मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"दीप "
( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
दीप नन्हा सा धरा पर जल रहा है
उजियार उसमें दो जहां का पल रहा है
नेकिया सब काम आएंगी तुम्हारी
बदकिस्मती का दौर देखो चल रहा है...
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ख़ामोश फिर भी बहेंगे.....
महेशचन्द्र गुप्त 'ख़लिश'
मगर अश्क ख़ामोश फिर भी बहेंगे
मुहब्बत तेरी फ़क्त थी इक दिखावा
बहुत पाक थी तू, सभीसे कहेंगे...
मेरी धरोहर पर
Digvijay Agrawal
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सुन्दर सोमवारीय चर्चा।
जवाब देंहटाएंसार्थक दोहे से शुरू होने वाली चर्चा शानदार रही। बधाई।
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