स्नेहिल अभिवादन।
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आज हम चर्चामंच पर स्वागत करते हैं अतिथि चर्चाकार के रूप में युवा रचनाकार आँचल पाण्डेय जी का। आज की प्रस्तुति में पढ़िए आँचल जी की चिंतनपरक भूमिका के साथ उनकी पसंद की रचनाएँ-
-अनीता लागुरी 'अनु'
-अनीता लागुरी 'अनु'
बसे हिय प्रेम तो विष प्याला
सुधा कलश हो जाए।
मीरा गिरधर के गुण गाए,
शिव नीलकंठ कहलाए।
- आँचल
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आप सभी आदरणीय जनों को सादर प्रणाम। मैं आँचल पाण्डेय अतिथि चर्चाकार के रूप में 'चर्चा मंच' के आज के अंक में आप सुधि पाठकों का हार्दिक अभिवादन करती हूँ। साथ ही आदरणीय शास्त्री सर और आदरणीय रविंद्र सर को हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ जो आपने मुझ पर विश्वास कर मुझे यह सुअवसर प्रदान किया। आदरणीया अनु दीदी की भी आभारी हूँ जिनके अनुग्रह पर मैं आज चर्चा अंक के साथ प्रस्तुत हूँ।
अब अवसर का लाभ उठाते हुए आज आप सबके साथ वो भाव साझा करती हूँ जिसने प्रथम बार कक्षा ८ में मुझसे क़लम चलवायी। 'मानवता का घटता स्तर' जिसका कारण मैंने जाना 'प्रेम का अभाव' और बस प्रभु इच्छा से प्रेम की प्रभुता लिखने बैठ गयी।
'प्रेम' जो इस सृष्टि का आधार है और मनुष्यता का सार भी। प्रकृति जिसका अवतार है और जो मन के विकारों का उपचार है। प्रेम ही मनुष्य को पतन से प्रगति की ओर ले जाता है। कर्तव्यनिष्ठ और सदाचारी बनाता है। करुणा इसका शृंगार है और क्षमा इसका अलंकार। जिस हृदय में प्रेम ने डेरा डाला वहाँ घृणा, ईष्या, क्रोध जैसे विनाशक भाव नही पनपते। प्रेम तो ब्रम्ह है। प्रेम वो शक्ति है जो हलाहल को अमृत बना दे। प्रेम ही तो मनुष्यता है। अब विचार कीजिए यदि हमारे मानव समाज में प्रेम बयार चल पड़े तो?
घृणा का व्यापार बंद हो जाएगा, हिंसा थम जाएगी, धर्म-जाति का भेद भी न होगा। न कोई लूट मचेगी न कोई अपराध होगा बस संसार में सत्य होगा, धर्म होगा और आनंद होगा।
तो चलिए इसी प्रेम की पवित्रता को धारण करते हुए बढ़ते हैं आज के लाजवाब लिंक्स की ओर।
-आँचल पाण्डेय
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शुभारंभ करते हैं आदरणीय शास्त्री सर के अनुपम सृजन से। बसंत का स्वागत करता ये सुंदर गीत - ' आया बसंत '
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डगमगाते ही सही कदम बढ़ाए रखना, ठोकरें बहुत हैं! हौसला संभाल भाई। खेल जीतने की खातिर किसी को दांव ना लगाना।संघर्ष का पर्याय है ज़िंदगी। तप कर ही खरा होना है। पर अपने सुख की खातिर किसी के घर में आग लगाना क्या ठीक है? ज़िंदगी का यही शऊर सिखाती आदरणीय रवीन्द्र सर की उत्तम पंक्तियाँ - 'शायद देखा नही उसने
काट लेता है कोई शाख़
घर अपना बनाने को,
शायद देखा नहीं उसने
चिड़िया का बिलखना।
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हर रिश्ते में प्रीत की रीत निभाती
एक स्त्री सत्य में शीतल बयार सी होती है
पढ़िए आदरणीय अनीता मैम की अनुपम रचना
"दिलों में बहती शीतल हवा में.. हवा हूं.!
भाई से बिछड़ी बहन की राखी मैं,
स्नेह-बंधन में बँधी नाज़ुक कड़ी हूँ,
बचपन खिला वह आँगन की मिट्टी मैं,
गरिमा पिया-घर की बन के सजी हूँ,
दिलों में बहती शीतल हवा मैं...हवा हूँ...
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हर पल हर लम्हा कुछ कहता है
तो चलिए अब इन लम्हों की भी सुनते हैं
आदरणीय पुरुषोत्तम सर जी की रचना "लम्हा में
लम्हे, कल जो भूले,
ना वो फिर मिले, कहीं फिर गले,
कभी, वो अपना बनाए,
कभी, वो भुलाए,
करे, विस्मित ये लम्हे,
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अब चलिए सास बहू के अनोखे प्रेम को भी देख लेते हैं
सुखांत लिए आदरणीय ध्रुव सर की यह लघु कथा "अम्मा गिर गई"..
लाजवंती को दिन में ही चाँद-तारों के दर्शन होने लगे थे!
किरीतिया लाजवंती के सर पर अपना हाथ फेरने लगी
जो बुख़ार होने की वज़ह से अत्यंत गर्म था!
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चिनमय चिदानँद माधव
बृषभानु सुता श्रृंगार सखी,
आज न कोई आना मधुबन में
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ख़ुद ही गिराती है फिर उठाने भी आ जाती है।
यह ज़िंदगी भी न बड़ा सताती है। चलिए दो बातें इससे भी कर आते हैं।
आदरणीया अनु दीदी के संग - 'ऐ ज़िंदगी तेरी हर बात से डर लगता है-
चलो माना तू हँसने के मौक़े भी देती है
मगर समंदर कब कश्तियों को
बिना भिगोये पार जाने देता है
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कलम सृजन को जाग उठी है,जाग उठा है
वन उपवन।नूपुर कुदरत की बाजी रे, सखी देखो आया ऋतुराज बसंत।
अभी कल ही बसंत पंचमी बीती है।
चहुँ ओर उत्सव की धूम है।
आइए हम भी आदरणीया रेणु दीदी के संग इस उत्सव का आनंद लेते हैं
- 'ऋतुराज बसंत है आया '
मयूरों का नर्तन , भवरों का गुंजन और कोयल की कूक मानो इसके स्वागत का मधुर गान है |
आम के पेड़ों पर उमड़ी मंजरी और नीम के सफेद फूलों से महकती गलियां तो कहीं गेंदे के फूलों की कतारें देखते ही बनती है |
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बिल्कुल सही कहा कभी वनीला कभी चॉकलेट कभी अनानास जिंदगी यूं ही खट्टी मीठी पड़ाव के साथ गुजराती जा रही है आइए शुभा जी की खट्टी मीठी स्वादो के संग कविता "जिंदगी "का मजा ले..
कभी वनीला सी ,
कभी चॉकलेट सी
कभी अनानास सी
तो कभी नारंगी सी खट्टी -मीठी
धीरे -धीरे स्वाद जीभ में घुलाती सी
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बेफिक्री धूप की इतनी बढ़ गई की ठंड उसके सामने से निकल कर सब को अपने आगोश में ले रहा है I
ठंड के ऊपर "डॉ जेनी शबनम जी की दस "हाइकु" का आनंद लें
चलते चलते ज़रा बिल्ली रानी की कैट वॉक भी देख लेते हैं।
आदरणीया सुधा मैम के संग इस मज़ेदार बाल गीत का आनंद लेते हुए
' बिल्ली रानी - बाल गीत '
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आज का सफ़र यही तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
अनीता लागुरी 'अनु '