स्नेहिल अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
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दुनियाभर में फैली महामारी कोरोना ने मानव सभ्यता के इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया है।
समाज का विभाजित रूप स्पष्ट रूप से शहरों में और सड़कों पर नज़र आया है।
समाज का विभाजित रूप स्पष्ट रूप से शहरों में और सड़कों पर नज़र आया है।
मानव समाज की यह बिडंबना ही है कि हम कोरोना संक्रमण के चलते अनेक परिस्थितियों में ख़ुद को असहाय पा रहे हैं।अनेक समाचार मानवता को शर्मसार करने वाले आ रहे हैं
तो कुछ मानवता को सुकून देने वाली ख़बरें भी है।
तो कुछ मानवता को सुकून देने वाली ख़बरें भी है।
-अनीता सैनी
-- आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसन्द की कुछ रचनाएँ-
-- आइए अब पढ़ते हैं मेरी पसन्द की कुछ रचनाएँ-
**
निर्णय ज़रूरी है
घर पहुंचने की चाहत में--
सोचा हुआ
कहां हो पाता है पूरा
सच तो यह है कि
घर से निकलने
और लौटने का रास्
दो सामानंतर रेखाओं से
होकर जाता है
एक पर पांव होते हैं
और दूसरी पर सिर
**
चुटकी भर सिंदूर
कुछ यादें ऐसी होती हैं जो पीछा नही छोड़तीं ...
यादों की अमराई में वक्त बे वक्त दस्तक दे ही देती हैं……
ऐसी ही आज की शाम है....
बच्चे कहीं गये हुए हैँ .....!
पतिदेव दोस्तों के साथ बैठे हैं और मैं ख्यालों में जाने कहाँ घूम रही थी....!
**
उठो पापा बक्से में क्यों सोये हो
अंतर्मन
विश्वास किया मन से
सब पा लिया पल में
जो भी चाहा मन में
वो सब पाया पल में
**
"ख्वाब"
कस के मुट्ठी में बंद हैं वे माँ से जिद्द कर लिए सिक्के की तरह… स्कूल से आते सम खानी है टॉफी संतरे वाली..जीरे वाली… उस वक्त.. **
चकित हुआ जो मन देखेगा
शिव सूत्र में शिव कहते हैं विस्मय योग की भूमिका है.
४३४. लॉकडाउन में
है इश्क़ अग़र
है इश्क़ अगर तो जताना ही होगा
दिलबर को पहले बताना ही होगा
पसंद नापसंद की है परवाह कैसी
तोहफ़े को पहले छुपाना ही होगा
**
कोरोना - एक सृजनात्मक दृष्टिकोण
टूट रहा परिवार है...
रग -रग में स्वार्थ भरा , आपस में न प्यार है .
खुद की खातिर जीते हैं ,टूट रहा परिवार है।
पाल पोस कर किया बड़ा ,छाती लगा माँ बाप ने
अब तो उनकी आहट से ही ,लगते डर से काँपने
छीन कर लाठी धक्का देते ,सिसकता घर द्वार है।
**
विता - कहानी बचपन की
निर्णय ज़रूरी है
निर्णय ज़रूरी है
एक चिड़िया के लिए
एक माँ के लिए,
आंधियों का क्या कहना,
कई बार दूसरों की नज़र का सुकून भी
गले से नीचे नहीं उतरता
**घर पहुंचने की चाहत में--
सोचा हुआ
कहां हो पाता है पूरा
सच तो यह है कि
घर से निकलने
और लौटने का रास्
दो सामानंतर रेखाओं से
होकर जाता है
एक पर पांव होते हैं
और दूसरी पर सिर
**
चुटकी भर सिंदूर
कुछ यादें ऐसी होती हैं जो पीछा नही छोड़तीं ...
यादों की अमराई में वक्त बे वक्त दस्तक दे ही देती हैं……
ऐसी ही आज की शाम है....
बच्चे कहीं गये हुए हैँ .....!
पतिदेव दोस्तों के साथ बैठे हैं और मैं ख्यालों में जाने कहाँ घूम रही थी....!
**
उठो पापा बक्से में क्यों सोये हो
घर में बहुत भीड़ लगी थी, एक तरफ माँ बिलख रही
एक तरफ दादी, दादा पुत्र शोक में एक कमरे में मौन सिर झुकाए
बीड़ी पर बीड़ी सुलगाये जा रहा था,
बड़ी बहन रजनी जो मात्र आठ साल की थी सबक़े दुख की साझीदार हो रही थी
सायद उसको कुछ आभास था और समझ भी,
कभी माँ के गले लग फफकती
हुयी रोती कभी दादी के आंसू
और कभी दादा की जलती बीड़ी हाथ से दूर फेंक रही थी।
चार साल का वैभव समझ नहीं पा रहा था ये क्या हो रहा है,
**अंतर्मन
विश्वास किया मन से
सब पा लिया पल में
जो भी चाहा मन में
वो सब पाया पल में
**
"ख्वाब"
कस के मुट्ठी में बंद हैं वे माँ से जिद्द कर लिए सिक्के की तरह… स्कूल से आते सम खानी है टॉफी संतरे वाली..जीरे वाली… उस वक्त.. **
चकित हुआ जो मन देखेगा
शिव सूत्र में शिव कहते हैं विस्मय योग की भूमिका है.
योग में स्थित होने का अर्थ है समता में टिक जाना,
जीवन में गहन सन्तुष्टि का अनुभव करना अथवा कृतकृत्य हो
जाना. विस्मय से योग की इस यात्रा का आरंभ होता है.
**४३४. लॉकडाउन में
महसूस करें कि सुबह-सुबह
हवा कितनी ताज़ा होती है,
फूल कितने सुन्दर लगते हैं,
तितलियाँ कैसे मचलती हैं.
