मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गीत
"सावन आया रे...."
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सावन आया रे.... मस्ती लाया रे....!
सावन आया रे.... मस्ती लाया रे....!
सावन आया रे.... मस्ती लाया रे....!
साजन ला दो चोटी-बिन्दी, काजल काली-काली,
क्रीम-पाउडर के संग में, ला दो होठों की लाली,
सावन आया रे.... मस्ती लाया रे....
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हम धुंए के बीच तेरे अक्स को तकते रहे ...
हम उदासी के परों पे दूर तक उड़ते रहे
बादलों पे दर्द की तन्हाइयाँ लिखते रहे...
Digamber Naswa
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काश नगर में बगुले ना होते
उनको अपनी दूकान की पडी है वे यह नहीं जानना चाहते है कि इस शहर में गरीब कितने है हालांकि वे गरीबी से ही बाहर आये है सम्पूर्ण सफ़ेद और सम्पूर्ण स्याह अपनी जगह तलाश रही है क्योंकि लोगो को श्वेत श्याम पर यकीन नही रहा और उनकी नज़रे टीकी है सिर्फ़ धूसर पर...
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ग़ज़ल
हाथों में गुब्बारे थामे शादमां हो जाएँगे।
खिलखिलाएँगे ये बच्चे तितलियाँ हो जाएँगे...
वाग्वैभव पर
Vandana Ramasingh
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कैसे गले लगाओगे....
कैसे गले लगाओगे , इन पत्थरबाजी के सांपों को।
वीर जवानों का जो खून बहा, खुश करते हैं अपने बापों को...
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बड़प्पन की चादर उतार दीजिए ना
लोग अंहकार की चादर ओढ़कर खुशियाँ ढूंढ रहे हैं, हमने भी कभी यही किया था लेकिन जैसे ही चादर को उठाकर फेंका, खुशियाँ झोली में आकर गिर पड़ीं। जैसे ही चादर भूले-भटके हमारे शरीर पर आ जाती है, खुशियाँ न जाने कहाँ चले जाती हैं! अहंकार भी किसका! बड़प्पन का।
हम बड़े हैं तो हमें सम्मान मिलना ही चाहिये।
smt. Ajit Gupta
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तू पत्थर सी मूरत बन जा
कली कभी तू मत घबराना,
बन के सुमन तुझे है आना,
कोई आंसू देख सके ना,
तू पत्थर सी मूरत बन जा...
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