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रविवार, मार्च 10, 2019

"पैसेंजर रेल गाड़ी" (चर्चा अंक-3269)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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दोहे  

"गये आचरण भूल"  

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64.  

तावीज़ 

3 x 6 के बिस्तर पर लेटी धीमी गति से चलते पंखे को देख निशा सोच रही है कि ऐसे ही चक्कर काटती रही वह तमाम उम्र, कभी बच्चों के पीछे कभी जिम्मेदारियों के पीछे। पर अब क्या करे? इस उम्र में कहाँ जाए? सारी डिग्रियाँ धरी रह गईं। वह कुछ न कर सकी। अब कौन देगा नौकरी ? रोज़ अख़बार में विज्ञापन देखती है, पर इस उम्र की स्त्री के लिए तो सारे रास्ते बंद हो चुके हैं... 
डॉ. जेन्नी शबनम  
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सत्ता का प्रभाव 

कंटकों से भरे हुए, पथ में जो जाना पड़े,पैर में पड़े जूतों से, प्यार हो ही जाता है।जहाँ संसदीयता की किसी से अपेक्षा बने,हाथ में लगे तो हथियार हो ही जाता है।पत्थरों में नाम जब खोदा नहीं जाता बन्धु,नेताजी का खून खौल, क्षार हो ही जाता है।दोष नहीं जूते का है, सत्ता का प्रभाव यह,अहंकार चोट खाये, रार हो ही जाता है।। 
Vimal Shukla  
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सोनचिडिया 

बडे शहर में
बडी बिमारियां निगलने लगी है
इंसान कोबात आंखों से मुस्कुराने वाली लडकी की है जिसने अभी
ना गरमाहट देखी थी उगते सूरज का
और ना ही चांद देखा था चांदनी की... 
संध्या आर्य 
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स्त्रियां चाहती हैं 

चाहती हैं  
ईट भट्टोंँ में काम करने वाली स्त्रियां  
कि,  
उनका भी अपना घर हो... 
Jyoti Khare 
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आज की बेटी 

Sudhinama पर 
sadhana vaid 
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5 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चर्चा। मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर रचनाओं का संकलन आज की चर्चा में ! मेरी दोनों रचनाओं को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन चर्चा संकलन 👌
    मुझे स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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