सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
-- शब्द-सृजन-20 का विषय है-
'गुलमोहर'
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत है आदरणीय ज्योति खरे साहब की 'गुलमोहर' शीर्षक से 2012 में सृजित मनमोहिनी रचना-
गुलमोहर------
माना कि तुम्हारे आँगन में
जूही,चमेली,रातरानी
महकती है
पर
तुम अपने आँगन में
बस
एक गुलमोहर लगा लो
सौन्दर्य का जादू जमा लो-------
दोपहर की धूप में भी देहकर
फूलता है गुलमोहर
देता है छांव------
तपती जेठ की दोपहरी में
जब कोई खटखटायेगा
तुम्हारा दरवाजा
आओगी तुम
"वातानुकूलित"कमरे से निकलकर
उस तपते समय में
तुम्हे और तुम्हारे आगंतुक को
गुलमोहर देगा छांव-------
लाल सुबह के रंग लिये
गुलमोहर के फूल
आत्मिक सौन्दर्य के धनी होकर भी
सुगंध से परे हैं
शान से खिलते हैं-------
धूप से जूझते हैं
तब
जब
तुम्हारे "इनडोर प्लांट"
आंधियों से सूखते हैं-------
तुम्हारे तपे हुये बंगले की दीवारों के बीच
तुम्हारे प्यार भरे सहलाव,अपनत्व में भी
तुम्हारे फूल
कायम नहीं रह पाते
तुम्हारी ही तरह
"सुविधाजीवी"हैं
तुम्हारे फूल--------
तुम गुलमोहर हो सकते हो
किसी आतप से झुलसे जीवन के लिये
छांव दे सकते हो
किसी जलते मन के लिये-------
तुम्हे बाजार मिल जायेगा
सुगंध का
सुविधा से------
तुम जूही,चमेली,गुलाब का
सुगंधित अहसास खरीद सकती हो
पर
गुलमोहर की छांव
नहीं मिलती बाजार में
नहीं बनता इसका "सेंट"
यह तो बस खिलता है
सौन्दर्य की सुगंध भरता है
आंखों से मन में
जीवन में--------
तुम भी गुलमोहर हो सकते हो
बस
अपने आंगन में
एक गुलमोहर लगा लो
सौन्दर्य का जादू जमा लो------------
"ज्योति खरे"
(उंगलियां कांपती क्यों हैं-------से )*****
--
-- शब्द-सृजन-20 का विषय है-
'गुलमोहर'
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में प्रकाशित की जाएँगीं।
उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत है आदरणीय ज्योति खरे साहब की 'गुलमोहर' शीर्षक से 2012 में सृजित मनमोहिनी रचना-
गुलमोहर------
माना कि तुम्हारे आँगन में
जूही,चमेली,रातरानी
महकती है
पर
तुम अपने आँगन में
बस
एक गुलमोहर लगा लो
सौन्दर्य का जादू जमा लो-------
दोपहर की धूप में भी देहकर
फूलता है गुलमोहर
देता है छांव------
तपती जेठ की दोपहरी में
जब कोई खटखटायेगा
तुम्हारा दरवाजा
आओगी तुम
"वातानुकूलित"कमरे से निकलकर
उस तपते समय में
तुम्हे और तुम्हारे आगंतुक को
गुलमोहर देगा छांव-------
लाल सुबह के रंग लिये
गुलमोहर के फूल
आत्मिक सौन्दर्य के धनी होकर भी
सुगंध से परे हैं
शान से खिलते हैं-------
धूप से जूझते हैं
तब
जब
तुम्हारे "इनडोर प्लांट"
आंधियों से सूखते हैं-------
तुम्हारे तपे हुये बंगले की दीवारों के बीच
तुम्हारे प्यार भरे सहलाव,अपनत्व में भी
तुम्हारे फूल
कायम नहीं रह पाते
तुम्हारी ही तरह
"सुविधाजीवी"हैं
तुम्हारे फूल--------
तुम गुलमोहर हो सकते हो
किसी आतप से झुलसे जीवन के लिये
छांव दे सकते हो
किसी जलते मन के लिये-------
तुम्हे बाजार मिल जायेगा
सुगंध का
सुविधा से------
तुम जूही,चमेली,गुलाब का
सुगंधित अहसास खरीद सकती हो
पर
गुलमोहर की छांव
नहीं मिलती बाजार में
नहीं बनता इसका "सेंट"
यह तो बस खिलता है
सौन्दर्य की सुगंध भरता है
आंखों से मन में
जीवन में--------
तुम भी गुलमोहर हो सकते हो
बस
अपने आंगन में
एक गुलमोहर लगा लो
सौन्दर्य का जादू जमा लो------------
"ज्योति खरे"
(उंगलियां कांपती क्यों हैं-------से )*****