**है इश्क़ अग़र
है इश्क़ अगर तो जताना ही होगा
दिलबर को पहले बताना ही होगा
पसंद नापसंद की है परवाह कैसी
तोहफ़े को पहले छुपाना ही होगा
**
कोरोना - एक सृजनात्मक दृष्टिकोण
सच्चाई यही
है कि दुनिया भर में, कमोबेश प्राय: परिस्थिति वैसी ही चल रही
दुनिया भर में
अब तक लगभग 44 लाख से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं,
3 लाख के करीब अपनी जान गँवा चुके हैं। अमेरिका में मरने वालों की संख्या 84 हजार
से ज्यादा हो चुकी है। 5 देशों में मरने वालों
की संख्या बीस हजार से ज्यादा हो चुकी है।
**टूट रहा परिवार है...
रग -रग में स्वार्थ भरा , आपस में न प्यार है .
खुद की खातिर जीते हैं ,टूट रहा परिवार है।
पाल पोस कर किया बड़ा ,छाती लगा माँ बाप ने
अब तो उनकी आहट से ही ,लगते डर से काँपने
छीन कर लाठी धक्का देते ,सिसकता घर द्वार है।
**
विता - कहानी बचपन की
**
छिनी हाथ से रोजी-रोटी
पास नहीं है कौड़ी
खत्म हुई वो पूँजी भी
जो श्रम से थी जोड़ी
भूख डसे नागिन सी बनकर
जीने के हैं लाले
भटक रहा जीवन सड़कों पर
पग में पड़ते छाले
**
जस को तस सीख न पाया वो
व्यवहार कटु न सह पाता
क्रोध स्वयं पीकर अपना
निशदिन ऐसे घटता जाता
निर्लिप्त दुखी सा बैठ कहीं
प्रभुत्व स्वयं का फिर खोना
इस गरम मिजाजी दुनिया में
शीतल से चाँद का क्या होना
**
'शब्द-सृजन-21 का विषय है-
"किसलय"
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में)
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये
हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
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आज सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
-अनीता सैनी
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सुंदर रचना सुंदर चर्चा प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंलाजवाब सुगढ़ व श्रमसाध्य चर्चा प्रस्तुति अनीता जी । सभी लिंक्स अत्यंत सुन्दर । चर्चा में मेरी रचना साझा करने के लिए हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंअनीता जी,
जवाब देंहटाएंमेरे द्वारा लिखे इस लेख को आपने पढ़ा और "चर्चा मंच" पर इस लेख को चर्चा के लिए चुना जिसके लिए मैं आपका आभारी रहूँगा। और आज के अंक में चुनी गई सभी कृतियां वाकई प्रशंसनीय है।
साभार ...💐💐💐
उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
बेहतरीन चर्चा अंक अनीता जी ,आज की कई हृदयस्पर्शी रचनाओं को पढ़कर मन इतना व्यथित हो गया कि समझ ही नहीं आ रहा हैं कि क्या लिखुँ ,बस दुआ ही एक मात्र रास्ता दिख रहा हैं,सभी को सादर नमन
जवाब देंहटाएंआज जिधर भी नज़र जाती है, उधर ही सैकड़ों मीलों का सफर तय करते गरीब मजबूर लोगों की तस्वीरें, विडिओ, ख़बरें छाई नजर आती हैं ! दुखद है यह सब ! पर उससे भी दुखद है, संवेदनहीनता ! हालांकि यह भी सच है कि बहुतेरे लोग बिना किसी अपेक्षा के अपनी तरफ से भरसक कोशिश कर रहे हैं ! पर ऐसी तस्वीरें डाल कर व्यवस्था को गरियाने, दोष लगाने या अपने पूर्वाग्रहों को तुष्टित करने वालों को इधर अपनी शक्ति नष्ट करने, दूसरों की भावनाओं को भड़काने, सिर्फ एक ही पहलू को सामने लाने के बजाय क्या यथासंभव उन बेसहारा लोगों की मदद नहीं करनी चाहिए ? इन फोटुओं, कविताओं या लेखों से उनका कुछ भला नहीं होने वाला ! उन्हें तो कुछ सार्थक चाहिए ! उनके पैरों में पड़े छालों को दिखाने की बजाय उन्हें दवा और एक चप्पल की ज्यादा जरुरत है ! बिस्कुट का एक पैकेट और पानी की बोतल, कुछ देर के लिए ही सही, उनकी क्षुधा तो शांत कर ही सकते हैं ! एक टोपी या छाता उनको तपती धूप से बचाने का उपाय तो कर ही सकते हैं ! यह सही है कि हजारों लोगों की कोई एक सहायता नहीं कर सकता पर कोई एक किसी एक का कुछ तो कष्ट हर ही सकता है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय रचनाओं की खबर देती सुंदर चर्चा ! आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंइस चर्चा अंक में प्रकाशित सभी रचनाएं अपने अन्दर गुढ़ अर्थों के समेटे हुए है । समाज की नियत एवं अपने भाग्य की नियति दोनों को ही बहुत ही सार्थक तरीके से समावेश किया गया है । सभी आदरणीय/आरदणीया को सादर धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना कहानी बचपन की जोकि एक मातृबोली की रचना है को सम्मिलित करने के लिए विशेष आभार । - अखिलेश कुमार शुक्ल
रचना को सम्मलित करने के लिये अभार।
जवाब देंहटाएंसमसामयिक परिदृश्य को प्रस्तुत करती भूमिका।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई सखी,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार।
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविभिन्न विडम्बनाओं को दर्शाती विचारणीय, सुन्दर, सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु अत्यंत आभार एवं धन्यवाद।