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देह देहरी देहरा, दो दो दिया जलाय -
रविकर
देह देहरी देहरा, दो दो दिया जलाय ।
कर उजेर मन गर्भ-गृह, दो अघ-तम दहकाय ।
दो अघ-तम दहकाय , घूर नरदहा खेत पर ।
गली द्वार-पिछवाड़, प्रकाशित कर दो रविकर।
जय जय लक्ष्मी मातु, पधारो आज शुभ घरी।
सुख-समृद्धि-सौहार्द, बसे मम देह देहरी ।।
देह, देहरी, देहरा = काया, द्वार, देवालय
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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान,दिल्ली में युवा काव्य प्रतियोगिता
Dr Abnish Singh Chauhan
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आइये आज धनतेरस के दिन प्रारंभ करते हैंदीपावली का तरही मुशायरा।आज सुनते हैं तीन रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी,अश्विनी रमेश जी औरबासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी से उनकी रचनाएँ।
पंकज सुबीर
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बचपन की ओर निर्निमेष ताकते लम्हे-- २
अनुपमा पाठक
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बुरांस के फूल
राजीव कुमार झा
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क्या हैं जैविक पक्षीय जीवाणु मित्र'प्रोबाइाटिक्स 'एवं पूर्व -जैविक (प्री -बाइ -आ-टिक्स ),खुराक में इनका होना ज़रूरी या गैर -ज़रूरी ?
Virendra Kumar Sharma
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तू मेरी न सुन मगर कहूँगा......निजाम रामपुरी
yashoda Agrawal
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दीवाली इस वर्ष
Asha Saxena
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हम जलाएंगे दीपक करेंगे प्रकाश, तुम्हारे लिये....
kuldeep thakur
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गीत"दीप खुशियों के जलें"(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’) |
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
दीप पर्व की शुभकामनाएँ
सादर
उम्दा चर्चा। मेरी रचाने शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंदीप पर्व शुभ हो । सुन्दर रविकर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लिंक्स.'देहात' से मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंदीपावली की शुभकामनाएं !
बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली!
सब ही की कृतियाँ एक से बढ़कर एक !
जवाब देंहटाएंसभी को दीपावली की मीठी - मीठी शुभकामनाएं