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आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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साहित्य
बताने का फार्मूला
कुछ भी लिखा
साहित्य नहीं होता है
साहित्य
बताने का फार्मूला
साहित्यकार
की मोहर
की मोहर
हाथ की कलाई में
लगे हुऐ के
पास ही होता है
पास ही होता है
*****
तेरे मेरे में
चमेली का फासला–
कोरोना कैदी।
*****
दूसरी यात्रा राजस्थान की बनाई सोचा की चौड़ी चौड़ी सड़कें हैं और ट्रैफिक कम मिलेगा तो ड्राइविंग आसान हो जाएगी. कहाँ तो सुबह चलकर शाम को बुलेट या थंडरबर्ड से पुष्कर पहुँच जाते थे अब जयपुर ही मुश्किल लगने लगा. हमारी सवारी ने भी थकान की शिकायत कर दी. अब तो ढाबे की कड़क चाय या बियर ने भी जोश भरना बंद कर दिया. कुल मिला के भारत दर्शन मुश्किल लगने लगा. बहरहाल भारत दर्शन तो जारी है सिर्फ वाहन बदल गया है. आजकल चार चक्रीय ए सी डीज़ल रथ इस्तेमाल हो रहा है.
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यहाँ सबको अपने बिखरे टुकड़े
खुद उठाने पड़ते हैं
फिर उन्हें खुद ही जोड़ना पड़ता है।
बचपन में कागज का फटा नक्शा
जोड़ने की कवायद, तुमने भी की होगी।
*****
गधे की गदहागिरी से मुल्ला नसीरुद्दीन को मिला सबक
*****
गधे की गदहागिरी से मुल्ला नसीरुद्दीन को मिला सबक
मुल्ला नसीरुद्दीन ने इस हादसे पर काफी दिमाग लड़ाया और इस नतीजे पर पहुंचे कि कभी भी गधे को ऊँचे मकाम पर नहीं ले जाना चाहिए ! ऐसा करने पर वह उसी जगह को बर्बाद करता है ! ले जाने वाले को भी लतिया कर गिरा देता है और सबसे बड़ी बात खुद भी सर के बल नीचे आ गिरता है। यानी दान, ज्ञान और सम्मान सुयोग्य पात्र को ही देना चाहिए।
*****
"अपार्टमेंट कल्चर" से जुड़ने के बाद
छत की जगह बालकनी ने ले ली और घूमने की
जगह बिल्डिंग के "पाथ-वे" ने । मार्च की शुरुआत में
एक दिन आदतानुसार घूमने जा रही थी तो
उसने कहा - "मत जाओ ! जब तक महामारी पर
नियन्त्रण ना हो । बीमार लोगों को अतिरिक्त
सावधानी की जरूरत है ..तुम्हारे लिए हम भी अपने
लिए अतिरिक्त सावधानी बरतेंगे क्योंकि हमें तुम्हारी
जरुरत है ।"
*****
‘दरअसल,हम ‘कलेस’ से जुड़े हैं।इसका मतलब है ‘कवि,लेखक समिति’।हम काफ़ी समय से शहर के कवियों और लेखकों को बेहद उचित तरीक़े से ‘उठा’ रहे हैं।अभी पिछले दिनों ‘कलेस’ के ही सदस्य को ‘जुगाड़ीलाल कटोरा प्रसाद’ सम्मान मिला है।यह हमारी बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण है।सोशल-मीडिया पर ‘सन्नाटा’ तोड़ते हुए जब हमने आपको देखा तो ठीक आपकी तरह ही ‘अभिभूत’ हो उठा।हमारी योजना है कि आज शाम चार बजे हमारी ‘ई-चर्चा’ में आप प्रमुख वक्तव्य दें।अगर यह प्रयोग सफल हुआ तो हम जल्द ही आपके चालीस वीडियो बाज़ार में उतार देंगे।’ हमने अपनी पूरी योजना का ख़ुलासा कर दिया।उन्होंने सहमति देने में तनिक देरी नहीं दिखाई।उनकी इस उदारता को धन्यवाद देते हुए हम शाम चार बजे का इंतज़ार करने लगे।
*****
जिस दुनिया में स्त्रियों को अपने लिए एक कोना न मिलता हो, अपनी मर्जी की सब्जी बनाना उनकी लिस्ट से गायब हो चुका हो और पति व बच्चों की पसंद ही उनकी पसंद में ढल चुकी हो, जहाँ कपडे वो मोहल्ले वालों के हिसाब से पहनती हों और सोना जागना, मुस्कुराना घरवालों के हिसाब से होता हो स्त्रियों के जीवन में और जहाँ लॉकडाउन में घर का अर्थ बढती हुई हिंसा के आंकड़ों में दर्ज हो वहां मेरी ख्वाहिशों के घर का सपना तो फैंटेसी ही हुआ.
