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शनिवार, दिसंबर 15, 2018

"मन्दिर बन पाया नहीं, मिले न पन्द्रह लाख" (चर्चा अंक-3186)

मित्रों! 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।  
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।  
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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खामोश तेरी बातें 

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा  
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शिशिर की भोर 

शिशिर ऋतु की सुहानी भोर
आदित्यनारायण के स्वर्ण रथ पर
आरूढ़ हो धवल अश्वों की
सुनहरी लगाम थामे
पूर्व दिशा में शनैः शनैः
अवतरित हो रही है !
पर्वतों ने अपना लिबास
बदल लिया है... 
Sudhinama पर 
sadhana vaid  
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पन्द्रह लाख 

मन्दिर बन पाया नहीं, मिले न पन्द्रह लाख। 
मतदाता ने भी रखा, बीजेपी को ताख... 
Vimal Shukla 
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खेल 

कब तक खेलोगे  
ये सारे खेल 
आख़िर कब तक ? 
प्यार पर Rewa tibrewal  
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कसक रह गई 

कुछ भी तो ना चाहा  
पर कसक एक रह गई बाकी  
मुहाफ़िज़ समझा जिसे  
विरोधियों का सरदार निकला 
Rajeev Sharma  
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शीर्षकहीन 

मित्रो आज के युग की सत्यता पर  
चार पंक्तियाँ-  
खिलाफत में खड़ा है खुद,  
जो कहता था कहो सच तुम... 
DrRaaj saksena  

5 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर शनिवारीय चर्चा में गुलाम 'उलूक' की बकबक को जगह देने के लिये आभार आदरणीय।

      हटाएं
  2. आज की चर्चा में बहुत सुन्दर सूत्रों का संकलन ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति 👌
    बेहतरीन रचनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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