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रविवार, जनवरी 19, 2020

"लोकगीत" (चर्चा अंक - 3585)

स्नेहिल अभिवादन। 
 रविवारीय प्रस्तुति में आपका हार्दिक स्वागत है।
भारतीय संस्कृति की आत्मा लोकगीतों में बसती है,  यह कहना अतिश्योक्ति न होगी. लोक-प्रथाओं व परम्परागत विश्वासों की ध्वनि लोकगीतों के रूप में गूँजती है. लोक-विधाओं से लेकर लोक-उत्सवों तक लोकगीतों की जड़ें गहराई तक समायी हैं. हरेक देश की अपनी लोक- संस्कृति है जिसे अपनी लोक-कलाओं और लोकगीतों पर नाज़ होता है. 
आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-

-अनीता सैनी
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गुस्सा हैं अम्मा

My Photo 

नहीं गाये

रजाई में दुबककर

खनकदार हंसी के साथ

लोकगीत

नहीं जा रही जल चढाने

खेरमाई

नहीं पढ़ रही

रामचरित मानस--

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हमने तुमसे कोई शिकायत कहां की हैं .... 

दर्द ने किस कदर इंतेहा की हैं,

हमने तुमसे कोई शिकायत कहां की हैं,

जिस तरह हमने हज़ार मिन्नते की

तुमने वैसे अभी इल्तेज़ा कहा की हैं

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ऐ हमदम… 

 मकरंद 

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जलते रहना, ऐ आग! 

 कविता "जीवन कलश"

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सीधी-सादी कविताएं…

My Photo 

अब आसान सा लिखूँ 

तो झूठ लगता है,

उतना ही झूठ 

जितनी कुछ बीती बातें 

लगने लगी हैं आज कल...

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फागुनी छू कर गई 

फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।
कान में हौले से मेरे,
गीत कोई सुना गया।।
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मुफ़लिसी के दौर ने।
Hindi shayari
मेरी हर आरज़ू को तिश्नगी बनाकर रख दिया,
गिरने का डर ऐसा कि पत्थर हटाकर रख दिया
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विदा


मैं कुछ देर तक पुकारूँगी


फिर चली जाऊँगी


चाँद के पार

या

शामिल हो जाऊँगी 

उन सितारों में कही

जहाँ मेरे सुकून की छाँव है 

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सुधा की कुंडलियाँ - 6

 

पड़ोसी :
 नगरों में जबसे बसे, सबसे हैं अनजान!
 मेरे कौन पड़ोस में, नहीं जरा भी ज्ञान!!
 नहीं जरा भी ज्ञान,सुनो जी कलयुग आया !
 भूले अपना कर्म, पड़ोसी धर्म भुलाया!!
 कहे 'सुधा' सुन बात, शूल मिलते डगरों में!
 रहे पड़ोसी पास , ध्यान रखिए नगरों में!!

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अँधा बांटे रेवड़ी

शाम को चौपाल पर सभी जरुरत मंद आ जुटते थे
और सर्वेश्वर दयाल जी की खूब वाह वाही होती। 
उनके इस निस्वार्थ सेवा के लिए सभी गदगद हो
 उन्हें साधुवाद देते और देवता रूप समझ उनके पांव छूते थे। 
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उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। 
समाज के ज्वलंत मुद्दों पर उनकी बेबाक राय भी काफी अहम हैं। 
उनका निधन आज ही के दिन यानी 18 जनवरी 1955 को हुआ था।
**

विविध दोहे 

"माता करती प्यार" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 

आज का सफ़र यहीं तक 
फिर मिलेगें आगामी अंक में
-अनीता सैनी

11 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय संस्कृति ,लोकगीत और लोककला
    । उत्तम विषय का चयन भूमिका के लिए आपने किया है अनीता बहन...
    आधुनिक समाज में ऐसे भी भद्रजन हैं,जो हमारी संस्कृति , हमारी परंपरा को अनुपयोगी बताकर उसमें सुधार का प्रयास तो नहीं, वरन् उसका उपहास कर रहे हैं , परंतु सत्य तो यह है कि आज भी लोकगीतों के माध्यम से बिना पुस्तक ज्ञान के हम अपने अतीत ,अपनी संस्कृति और अपनी परंपराओं के बारे में बहुत कुछ जान- समझ लेते हैं।
    मंच पर सार्थक चर्चा और सुंदर रचनाओं के लिए आप सभी को प्रणाम।

    हम अपने अतीत

    जवाब देंहटाएं
  2. लोकगीतों की परम्परा को जीवन्त करती सुन्दर चर्चा।
    आपका आभार अनीता सैनी जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. लोकगीत और लोककला के ख़ज़ाने को भरने में सबसे बड़ा योगदान हमारे देश की अनजान-बेनाम महिलाओं का और गरीब तबके के मर्दों का है.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन चर्चा अंक , सादर नमन आप सभी को

    जवाब देंहटाएं
  6. हमेशा की तरह सुंदर चर्चा लिंक

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर चर्चा....मेरी रचना को स्थान देने के लिये शुक्रिया 😊

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति। चर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति। लोकगीत पर विचारणीय भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं का चयन। सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    लोकगीत आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। लोकगीतों में देश की मिट्टी की मिठास को सुकोमल एहसास निहित होता है।


    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर सूत्र संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मिलित करने का आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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