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बुधवार, अप्रैल 10, 2019

"यन्त्र-तन्त्र का मन्त्र" (चर्चा अंक-3301)

बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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दोहागीत  

"जनता का जनतन्त्र"  

कल तक मस्त वज़ीर थेआज हुए हैं त्रस्त।
निर्वाचन ने दलों केकिये हौसले पस्त।।

शासक सब खाते रहेनोच-नोचकर देश।
वीराना सा कर दियावासन्ती परिवेश।।
छेद स्वयं के पात्र मेंकरने लगे दलाल।
जनता आहत हो रही दशा देख विकराल।।
मत के प्रबल प्रहार सेदुर्ग करेगी ध्वस्त... 
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सुबह हो गई है -  

भवानीप्रसाद मिश्र 

रवीन्द्र भारद्वाज  
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वाह!!  

आज तुमने फिर बहुत सुन्दर लिखा है!! 

मेरी फ़ोटो
... मैं आपकी स्नेह भरी वाहवाही लूटने की चाहत में इसी २००७ के आलेख को जल्दी जल्दी बदलने लगता हूँ ताकि लगे कि आज ही लिखा है.
मगर आप नहीं आये. ये बस एक वहम था. आप अब कभी नहीं आओगे.
किन्तु मैं लिखता रहूँगा आपके इन्तजार में. शायद कहीं दूर से कभी आपकी आवाज सुनाई दे कि वाह!! आज तुमने फिर बहुत सुन्दर लिखा है!!
-समीर लाल ’समीर’
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विश्वासघात या अवसरवाद 

चुनाव चक्र अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच रहा है और अब एक नये दुष्चक्र के आरम्भ का सूत्रपात होने जा रहा है । मंत्रीमंडल में अपनी कुर्सी सुरक्षित करने के लिये सांसदों की खरीद फरोख्त और जोड़ तोड़ का लम्बा सिलसिला शुरु होगा और आम जनता ठगी सी निरुपाय यह सब देख कर अपना सिर धुनती रहेगी । व्यक्तिगत स्तर पर चुनाव लड़ने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों और छोटी मोटी क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं का वर्चस्व रहेगा । उनकी सबसे मँहगी बोली लगेगी और सत्ता लोलुप और सिद्धांतविहीन राजनीति करने वाले आयाराम गयारामों की पौ बारह होगी... 
Sudhinama पर 
Sadhana Vaid 
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अपना कोना 

"जीवन से लम्बे हैं बंधु , इस जीवन के रस्ते  .. " सुरम्या ने अपना चहेता गीत इतने दिनों बाद सुना तो वॉल्यूम बढ़ा दिया। मन्ना दा का गाया यह गीत जब से सुना था, तब से ही ना जाने क्यों बहुत अपना लगता था। अपना शहद-नीबू पानी का गिलास लेकर सुरम्या खिड़की के पास बैठ गई। खिड़की के पास लगे काले पत्थर पर बैठना उसे बेहद सुकून देता था।  खिड़की में लगे तीन-चार पौधे और विविधभारती पर बजते गीत उसके हमेशा के साथी थे।  हमेशा के हमजोली। बाकी सब आते-जाते रहे जीवन भर।  आज भी यह गीत प्ले हुआ तो ऐसा लगा मानो कोई सुन रहा है।  कोई समझ रहा है, जो उस पर बीत रही है। वास्तव में  .. जीवन से लम्बे हैं बंधु, इस जीवन के रस्ते  ..  
noopuram  
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सारांश 

संक्षेप में वृत्तांत सुनाऊ
सार का सारांश बतलाऊ
परिदृश्य कोई भी हो
किनारा भूमिका मंडित कर
मूल आलेख जागृत कर पाऊ ।। 

RAAGDEVRAN पर 
MANOJ KAYAL  
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लघुकथा :  

अस्तित्व की पहचान 

झरोख़ा पर 
निवेदिता श्रीवास्तव  
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6 टिप्‍पणियां:

  1. राजनीति से संबंधित विषयों को समेटा सुंदर मंच, प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति आदरणीय
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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