मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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अकविता
"काश् कोई मसीहा आये"
बेड़ा गर्क हो उन नेताओं का
जिन्होंने हमारे प्यारे वतन का
बँटवारा कर दिया
हमारे रिश्तेदार भाई-बन्धु
जुदा हुए तो ऐसे
कि मिल भी नहीं सकते
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काश्
कोई मसीहा आये
और दोनों मुल्कों को
एक कर दे...
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नया सबेरा आयेगा
कभी सर्जिकल स्ट्राइक को फ़र्ज़ी बता रहे हैं,
पत्थरबाजों की पिटाई पर आंसू बहा रहे हैं।
स्विस बैंकों में अरबों रखने वाले पूछ रहे हैं ,
बताओ खाते में पंद्रह लाख कब आ रहे हैं...
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उन्हें बुरी लगती हैं......
भावना मिश्रा
उन्हें बुरी लगती हैं आलसी औरतें
मिट्टी के लोंदे-सी पड़ी उन्हें बुरी लगती हैं
कैंची की तरह जबान चलाती औरतें...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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विरह
होंठों की मुस्कान से तुम
आँख का पानी छुपाओगी
हृदय की पीड़ा
धड़कनों को न बताओगी
सांसों में, जी उठेगी बेचैनी
तुम उसे कैसे बहलाओगी...
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Sanjay Grover
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लाशें ही बोलेंगी
ये वक्त चींटी की तरह काटता है.
कैसे समझाऊँ?
स्क्रॉल करते करते रूह बेज़ार हो जाती है ,
अपने अन्दर की अठन्नी
अपना चवन्नी होना
स्वीकार नहीं पाती...
एक प्रयास पर
vandana gupta
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नाव
तुम्हारे नाम का
ख़त लिख के नाव
बना दी है कागज़ की
और -
बहा दिया है
वक़्त की नदी में...
Mukesh Srivastava
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
सुप्रभात आदरणीय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति |मुझे स्थान देने के लिए सहृदय आभार
सादर नमन
सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंइस सुंदर मंच पर स्थान देने के लिये धन्यवाद शास्त्री सर।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा। मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंसर, मेरी रचना के साथ कंटेन्ट किसी और रचना की है कुछ समझ में नही आया !आभार !
जवाब देंहटाएंशामिल करने के लिए बहुत शुक्रिया. मस्ती मनाएं
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