धन्यवाद दिलबाग विर्क जी। गज़ल, बसंती रूप है पहना बहुत अच्छी लगी। दर्द की लेखनी ने भी दिल को छुआ है। संजय जी के तो कहने ही क्या। प्यार है तो है सबसे छिपाना क्यों, प्रस्तुति पसंद आई तो बताए क्यों न? टपक के आंसू आंख से दिल के भेद सभी खुल जाते। आंसू भी अच्छे लग रहे हैं। क्या बात है! गलतसही को ठीक से पहचान लेती हूँ। ये सभी को करना चाहिए। बस अभिमान नहीं करना चाहिए। उम्मीदें वाकई बेशर्म होती हैं। कितना ही समझा लो, दिल में हिलोरे लेने लगती है। ज़िदंगी की हक़ीकत भले ही सबको मालुम हो विर्क साहब, लेकिन बताने में कोई हर्ज नहीं। इसी बहाने दिल बहल जाता है। 'कवच' पढ़नी ही पड़ेगी वरना लिखना कैसे सीखा जाएगा। पुस्तक समीक्षा पसंद आई। भूत को केंद्र बिंदु में रखकर भूतिया हवेली लिख डाली। बढ़िया है जी।
जिनकी प्रस्तुति के लिंक यहां दिये गए हैं उन सभी रचनाकारों/साहित्यकारों को हृदय से बधाई।
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर..
सार्थक और पठनीय लिंक।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय दिलबाग विर्क जी।
सुन्दर संकलन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिलबाग विर्क जी। गज़ल, बसंती रूप है पहना बहुत अच्छी लगी। दर्द की लेखनी ने भी दिल को छुआ है। संजय जी के तो कहने ही क्या। प्यार है तो है
जवाब देंहटाएंसबसे छिपाना क्यों, प्रस्तुति पसंद आई तो बताए क्यों न? टपक के आंसू आंख से दिल के भेद सभी खुल जाते। आंसू भी अच्छे लग रहे हैं। क्या बात है! गलतसही को ठीक से
पहचान लेती हूँ। ये सभी को करना चाहिए। बस अभिमान नहीं करना चाहिए। उम्मीदें वाकई बेशर्म होती हैं। कितना ही समझा लो, दिल में हिलोरे लेने लगती है। ज़िदंगी की हक़ीकत भले ही सबको मालुम हो विर्क साहब, लेकिन बताने में कोई हर्ज नहीं। इसी बहाने दिल बहल जाता है। 'कवच' पढ़नी ही पड़ेगी वरना लिखना कैसे सीखा जाएगा। पुस्तक समीक्षा पसंद आई। भूत को केंद्र बिंदु में रखकर भूतिया हवेली लिख डाली। बढ़िया है जी।
जिनकी प्रस्तुति के लिंक यहां दिये गए हैं उन
सभी रचनाकारों/साहित्यकारों को हृदय से बधाई।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति, दिलबाग जी।
जवाब देंहटाएंअच्छी ब्लॉग चर्चा ...
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
सूंदर प्रस्तुति, दिलबाग जी मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार
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