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" माँ !! अब आप भी मान लो पापा की बात कि भगवान नहीं होता है। भगवान या अल्लाह केवल इंसान के बनाए धर्मग्रथों और मंदिर-मस्जिदों में होता है। फिल्मों और टी वी सीरियलों में होता है। अगर सच में होता तो मुझे बचा लेता ना माँ उन वहशी दरिंदों से? बचा लेता ना ? "
" है ना पापा ? बोलो ना पापा। गाओ ना पापा .. प्लीज .. एक बार .. बस एक बार .. अपनी पर कटी परी के लिए - ' मेरे घर आई एक नन्हीं परी, एक नन्हीं परी .. एक नन्हीं परी ...' "
*****
अकारण नहीं कि संविधान सभा को स्पष्ट शब्दों में आगाह करते हुए डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि जब तक राजनीतिक लोकतंत्र की बुनियाद में सामाजिक लोकतंत्र न स्थापित हो जाए, अकेले अपने दम पर राजनीतिक लोकतंत्र अधिक समय तक नहीं चल सकता.
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झेलकर मार मौसम की जो अन्न उगाता है,
वह वीर माटी का क्यों फाँसी पर झूल जाता है?
भाषणों में जिसके नाम पर कोई वोट पाता है,
क्यों जीत के बाद उसको भूल जाता है?
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तुम्हारी यादों में होना
गर्म थपेड़ों के बाद
बारिश की ठंडी फुहार में
भीगने जैसा है
तुम्हारे साथ होना
एक उत्सव में होना होता है
रंग - बिरंगे मेले में होना है
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सबेरे तारे से पहले जागु हूं
बाबडी़ से पानी लाउ हूं
आगन में झाडु लगाउ हूं
रोटी बनाउ हूं
बैलो ने चार खिलाउ हूं
तब फेर स्कुल जाउ हूं
*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
--
रवीन्द्र सिंह यादव
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आभार रवींद्र जी आज की लाजवाब प्रस्तुति के साथ में बकबक-ए-उलूक को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
बेहतरीन सूत्रों से सजी सुन्दर व श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति . मेरे सृजन को चर्चा प्रस्तुति में शामिल करने के लिए सादर आभार .
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति सर ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार आज की इंद्रधनुषी प्रस्तुति के बीच मेरी एक रचना/विचार को जगह देने के लिए ...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुतीकरण जिसमें शब्द-सृजन का विषय और आदरणीय ज्योति खरे सर की रचना बहुत प्रभावी है.
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बेहतरीन. सभी को बधाई. सभी से अनुरोध कि गुलमोहर पर अपनी नई रचना शब्द-सृजन-20 के लिए अवश्य प्रेषित कीजिएगा.
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति। मेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर आभार आदरणीय रवींद्रजी।
जवाब देंहटाएं'मोटर साइकिल डायरी' शामिल करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर और सभी चयनित रचनाएँ भी बेहद उम्दा। मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए क्षमा चाहूँगी 🙏
शब्द सृजन 20 के बिषय गुलमोहर पर रचना भेज रहा हूं
जवाब देंहटाएंकृष्ण आधुनिक
प्रिय गुलमोहर
प्रिय गुलमोहर,
निस्संदेह तुम फल न देते हो
किन्तु,जब ग्रीष्म ऋतु में
सूर्य की तपिश से
मौत रूपी अग्नि बरसती है
तब तुम हरे भरे हो
जीवन जीने का संकेत देते हो
और जो तुम विशालकाय हो
तो तुम्हारी पत्तियां
नन्हीं नन्हीं ही तो हैं
तुम्हारे पुष्प जो असुगंधित हैं
भले ही हैं
कोई तोड़ता रोंदता तो नहीं है
हे गुलमोहर वृक्ष,
तुम्हारी नन्हीं नन्हीं
करीने से सजी पत्तियां
बहुत सुन्दर लगती हैं
और टहनियों में जड़े सुंदर पुष्प
और उनका रंग
बहुत भाते हैं
भाती है तुम्हारी छाया भी
ग्रीष्म ऋतु में।
कृष्ण आधुनिक
पिन 206126