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मंगलवार, अक्तूबर 17, 2017

भावानुवाद (पाब्लो नेरुदा की नोबल प्राइज प्राप्त कविता); चर्चा मंच 2760

भावानुवाद (पाब्लो नेरुदा की नोबल प्राइज प्राप्त कविता)

रविकर 
जो पुस्तकें पढ़ता नहीं, 
जो पर्यटन करता नहीं, 
अपमान जो प्रतिदिन सहा, 
जो स्वाभिमानी ना रहा,
जो भी अनिश्चय से डरे।
तिल तिल मरे, आहें भरे।।
जो जन नहीं देते मदद , 
जो जन नहीं लेते मदद,
संगीत जो सुनता नहीं, 
रिश्ते कभी बुनता नहीं, 
जो पर-प्रशंसा न करे।
तिल तिल मरे, आहें भरे।।
रोमांच से मुख मोड़ते।
आदत कभी ना छोड़ते।
जो लीक से हटते नहीं।
हिम्मत जुटा डटते नहीं।
वह आपदा कैसे हरे।
तिल तिल मरे आहें भरे।।
जो स्वप्न तो देखे बड़े।
पर हाथ कर देते खड़े।
नाखुश दिखे जो काम से।
चिंतित दिखे परिणाम से
आवेग रखकर वह परे।
तिल तिल मरे आहें भरे।।

किताबों की दुनिया -147 

नीरज गोस्वामी 

हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज ~ 4 

गौतम राजऋषि 

दिवाली में पटाखों की निरर्थकता 

Neeraj Kumar Neer 

सुप्रभातम्! जय भास्करः! २९ :: 

सत्यनारायण पाण्डेय 

अनुपमा पाठक 

अभिनव 

Rahul Singh 

मुक्तक 

रविकर 
जद्दोजहद करती रही यह जिंदगी हरदिन मगर।
ना नींद ना कोई जरूरत पूर्ण होती मित्रवर।
अब खत्म होती हर जरूरत, नींद तेरा शुक्रिया
यह नींद टूटेगी नहीं, री जिंदगी तू मौजकर।।

देह से नाता 

मैं जब इस जीवन से विदा ले चलूंगी 
सोचो, साथ अपने क्या ले चलूंगी?... 
एक बूँद पर pooja 

Queen of Victoria 

नन्ही कोपल पर कोपल कोकास  

नयी सुबह 

Gopesh Jaswal 

राम भगवान् हैं ,सीता जी भक्ति हैं ,भक्त हनुमान हैं। 

सीताजी शान्ति का भी प्रतीक हैं। 

रावण शान्ति भंग करता है। 

Virendra Kumar Sharma 
समाज को सुरक्षा का एहसास, क़ानून की अनुपालना के लिए मुकम्मल मुस्तैद मॉनीटर, मज़लूमों की इंसाफ़ की गुहार , हों गिरफ़्त में मुजरिम-गुनाहगार , हादसों में हाज़िर सरकार , ख़ाकी को दिया , सम्मान और प्यार... 
Ravindra Singh Yadav 

6 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात।
    नोबेल पुरस्कार से सम्मानित पाब्लो नेरुदा की कविता के भावानुवाद के साथ विविध वैचारिक रचनाओं का समागम आज का चर्चामंच। बधाई आदरणीय शास्त्री जी। धन तेरस की शुभकामनाऐं। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
    हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी रचना "ख़ाकी" को चर्चामंच में स्थान देने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  2. रोमांच से मुख मोड़ते।
    आदत कभी ना छोड़ते।
    जो लीक से हटते नहीं।
    हिम्मत जुटा डटते नहीं।
    वह आपदा कैसे हरे।
    तिल तिल मरे आहें भरे।।

    पाब्लो नेरुदा जी की अद्भुत कविता। wahhh

    मेरी रचना को स्थान देने के लिये अतुल्य आभार।

    जवाब देंहटाएं

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