मित्रों
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
|
कल रहे ना रहे हम..
--
अंग भभूत मली
श्री शिव शंकर संसार सार,
करते थे अपना श्रृंगार।
सँभाल कर जटाओं में गंग,
धारण कर नाग-चन्द्र।
मलने लगे भभूत, महादेव अवधूत...
मन के वातायन पर
मन के वातायन
|
कारपोरेट तीसरा मोर्चाकिसी भी सूरत मेंस्वीकार नहीं करना चाहताहेमंत कुमार झा
|
पड़ोसी
जीजा और साले ने मिलकर शहर से दूर, एक सुनसान इलाके में, मकान बनाने की इच्छा से, तीन बिस्वे का एक प्लॉट खरीदा। मिलकर खरीदने के पीछे कई कारण थे। पहला कारण तो यह कि दोनो की हैसियत इतनी अच्छी नहीं थी कि अकेले पूरे प्लॉट का दाम चुका सकें। दूसरा कारण यह कि सुनसान इलाके में दो परिवार साथ होंगे तो दोनो को अच्छा पड़ोसी मिल जाएगा। प्लॉट खरीदते समय दोनो के मन में अच्छे पड़ोसी मिलने पर होने वाले फायदों के लड्डू फूट रहे थे...
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय
|
|
करती हूँ मैं विनय निरंतर
निराकार निर्मल निर्गुण की
शुभता भर दें वेदना हर लें
पवित्र-भूमि की हर कण-कण की.
शुभ्र दीप्त अलोक की लौ से...
|
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा गुरुदेव.
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार.
सुंदर चर्चा मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |