सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
पढ़िए कविवर दुष्यंत कुमार जी की कविता 'सूना घर' का एक अंश-
सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।
पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर
अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर
खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।
पर कोई आया गया न कोई बोला
खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला
आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।
पढ़िए कविवर दुष्यंत कुमार जी की कविता 'सूना घर' का एक अंश-
सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।
पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर
अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर
खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।
पर कोई आया गया न कोई बोला
खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला
आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।
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शब्द-सृजन-23 का विषय है-
मानवता /इंसानियत
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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शब्द-सृजन-23 का विषय है-
मानवता /इंसानियत
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आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये
हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
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मन ने चाहा
देखना .....
उन पद चिन्हों को
पुनः.......
पर वक्त की लहरें
भला क्यों छोड़ेगी
उन के नामो निशान ।
**
उम्र गुजर जाती है सबकी
लिए एक ही बात ,
सबको देते जाते है हम
आँचल भर सौगात ,
फिर भी खाली होता है
क्यों अपने मे आज ?
**
भूल कर भी दिल से वह जाता नहीं
बिन बुलाये घर में जो आता नहीं
गूँजती है धुन उसकी बांसुरी की
जय के नगमे जो कभी गाता नहीं
**
मैं अभी थका नहीं
मैं अभी रूका नहीं
एक प्रण है मेरा
अंत
मेरा गुमनाम ना हो
सोच
के भँवर में
मन
के अँधेरे में
मैं
कभी फँसा नहीं
मैं
कभी बुझा नहीं
आज सुबह अधमरे अख़बार के पलटे पन्ने,
उठते तूफ़ान की नहीं कोई ख़बर।
शहर की ख़ामोशी में चारों ओर शांति ही शांति
नहीं कोहराम का कोई कोंधता आलाप।
**
"मैं सोया और स्वप्न देखा
कि जीवन आनन्द है
मैं जागा और देखा कि
जीवन सेवा है
मैंने सेवा की
और पाया कि
सेवा आनंद है”
—रवीन्द्रनाथ टैगोर
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बिखर गया घर था वो प्यारा
पवन उड़ाती सब आये !
चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यूँ आकार प्रिये !
मन का आवाँ तपता जाये
हर अक्षर गहन गायेगा !
मन कहता है तू मुझको लिख
सब खुद ही बन जायेगा !
**
इम्तहान में जिन्हें मिले ज्यादा कल अंक थे
कौन जानता था कि वे मेरे माथे के कलंक थे
जिनके आगे-पीछे हम घूमते भटकते थे
राजा बेटा, राजा बेटा कहते नहीं थकते थे
आज वे कहते हैं कि माँ-बाप मेरे रंक थे
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जिन सड़कों पर हम चले
जिन पर चलते हुए
कुचले गए भारी वाहनों से
उन सड़कों से पहले
कुछ और था वहाँ
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बाख़बर करें हम जनता को,
जागरूक कर मेटें सबका डर।
मुश्किल पल में भी संग चलें,
हम पहुंचे हर इक गांव शहर।।
हैं लक्ष्य रखें 'अर्जुन'-सा हम,
'सहर्ष' बढ़े पथ पर प्रवीर।
जग के जंगम में संगम ले,
हैं हम वो ख़बर के शूरवीर।।1।।
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3साल बाद सास ससुर जी आ रहे है जब से सुना था मन में बहुत घबराहट थी
कि कैसे मैनेज होगा सब घर और ऑफिस दोनों ,असमंजस में डूबे हुए सोचा के 2 या 3 दिन की तो बात है
छुट्टी ले लूंगी,हमारी लव मैरिज थी शादी के बाद सारे रिश्ते सरप्राइज पैकेज जैसे होते हे
जो आप ने रिश्ता तय होते समय देखा होता उस के विपरीत ।
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लम्हा जैसे देर तक ठिठका रह गया...भौतिकी के समस्त रस्मो-रिवाज को परे सरकाते हुए।
रात के तीसरे पहर आया था उसका पीटर वापस और वो कानों में घड़ी की टिक-टिक की
थकन से बेपरवाह जाने क्या तो सुन रही थी। रफ़ी...लता...आह काश!
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उसने कहा ठीक है
पर लड़ाई बराबरी की होनी चाहिए
मेरे पास परमाणु अस्त्र नहीं हैं
और तुम्हारे पास?
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगले सोमवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
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बहुत सुन्दर सोमवासरीय चर्चा अंक।
जवाब देंहटाएं--
आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी।
आप सबका दिन मंगलमय हो।
साधुवाद रविन्द्र जी मेरी रचना को सोमवार के चर्चा अंक में शामिल करने। के लिए
जवाब देंहटाएंयहां संकलित सभी रचनाएं विविधतपूर्ण और सारगर्भित है
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति. सभी रचनाएँ बेहतरीन आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार.
दुष्यन्त कुमार के कवितांश से चर्चा का शुभारंभ और बेहतरीन सूत्रों से सजी सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंको से सजी सुन्दर प्रस्तुति ,सादर नमस्कार सर
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार ,सुंदर प्रस्तुति ,सभी रचनायें अति उत्तम ,सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ,सब बढ़िया ,आपका हार्दिक आभार ,रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद ,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रविन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंलाजबाव चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभार आपका।
जवाब देंहटाएं