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शुक्रवार, जनवरी 17, 2020

" सूर्य भी शीत उगलता है"(चर्चा अंक - 3583)

स्नेहिल अभिवादन 
ठंड अपने पूरी उफान पर है, मानो हम से कह रही हो इस घने कोहरे की चादर में तुम सबको लपेटे बिना मैं वापस नहीं जाऊंगा.. पर जाना तो सबको है फिर एक नई ऋतु का आगमन होगा.  गर्म कपड़े समेट दिये जाएंगे,  बक्सों में बंद कर दिए जाएंगे और सूती कपड़े बाहर दौड़ लगाएंगे.. मानव जीवन-चक्र भी इसी नियम दर नियम अपने गंतव्य की ओर चला जा रहा है। रुकता कुछ नहीं है हाथों में, फिर भी मनुष्य और -और की इच्छा में अपने आज को व्यर्थ कर रहा है!
-अनीता लागुरी 'अनु'
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ -
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दादा जी ने अपने तन पर
कम्बल है लिपटाया। 
ओढ़ चदरिया कुहरे की
सूरज नभ में शर्माया।। 
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Waves, Dawn, Ocean, Sea, Dusk, Seascape 
सदियाँ बीत गईं,
पर तुम मीठे न हुए,
तुमने उन्हें भी खारा कर दिया,
जो मीलों चलती रहीं,
तुमसे मिलने को तरसती रहीं.
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चहकते चिड़ियों में, वो शोर नहीं अब, 
भौंरे कलियों पे, और नहीं अब! 
बदली है फ़िजा, बदल चुका वो सूरज, 
बहते झरनों का, शोर नहीं अब! 
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कुण्डलियाँ छंद 

●विधान उदाहरण सहित● ....  

◆संजय कौशिक 'विज्ञात'◆

कभी कहे वो इत्र, पृष्ठ की स्याही महकी। 
अक्षर स्वर्णी वर्ण, कहीं मात्राएं बहकी॥ 
कह कौशिक कविराय, परे हैं विवाद से हम।
कहती है वो मित्र, तुम्हीं हो जग में *अनुपम*॥
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सुख-दुःख, राग-द्वेष के तट पर

नदिया जैसा बहता है मन,
इस तट आकर पुलकित होता
उस तट उदग्विन रहता है मन !
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मैं ज़ख़्म देखता हूँ न अज़ाब देखता हूँ
शिद्दत से मुहब्बत का इज़्तिराब देखता हूँ
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हमारे यहाँ अवसाद और व्यग्रता यानी कि 
 Depression और Anxiety 
आज सबसे आम मानसिक विकार हैं | 
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.जूठा

जाडा इस बार अपने पूरे जोर पर था।
पिछले तीन दिन से बारिश थी
 कि थमने का नाम ही न लेती थी।

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कला

कला कभी छुपती नहीं,बस चाहे आधार।
मन भीतर आशा जगी,मिल जाता विस्तार
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तूने अहमियत नहीं दीये बात और है
आँखों का वादा तो थातेरे-मेरे दरम्यां।
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हिमनद सारे पिघल रहे हैं
दरक रहे हैं धरणीधर
सागर बंधन तोड़ रहे हैं
नीर स्तर भी हुआ अधर ।
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Gopesh Jaswal
ज्ञानदीप को बुझा, तिमिर का, करता सदा प्रसार है,
शिव के वर से, सत्ता का, उसको, चढ़ गया बुखार है
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हमारी चर्चा मंच की सबसे कर्मठ सक्रिय चर्चाकारा "श्रीमती अनीता सैनी" जी की उपलब्धियों में एक और उपलब्धि बहुत जल्द जुड़ने वाली है. प्राची डिजिटल पब्लिकेशन, मेरठ से उनका  कविता-संग्रह  'एहसास के गुंचे'  बहुत ही जल्द हम सब के बीच पहुंचने वाला  है.
चर्चा मंच की ओर से उनकी आने वाली पुस्तक के लिये  ढेर सारी शुभकामनाएँ और हम सब यही आशा करते हैं कि  आपकी यह किताब साहित्य के क्षेत्र में ऊंची बुलंदी छुए ....
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धन्यवाद!!🙏
-अनीता लागुरी 'अनु'

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17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।
    आपका आभार अनीता लागुरी जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर लिंको का चयन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. जी बहुत-बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर और बेहतरीन चर्चा अंक
    https://experienceofindianlife.blogspot.com/2020/01/blog-post_17.html

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर चर्चा.मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. सार्थक भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति प्रिय अनु. सभी रचनाएँ बेहतरीन है. मेरी पुस्तक का ज़िक्र करना अंतरमन को छू गया.
    सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
    आप से निवेदन है कि मेरी रचना अगर आपको अच्छी लागे जोर जोर से आवाज देता है लहू तो आप अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करे

    जवाब देंहटाएं

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