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बुधवार, मार्च 27, 2019

"अपनी औकात हमको बताते रहे" (चर्चा अंक-3287)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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अश्रु, तू क्यूँ बहता? 


पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
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ग़ज़ल 

सताकर हमें तुम रुलाना नहीं  
जलाकर अगन अब बुझाना नहीं... 
कालीपद "प्रसाद"  
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शीर्षकहीन 

मुकेश गिरि गोस्वामी  
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A'पील' ,  

एक आमचुनाव  

व्यंग्य  

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

4 टिप्‍पणियां:

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