स्नेहिल अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
सरहदों की रक्षा के साथ-साथ सेना को आतंकवाद एवं देश की अन्य आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। इस बीच सैनिकों की शहादत निरंतर जारी है किंतु चर्चा अचानक ग़ाएब हो गई है।
सैनिक परिवार में देश के लिए बलिदान होने का ऐसा जज़्बा होता है कि बेटे की शहादत पर बाप दुखी नहीं होता है बल्कि देश की मिट्टी के लिए काम आने पर फ़ख़्र करता है वहीं पिता की शहादत पर बेटा भयमुक्त होकर क़ुर्बानी के जज़्बे के साथ देशसेवा में जुटने को तत्पर रहता है। बेटा पिता की शहादत को अपने बलिदान से सार्थक करने हेतु रणभूमि में कूदने की बलबती इच्छा के साथ जीवन में समर्पण और त्याग का वरन करता है। यह परंपरा देश में देशप्रेम की अजस्र धारा बहाती रहती है।
-अनीता सैनी
आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
**
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
सरहदों की रक्षा के साथ-साथ सेना को आतंकवाद एवं देश की अन्य आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। इस बीच सैनिकों की शहादत निरंतर जारी है किंतु चर्चा अचानक ग़ाएब हो गई है।
सैनिक परिवार में देश के लिए बलिदान होने का ऐसा जज़्बा होता है कि बेटे की शहादत पर बाप दुखी नहीं होता है बल्कि देश की मिट्टी के लिए काम आने पर फ़ख़्र करता है वहीं पिता की शहादत पर बेटा भयमुक्त होकर क़ुर्बानी के जज़्बे के साथ देशसेवा में जुटने को तत्पर रहता है। बेटा पिता की शहादत को अपने बलिदान से सार्थक करने हेतु रणभूमि में कूदने की बलबती इच्छा के साथ जीवन में समर्पण और त्याग का वरन करता है। यह परंपरा देश में देशप्रेम की अजस्र धारा बहाती रहती है।
-अनीता सैनी
आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
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इसे बनवाने
के लिए कितने मजदूर,
कितने वर्ष काम करते रहे?
नक्शा
किसने बनाया था?
भवन कब
बनकर तैयार हुआ?
उस पर
कितनी लागत आई थी?
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क्या हालत थी घरवालों की
उन मेहंदी वाले हाथों की
आंखे देख जब फूट पडी
तब सुहाग की टूटी थी चूड़ी
दिल पर सदमों के छाले थे
जब हाथों ने मेहंदी के खून से सनक
वो मंगलसूत्र उतारे थे
**
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घर से चुपचाप निकल
दबाकर अपने पदचाप निकल,
अलख जगाने को मेरे मन,
मिटाने को संताप निकल।
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दिशाहीन दौड़
जंगली जानवरों को
थकाकर मार गई
सबको ... और
लपटें छूती रहीं
आसमान को !
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खिड़कियाँ खोल दो,
सूरज को अन्दर आने दो,
स्वागत करो हवा के झोंकों का,
नए मौसम की फुहारों का.
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काश ! सब समझ पाते
जो बिखरे हुए हैं
एक हो पाते।
काश! सब हो सकते दूर
अपने भूत से
भविष्य से बेफ़िकर हो
वर्तमान में जी पाते।
पापा ने वादा किया मगर,
वो लौट के अब ना आयेंगे।
वो गये जहां मां बतलाओ,
मुझको भी वहां तक पहुंचाओ।
मैं भी सरहद पर जाऊंगा,
पापा को लौटा लाऊंगा।
तेरी रोती इन आंखों में,
खुशियों की चमक मैं लाऊंगा।
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नन्हे नवनीत को है किसी फ़रिश्ते का इन्तजार
मयूरहंड : माता पिता का साया सर से
उठने के बाद चार वर्षीय नवनीत ज़िंदा तो है।
लेकिन जिंदगी की लड़ाई में अकेला रह गया है।
माता पिता का साथ छुटने के बाद बीमार
दादी के पल्लू को पकड़ गरीबी का मार झेल रहा है।
नन्हा नवनीत अपने घर के दरवाजे पर बैठ
किसी फ़रिश्ते के आने को लेकर राह ताकता रहता है।
मयूरहंड : माता पिता का साया सर से
उठने के बाद चार वर्षीय नवनीत ज़िंदा तो है।
लेकिन जिंदगी की लड़ाई में अकेला रह गया है।
माता पिता का साथ छुटने के बाद बीमार
दादी के पल्लू को पकड़ गरीबी का मार झेल रहा है।
नन्हा नवनीत अपने घर के दरवाजे पर बैठ
किसी फ़रिश्ते के आने को लेकर राह ताकता रहता है।
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कहने में
क्या है
कहता है
कि
लिखता है
बस
आग
और आग
लिखता है
दिखने में
दिखता है
**
स्वस्थ थे सुख ले न पाये ,
थी कहाँ परवाह तन की।
भविष्य के सपने सजाते,
ना सुनी यूँ चाह मन की।
व्याधियां हँसने लगी हैं,
सो रहे दिन रात जागे।
अब न अपने साथ कोई,
जो थे अपनी राह भागे।
**
सारा विश्व तो प्राजित हो गया,
अब तुम ही अपनी शक्ती दिखाओ,
हे ज्ञान दीप हे श्रेष्ठ भारत!
इस करोना पर भी विजय पाओ।
हमारे पास है अलौकिक ज्ञान,
उपनिशद और वेद पुराण,
संजीवनी की खोज करके तुम,
जग में सब का जीवन बचाओ।
**
ज़िन्दगी की हर गर्त मैं
हौसला हो विश्वास हो
तुम दूर हो या पास हो
मेरे दिल में एक ख़ुशनुमा एहसास हो...
दिल जब कभी उदास हो,
कोई दूसरा ना मेरे साथ हो,
दुनिया मेरे जब ख़िलाफ़ हो,
तुम्ही तब साथ होते हो,
**
'शब्द-सृजन-20 का विषय है-
"गुलमोहर "
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में)
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये
हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
**
आज सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
-अनीता सैनी
बहुत सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचर्चा- मंच की इस खूबसूरत श्रंखला में शामिल करने के लिए आभार अनिता जी :)
हटाएंसार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को नमन।
आभार आदरणीया अनीता सैनी जी।
आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति अनीता जी ,आज कई नए ब्लॉग से रूबरू होने को मिला ,सुंदर लिंक्स ,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं'जो मेरा मन कहे' को चर्चा में शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी मेहनत और लगन साफ़ झलकती है ! आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सधी हुई सुगढ़ प्रस्तुति अनीता जी . सभी चयनित सूत्रों के रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा, रचनाओं का सुंदर चयन!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार।
बहुत ही सुंदर रचनाओं का समागम
जवाब देंहटाएं