सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
कल मातृदिवस पर माँ को समर्पित सृजन प्रशंसनीय एवं सराहनीय रहा। वर्ष में सिर्फ़ एक दिन माँ का स्मरण हमारी संस्कृति नहीं है बल्कि हमारे लिए तो माँ सदैव स्मरणीय है। जननी के ऋण से उद्धार होना संभव नहीं।
सुप्रसिद्ध शायर निदा फ़ाज़ली जी (ग्वालियर में कई बार उनसे रूबरू होने का मौक़ा मिला ) माँ को याद करते हुए कहते हैं
"बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी मां ,
याद आता है चौका-बासन,
चिमटा फुंकनी जैसी मां।
बांस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी मां
चिड़ियों के चहकार में गूंजे राधा-मोहन अली-
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंडी जैसी मां।
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां।
बांट के अपना चेहरा, माथा, आंखें जाने कहां गई
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां।"
गीत
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
कल मातृदिवस पर माँ को समर्पित सृजन प्रशंसनीय एवं सराहनीय रहा। वर्ष में सिर्फ़ एक दिन माँ का स्मरण हमारी संस्कृति नहीं है बल्कि हमारे लिए तो माँ सदैव स्मरणीय है। जननी के ऋण से उद्धार होना संभव नहीं।
सुप्रसिद्ध शायर निदा फ़ाज़ली जी (ग्वालियर में कई बार उनसे रूबरू होने का मौक़ा मिला ) माँ को याद करते हुए कहते हैं
"बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी मां ,
याद आता है चौका-बासन,
चिमटा फुंकनी जैसी मां।
बांस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी मां
चिड़ियों के चहकार में गूंजे राधा-मोहन अली-
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंडी जैसी मां।
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां।
बांट के अपना चेहरा, माथा, आंखें जाने कहां गई
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी मां।"
-निदा फ़ाज़ली
आइए पढ़ते हैं माँ को समर्पित कुछ रचनाएँ-
उच्चारण पर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
*****
माँ तो माँ होती है,
माँ तो बस माँ होती है।
वह जगती हैं रातों में,
ठंड में, और बरसातों में।
वह दर्द सहती है ,
वह मौन रहती है।
वह रहती है ठहरी - सी,
छोटे से घर की गठरी सी।
वह विस्तृत कहाँ-कहाँ होती है!
माँ तो बस माँ होती है।
*****
माँ..
तुम हो साहस की सौगात,
चिरजीवन का साया बनी हर बार
तुम्हारे अंतस में छिपी हूँ मैं,
बन करुणा का कोमल किरदार।
*****
वंदनीय है वह चरण
जिन्होंने जन्म मुझे है दिया...
बहुत दुख सहे है उस माता ने...
तब जाकर अनमोल चरण है पाया...🙏
*****
' आँख ज्यादा दर्द कर रही है अम्मा ? '
' हाँ बुढ़ापे की आँखें हैं न | '
' दो - तीन दिन से आँखों में पानी भी अधिक आ रहा है |
' ठीक हो जाएँगी | '
*****
पाता बा आजु 'मदर्स डे' ह!
सभे केहु इयादरता अपना माई के।
अइसे हम भुलाइल कब रहनी ह तोहरा के।
जे इयाद करती। हमनी के भले बिलाला निहर छोड़िके चली दिहलू।
मने का बताई कि कब बिसरेलु। सभे ओरी त लउकबे करेलू।
आम के आचार में! मकर सक्रंति के लाई-तिलुआ में! छठी घाट पर!
जिउतिया के नहान में! होली के रंग-अबीर में! दीवाली के दियरी-बाती में!
*****
कदम कदम पर राह दिखाता
कोई चलता साथ हमारे,
सुख-दुःख में हर देशकाल में
करता रहता कई इशारे !
नहीं अकेले पल भर भी हम
कोई जागा रहता निशदिन,
पल भर हम यदि थम कर सोचें
कौन साथ ? जब आये दुर्दिन !
*****
जिस माँ के बिना इस दुनिया की कल्पना नहीं की जा सकती;
उसी के लिए हमने एक दिन निर्धारित कर दिया....!
माँ या उसका ममत्व कोई चीज या वस्तु नहीं है कि उसके संरक्षण की जरुरत हो !
नाहीं वह कोई त्यौहार या पर्व है कि चलो एक दिन मना लेते हैं ! अरे !
जब भगवान के लिए कोई दिन निर्धारित नहीं है; तो फिर माँ के लिए क्यों ?
भगवान भी माँ से बड़ा नहीं होता
वह तो खुद माँ के चरणों में पड़ा रह खुद को धन्य मानता है !
*****
माँ की ममता सा नही कोई भी देखा अपना
खून के आँसू से औलाद भी पाला अपना
********************************
पोछने को नही आता यहाँ कोई आँसू
कौन है माँ के सिवाए हमें कहता अपना
*****
शब्दों में बयान नहीं हो सकता
यह तो वही जानते है जिन्हें
यह नसीब नहीं होता |
हैं बहुत हतभागी वे जो
द्वार तक तो पहुंचे भी
पर रहे दूर दौनों से
कभी दुलाराए नहीं गए |
*****
खोकर निज अस्तित्व हमेशा
शिशु की पहचान बनाती है।
उसके भविष्य की ज्योति हेतु
निज वर्तमान सुलगाती है।।
खुद के वो सपने त्याग सदा
बच्चे के स्वप्न सँजोती है।
माँ केवल माँ ही होती है।।
इन सारे नजारों ने हमें हमारे मूल्यों,
संस्कारों के साथ मौजूदा नौजवानों की सोच को पढ़ने का एक अवसर दिया है।
इन्होंने हमें बताया है कि पुराने मूल्यों को रिवाइव करना ही होगा
ताकि समाज उच्छृंखल न होने पाए और उसके मूल्य भी बचे रहें।
महिलाओं की इन लंबी लाइनों ने बताया है समाज को एक चुनौतीपूर्ण रिवाइवल की जरूरत है
और जब समाज बदलेगा तो जाहिर है कि कानूनों को भी बदला जाना चाहिए।
*****
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में)
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये
हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
'शब्द-सृजन-21' का विषय है-
'किसलय'
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में)
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये
हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
चर्चा की सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी आपका आभार।
चर्चा की सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बहुत अच्छी सामयिक चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमातृ दिवस पर सराहनीय रचनाओं से सजी सुंदर प्रस्तुति, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंमाता के स्नेहिल भाव की बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमाँ को समर्पित लाजवाब प्रस्तुति. मेरी कविता को स्थान देने हेतु सहृदय आभार आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसादर
मातृ दिवस पर प्रस्तुत बेहतरीन चर्चा ...सुन्दर और सराहनीय लिंक्स का लाजवाब संयोजन .
जवाब देंहटाएंमाँ की वातसल्य रस में डूबी मनमोहक लिंक्स ,समयाभाव के कारण सभी को पढ़ नहीं पाई हूँ, पर पढूंगी जरूर। सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ,बहुत ही सुंदर प्रस्तुति सर ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रवींद्र जी, पूरा का पूरा कलेक्शन बहुत शानदार, एक से बढ़कर एक रचनायें पढ़वाने के लिए हम आपके आभारी रहेंगे
जवाब देंहटाएं