मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
अनुभव क्या कुछ नहीं सिखा जाता
वक्त कितनी तेजी से बदलता है और वक्त के साथ ही मान्यतायें और परिभाषायें भी बदलती जाती हैं. कभी तमाम सरकारी दफ्तरों में जब बापू यानि गाँधी जी की तस्वीरें लगाई गई थीं तब उसके पीछे सोच यह रही होगी कि अधिकारी एवं नेता गाँधी की तस्वीर को रोज देखेंगे और उनसे सादा जीवन एवं उच्च विचार के प्रेरणा लेते हुए देश को सर्वोपरि मानकर राष्ट्र की सेवा करेंगे. जिस तरह आजकल फेसबुक पर थम्स अप का निशान देखर लोग समझ जाते हैं कि सामने वाले नें उनके लिखे को लाईक किया है ठीक वैसे ही बदलते परिवेश में सरकारी दफ्तरों में टंगी गाँधी जी की तस्वीर देख कर समझ जाते हैं कि यहाँ घूस ली जाती है...
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सृष्टि का निर्माण
दो अंको वाला नाटक है-
खुलासा करता है
स्टेंडर्ड मॉडल आफ पार्टिकिल फ़िज़िक्स
Virendra Kumar Sharma
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विजयादशमी
(कुंडलिया)
आया उत्सव विजय का,विजयादशमी नाम।
आज दशानन मार कर ,बोलो जय श्री राम...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
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प्रकांड विद्वान सिद्ध तपस्वी शिव भक्त
ब्रह्मा वंशज स्वप्नद्रष्टा
अजर-अमर होकर भी
वह नायक नहीं कहलाता है,
एक अहँकार से
हर कोई रावण हो बन जाता है..
आईये इस दशहरा
अपने अहंकार का पुतला बनाते है,
अपने ही हाथों अपने अंदर के
रावण को जलाते है..
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ये सचमुच भारत है... भारत यहाँ बसता है...`
बचपन में पाठ्यक्रम में एक पाठ हमेशा से ही इस लाइन से शुरू होता था..." भारत गावों में बसता है,,,!!"
बात तो आज भी सत्य है क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है और गाँव इसकी आत्मा है, पर ठहरिये आज के भारत को अगर आप परखेंगे तो पाएंगे कि अब भारत और भी कई जगहों में भी बसता है..नहीं भरोसा तो इसकी एक बानगी आपके सामने है:-
# किसी भी बैंक में जाएँ वहाँ आपको पेन बंधा मिलेगा.
# मेडिकल स्टोर में केंची बंधी मिलेगी.
# फोटो कॉपी वाले की दूकान पर चले जाएँ वो स्टेपलर को बाँध कर रखता है.
# प्याऊ वाले के यहाँ पानी का गिलास बंधा बिलेगा.
# कोर्ट में वकील कुर्सी बांध कर रखते हैं, नहीं भरोसा तो किसी भी हिंदी फिल्म या टी.वी. सीरियल में देखने को मिल जाएगा और असली कोर्ट में भी.
# Elite class वाले अपने कुत्तों को बांध कर रखते हैं, ( शायद उन्हें भरोसा है कि उनका पाला कुत्ता कहीं उन्हें ही न काट ले.)
# लड़कियां आज कल जहाँ देखो मुंह पर कपड़ा बांधकर चलती हैं..क्यों...? पता नहीं...!
# भारतीय पत्नी अपने पति को अपने पल्लू से बांधे रखती है, उसका बस नहीं चलता नहीं तो पूरे समय ही बांधे रखती.
# नेता जनता को झूठे आश्वासनों से बांधे रखता है.
कहिये हैं न भारत यहाँ भी बसता, इन सबसे तो यही लग रहा है कि इस देश में भरोसा शब्द की अर्थी उठ चुकी है. कहिये हैं न अपना भारत महान.
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पूर्व के अनुभव से
एक बात कह सकता हूँ कि
विकट परिस्थितियों के लिए
कुछ पैसे जरूर रहना चाहिए...
अन्यथा ऐसी लाचारी का भाव उत्पन्न होता है
जिसे बयान नहीं किया जा सकता...
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शीर्षकहीन
... निवेदन है कि अपने देश के प्रधानमंत्री की गरिमा को, मज़बूत बनायें सबसे बड़ी बात राजीव गांधी ने कहा था कि हम उपर से विकास के लिए 100पैसे भेजते हैं और विकास में सिर्फ 5 रू लगते हैं तो उस समय केन्द्र और राज्य में किसकी सरकार थी कहाँ गये वो 95 पैसे |यदि वो 95 पैसा मिल जाए तो पेट्रोल 80रू ली करनें की जरूरत ही नहीं पडेगी
PITAMBER DUTT SHARMA
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छुपाकर गुलाब रखता है....
श्वेता सिन्हा
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टूटकर भी वही जलवा ए शबाब रखता है
दिल धड़कनो में छुपाकर गुलाब रखता है...
विविधा.....पर yashoda Agrawal
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अपने पक्ष में
राम जाने क्यों
हम तुम्हें मानव ही न मान पाए
महामानव भी नहीं
ईश्वरत्व से कम पर
कोई समझौता कर ही न पाए शायद
आसान है हमारे लिए यही
सबसे उत्तम और सुलभ साधन
वर्ना यदि स्वीकारा जाता तुम्हारा मानव रूप
तो कैसे संभव था
अपने स्वार्थ की रोटी का सेंका जाना...
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प्रो गिरीश चन्द्र त्रिपाठी के मनमाने पन
और तानाशाही पूर्ण रवैये का नमूना
प्रो गिरीश चंद्र त्रिपाठी और आईआईटी बीएचयू, वाराणसी के बोर्ड आफ गवर्नर की चौथी बैठक के मिनट्स का विवाद (शिक्षकों और विद्यार्थियों के साथ ही साथ बनारस के आम लोगों का यह मानना है कि प्रो त्रिपाठी का अपने पद पर बने रहना ; कुलपति होने के नाते बीएचयू के कार्यपरिषद और साथ ही आईआईटी.बीएचयू के बीओजी का चेयरमैन बने रहना न सिर्फ़ इन दोनो प्रतिष्ठित संस्थाओं के हित में नहीं है बल्कि इन पदों की गरिमा का अवमूल्यन है। ऐसे में यह आवश्यक है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय राष्ट्रीय महत्व के इन दो संस्थानो के हितों की सुरक्षा के लिए तत्काल आवश्यक क़दम उठाये...
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समीक्षा
सुन्दर शब्द चुने हैं तुमने,
खूबसूरती से सजाया है उन्हें,
लय का ध्यान रखा है पूरा,
पर कवि, मुझे नहीं लगता
कि तुमने जो लिखा है,
उसे कविता कहा जाना चाहिए...
खूबसूरती से सजाया है उन्हें,
लय का ध्यान रखा है पूरा,
पर कवि, मुझे नहीं लगता
कि तुमने जो लिखा है,
उसे कविता कहा जाना चाहिए...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर चर्चा । आभार आदरणीय 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसभी की कृतियाँ बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता को जगह दी. आभार.
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