मेरी रचना को स्थान देने के लिये अतुल्य आभार।
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार चर्चा मंच!
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