सादर अभिवादन!
रीतिकाल के प्रमुख कवियों में से एक कवि बिहारी
के नीति परक दोहे से शुक्रवार की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है ।
"नर की अरु नल-नीर की, गति एकै करि जोइ।
जेतौ नीचौ ह्वै चलै, तेतौ ऊँचौ होइ॥"
"बिहारी सतसई"
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प्रस्तुति का शुभारम्भ करते हैं आज के चयनित सूत्रों के साथ -
कंकड़-काँटों से भरी, प्यार-प्रीत की राह।
बन जाती आसान ये, मन में हो जब चाह।।
लेकर प्रीत कुदाल को, सभी हटाना शूल।
धैर्य और बलिदान से, खिलने लगते फूल।।
सरगम के सुर जब मिलें, बजे तभी संगीत।
मर्म समझ लो प्यार का, ओ मेरे मनमीत।४।
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सुन्दरकाण्ड, परम सात्विक वृत्तिधारी पवनपुत्र हनुमान के बल,बुद्धि एवं कौशल की कीर्ति-कथा है, उन्नतचेता भक्त की निष्ठामयी सामर्थ्य का गान है.
किष्किन्धाकाण्ड से तारतम्य जोड़ते हुए इस काण्ड का प्रारम्भ होता है जामवन्त के वचनों के उल्लेख से, जो मूलकथा से घटनाक्रम को जोड़ते हैं जिन पर सुन्दरकाण्ड का सम्भार खड़ा है .
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शासन-प्रशासन को और सामाजिक संगठनों को दिहाड़ी मजदूरों, कामगारों के साथ-साथ ऐसे परिवारों, ऐसे वर्ग की तरफ भी ध्यान देने की आवश्यकता है जो दिहाड़ी मजदूर, कामगार अथवा दिहाड़ी कमाई जैसा भले ही न हो मगर उसकी स्थिति लगभग इसी के जैसी है. रेहड़ी, पटरी वाले दुकानदारों के अलावा समाज में ऐसे हजारों दुकानदार हैं जिनकी पारिवारिक आजीविका उनके व्यापार पर ही केन्द्रित है.
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छटपटाते
प्यास से
व्याकुल हिरन के प्रान |
और नदियों
के किनारे
शब्द भेदी बान |
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छूट गया बाबुल का आँगन
छूटी सखियाँ सारी।
माता का आँचल भी छूटा।
रोती बहना प्यारी।
भाई संग बीते दिनों को
होगा नहीं भुलाना।
सात वचन जो आज लिए हैं
साथी भूल न जाना।
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कैद में मानव जाती होगी,
कब किसने सोचा था।
पर सवाल ??? युहीं उठते रहे
कभी सोचा न था ....
कभी सोचा न था….
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काल निर्वहन दिवाकर का
सृष्टि में व्याप्त व्यवधान का।
दिशाहीन बिखरे जन-जीवन
दृश्य शोक दोपहरी का।
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दौर तो बचपन वाला ही चल रहा है
बस हम जवान हुए बैठे हैं ।
घर के सुनहरे पलों को छोड़ कर
बाहरी किराएदार हुए बैठे हैं ।
कुछ महीने ज़्यादा पड़ने लगें
जहाँ हम वर्षों गुज़ार बैठे हैं ।
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बचपन में कभी 8-10 रुपये प्रति किलो मिलने वाली यह चीज अब 200-300 रुपये प्रति किलो के भाव मिलती है। एक समय था जब मई -जून के महीने में न जाने कितनी ही बार कभी पापा तो कभी बाबा जी खरबूजा और तरबूज के साथ ही यह भी खरीदा करते थे।
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एक सुनहरी धूप उतरती
खिलता सुख ऊर्जा पाकर
कोमल मादक मस्त महकती
कलियाँ अब ले अँगड़ाई
सत्य सलोना सुंदर सरगम
साज सजाती शहनाई।
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अथाह विस्तृत अंबर माँ।
निर्मल शीतल निर्झर माँ।।
मीठे पय का दरिया माँ।
सुख सागर का जरिया माँ।।
गहरा अतल समंदर माँ।
स्वर्ण प्रभा -सी खर है माँ।।
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हर तरह की मान-मनौवल, विनती, रुदन, समझाइश के बावजूद धृतराष्ट्र इस बार अपनी बात पर अटल रहे। अंत में हार कर सबने उनकी बात मान ली। वनागमन के लिए गांधारी, कुंती, विदुर तथा संजय भी साथ हो लिए। नगर छोड़ने के पश्चात इन्होंने कुरुक्षेत्र के पास वन में रहने का निश्चय किया।
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बात उन दिनों की हैं जब मैं 9 वी क्लास में थी। मैं और पापा, दुमका ( झारखंड ) से मुजफ्फरपुर (बिहार) की ट्रेन में सफर कर रहे थे।उन दिनों रिजर्वेशन का खास मसला नहीं होता था। जेनरल कम्पार्टमेंट में भी सफर आरामदायक ही होता था। आज की जैसी आपा -धापी तो थी नहीं। ज्यादा से ज्यादा सफर जरूरतवश ही की जाती थी।
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आज मैंने
रेल-पटरियों के मध्य
एक ओर
पटरी को सिरहाना समझ
इत्मीनान से सर रखे
दूसरी ओर पाँव पसारे
लकड़ी / सीमेंट के स्लीपर पर
टिकाए पीठ
बेफ़िक्र सोते हुए
कृशकाय मज़दूर देखे
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'शब्द-सृजन-21 का विषय है-
"किसलय"
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में)
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये
हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
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आपका दिन मंगलमय हो 🙏
"मीना भारद्वाज"
बहुत सुंदर रचनाओं का संग्रह!
जवाब देंहटाएंसार्थक पठनीय लिंकों की सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
बेहतरीन संकलन आ0
जवाब देंहटाएंखुबसूरत संकलन |आपका हृदय से आभार |आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें |सादर अभिवादन |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और विचारणीय भूमिका मीना दी ,
जवाब देंहटाएंचर्चामंच के चर्चाकारों के संदर्भ में भी बिहारी का यह नीति परक दोहा सटीक बैठता रहे, आप सभी के लिए मैं ऐसी मंगलकामना करता हूँ। प्रणाम।
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार मीना जी।
जवाब देंहटाएं'जो मेरा मन कहे' को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसादर
बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति मीना जी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ,सादर नमन
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जवाब देंहटाएंमीना जी,
मेंरे द्वारा लिखे इस लेख (कभी सोचा न था ....) को आपने पढ़ा उसके लिए धन्यवाद और "चर्चा मंच" पर इस लेख की प्रविष्टि के लिए मैं आपका आभारी रहूँगा।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ....💐💐💐
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीया मीना दीदी. मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार.
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