स्नेहिल अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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बादल अपने मौसम में ही सुहाने लगते हैं किंतु कभी-कभी असमय बादलों के लिए गुहार लगाई जाती है। बादलों की जीवन में व्यावहारिक उपयोगिता हो या साहित्य के कल्पनालोक में क़िस्म-क़िस्म की परछाइयाँ हों सभी मिलकर बादलों को जीवन से जुड़ा महत्त्वपूर्ण अंग मानते हैं।
अकाल हो, जंगलों की आग हो, प्रदूषण से भरा वातावरण हो; तपती सड़कों पर झुलसाती लू में हज़ारों किलोमीटर के सफ़र पर पैदल प्रवासी मज़दूर हों या फ़सल को पानी की सख़्त ज़रूरत तब बादल बहुत याद आते हैं। बादलों से बरसने की विनती की जाती है।
-अनीता सैनी
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आज की चर्चा का शुभारंभ
आदरणीय ब्रजेंद्रनाथ मिश्र जी कविता से करते हैं -
कहाँ गए बादल, उन्मत्त पागल?
उनका पागलपन कहाँ खो गया?
कहाँ गई वो आसक्ति?
आज क्यों रोकते नहीं?
विरक्त क्यों हो गए?
भागते कहाँ हो?झूमते क्यों नहीं बागों में?
गाते क्यों नहीं, कजरी के गीत
उनका पागलपन कहाँ खो गया?
कहाँ गई वो आसक्ति?
आज क्यों रोकते नहीं?
विरक्त क्यों हो गए?
भागते कहाँ हो?झूमते क्यों नहीं बागों में?
गाते क्यों नहीं, कजरी के गीत
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आइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की रचनाएँ-
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बादल से विनती (कविता)
बादल से विनती (कविता)
धूप हाँफती,
बंजर में ठहरती, पूछती - सिसकती,
आहें भरती, उच्छ्वासें छोड़ती।
गर्म हवाओं से बातें करती-
ये मौसम तो था,
धरती की गोद में,
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शब्दों का क्या है !
जितने मर्ज़ी खर्च कर लो
मगर शब्द
कहने में हलके
और सुनने में
भारी होते हैं
कहने वाला
बस कह देता हैं
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दर्पण, तू लोगों को
आईना दिखाता है
बड़ा अभिमान है तुम्हें
अपने पर ,
कि तू सच दिखाता है।
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देश दुनिया में सैकड़ों ऐसी फ़िल्में बनती रही हैं !
पहले ऐसी मूवीज को प्रयोगात्मक फिल्मों का नाम दिया जाता था।
कुछेक को छोड़ दर्शकों की पसंद भी मिली-जुली ही होती थी।
कम ही लोग ऐसी फ़िल्में पसंद करते थे, खासकर हमारे देश में।
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“अवस्था कल्पना से ज्यादा दुरूह और भयंकर है।
यहाँ देश के सम्पन्न और समर्थ लोग उपस्थित हैं।
मैं यह जानना चाहता हूँ कि इस दुर्दिन में,
राहत कार्य करने का उत्तरदायित्व कौन वहन करने को प्रस्तुत है?”
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अक्षयवट के मूल में
ब्रह्मदेव का होता निवास
मध्य भाग में नारायण
अग्र में करते शंकर वास.
वटवृक्ष के नीचे ही
यमपूजा का है विधान
मांगी थी सावित्री ने
यम से अपने पति का प्राण
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हे
कान्हा,
कंसारी,
संग ग्वाल,
बने गोपाल
यशोदा के लाल
राधा के प्रीति में
रचाएं हो महारास,
प्रणाम रणछोड़ नाथ ।
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क्या
परेशानी है
किसी को
अगर
कोई
अपने
हिसाब
का
सवेरा
अपने
समय
के
हिसाब से
करवाने
का
दुस्साहस
करता है
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नहीं प्रेम उसको वो मकरन्द चाहता
इक बार लेकर कभी फिर न आ
मासूम गुल को बहकाये ये जालिम
स्वयं में फँसाने लगा
कभी पास आकर कभी दूर जाकर
अदाएं दिखाने लगा
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माँ वसुंधरा का भी रक्षण करना होगा
अर्थव्यवस्था के साथ साथ,
सभी में जागृति को लाना होगा
अब तक हुई भूल को नही दौहराना हो
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गीली रेत पर
छोड़ चले थेअपने पदचिन्ह...
तय करते ल..म्बा सफर
पहुँच गए कितनी दूर
अपनी धरती ,अपना देश ,
अपना गाँव ,अपनी मिट्टी
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शब्द-सृजन-22 का विषय है-
मज़दूर/ मजूर /श्रमिक/श्रमजीवी
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में)
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
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आज सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।
-अनीता सैनी
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अनीता सैनी जी
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम
अभी कुछ रचनाये ही देख पायी हूँ। ..एक एक क्र के सब पढ़ती हूँ
सभी लिंक्स बहुत आकर्षक हैं ....
जैसे की
अक्षयवट के मूल में
ब्रह्मदेव का होता निवास
मध्य भाग में नारायण
अग्र में करते शंकर वास.
वटवृक्ष के नीचे ही
यमपूजा का है विधान
मांगी थी सावित्री ने
यम से अपने पति का प्राण
बहुत ही सुंदर संयोजन
सभी लेखकों को बधाई
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
पठनीय लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
खूबसूरत प्रस्तुति प्रिय अनीता । सभी रचनाएँ एक से बढकर एक । मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा अंक 👌
जवाब देंहटाएंअनिता जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
बहुत ही सुंदर चर्चा प्रस्तुति, मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार।
सधन्यवाद ... 💐💐
आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर भूमिका के साथ लाज़बाब लिंकों का चयन अनीता जी ,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को मान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा मंच प्रस्तुति उम्दा उत्कृष्ट लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार।
सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।
बहुत अच्छे सूत्र।
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