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मंगलवार, अक्तूबर 22, 2019

" सभ्यता के प्रतीक मिट्टी के दीप" (चर्चा अंक- 3496)

मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बदल रही थी रुख़ आब-ओ-हवा ज़माने की 

गूँगी गुड़िया -अनीता सैनी 
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस
 "तुम मुझे ख़ून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा"  
"दिल्ली चलो "  
"जय हिन्द" नारे दिए सुभाष ने ,  
जाग उठी थी तरुणाई  
उभारे बलिदानी रंग प्रभाष ने… 
हिन्दी-आभा*भारत  पर 
Ravindra Singh Yadav  
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कबूतर को  
समझ आये  
हिसाब से  
अपने दिमाग से  
खुद को समझाये कबूतर 

उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी 

प्रभा बालसाहित्य सम्मान पर समीक्षा पांडेय  
पौधों को नई जगह की आबो-हवा, धूप-झांव, मिटटी-पानी के साथ ताल-मेल बैठाने, परिस्थियों के अनुसार खुद को ढालने, आस-पास के माहौल में खुद को रमाने में कुछ तो समय लगना ही था ! हाथी इस बात को बखूबी समझते थे ! वे पौधों इत्यादि का समुचित ध्यान रख, समयानुसार उनका पोषण करते थे। पर इधर वानरों को अपने लता-गुल्म की कुछ अनावश्यक ही चिंता थी ! वे हर दूसरे-तीसरे दिन अपने लगाए पौधों को उखाड़ कर देखते थे कि उनकी जड़ें विकसित हुए कि नहीं ..... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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माहिया  
(कुड़िये)
कुड़िये कर कुड़माई,
बहना चाहे हैं,
प्यारी सी भौजाई।

धो आ मुख को पहले,
बीच तलैया में,
फिर जो मन में कहले… 
आपका ब्लॉग पर 
Basudeo Agarwal 'Naman'  
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साथ 
.दो अक्षरों का छोटा सा शब्द। गहन मायने है इसके। कभी कभी हम किसी के साथ, जीवन भर चलते हुए भी इस शब्द के मायने नहीं समझ सकते, तो कभी कभी कोई कोई बिना मिले , बिना देखे भी हमेशा साथ महसूस होता है....जैसे की ईश्वर … 
मेरे मन का एक कोना पर आत्ममुग्धा  
महात्मा गांधी एक वह नाम जो एक पार्टी के लिए तारणहार तो एक पार्टी के लिए मारणहार की भूमिका में रहा है और यही कारण रहा कि एक पार्टी उन्हें बचाने में लगी रही तो एक पार्टी ने उन्हें निबटाने में अपनी अहम भूमिका निभाई किन्तु समय बीतते बीतते ऐसा समय आ गया कि मारणहार की लोकप्रियता और जन समुदाय का उनके प्रति प्यार दूसरी पार्टी की समझ में आ गया और यह भी समझ में आ गया कि वह भले ही इस धरती पर करोडों बार जन्म ले ले पर उनके प्रति जन भावना को पलट नहीं पाएगी. इसलिये दूसरी पार्टी ने उनके प्रति नरम रुख अख्तियार किया… 
! कौशल ! पर Shalini kaushik 

BOL PAHADIपरDhanesh Kothari 

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अक्ल की बाढ़
यह अक्ल नाम की बला जो इन्सान के साथ जुड़ी है बड़ी फ़ालतू चीज़ है. बाबा आदम के उन जन्नतवाले दिनों में इसका नामोनिशान नहीं था. मुसम्मात हव्वा की प्रेरणा से अक्ल का संचार हुआ, परिणामस्वरूप हाथ आई ख़ुदा से रुस्वाई.... 
लालित्यम् पर प्रतिभा सक्सेना 

10 टिप्‍पणियां:

  1. वैसे,तो मंच सदैव की भांति ही साहित्यिक सामग्रियों से सजा है, परंतु आपका ज्ञानवर्धक दोहा नहीं दिखा आज।
    बहुत सही कहा है कि मिट्टी के दीपक सभ्यता के प्रतीक है।
    जब हम स्वयं माटी के पुतले हैं, तो कृत्रिम प्रकाश की ओर क्यों भाग रहे हैं, सुंदर प्रस्तुति के लिए सभी को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दोहे तो 8000 के लगभग लिख चुका हूँ, किन्तु अन्य भी विधाओं का प्रस्तुतिकरण भी जरूरी है।

      हटाएं
  2. उम्दा चर्चा। मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन चर्चा, हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. ... भले ही हम आधुनिकता का जामा पहन चुके हैं पर बात जब दीपावली की आती है तो हाथों में मिट्टी के दीए लिए रोशनी की पूजा करते है.... चर्चा हेतु सुंदर विषय आपने प्रस्तुत किया एवं साथ ही साथ सुंदर संकलन भी कहीं कबूतरों की गुटर गूँ तो कहीं आजाद हिंद फौज का नारा... तो कहीं बदल रही थी रुख आबोहवा की... सभी चयनित लिंक भूत और भविष्य की गहनता पर विचार करने को प्रेरित करते हैं... गढ़वाली कविता ने बहुत प्रभावित किया अंत में इतनी शानदार लिंक की प्रस्तुति के लिए मेरी ओर से हार्दिक बधाई आपको

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति में मेरी पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुति 👌)
    सुन्दर रचनाएँ, मेरी रचना को स्थान देने हेतु सहृदय आभार आदरणीय.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. हार्दिक आभार आपका और नमन आपको इस सुन्दर संकलन में मेरी रचना को साझा करने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय शास्त्री जी।

    सभी लिंक अपनी-अपनी विशिष्टता के साथ।

    आदरणीय शास्त्री जी द्वारा सराहनीय एवं ज्ञानवर्धक पुस्तक समीक्षा।

    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    मेरी रचना यहाँ दर्शाने के लिये सादर आभार आदरणीय शास्त्री जी।



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