शुक्रवार की प्रस्तुति में चर्चा मंच पर
आपका हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन ।
आज की चर्चा का आरम्भ
महादेवी जी के "दीपशिखा" कवितांश से -
सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं
क्षितिज कारा तोडकर अब
गा उठी उन्मत आंधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास तन्मय तड़ित बांधी,
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!
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आइए अब बढ़ते हैं आज के चयनित सूत्रों
की ओर -
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होती जेठ-अषाढ़ में, जब गरमी भरपूर।
अमलतास के पेड़ पर, तब आ जाता नूर।।
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रवि बरसाता है अनल, बढ़ा धरा का ताप।
सारा जग है झेलता, कुदरत का सन्ताप।।
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लू के झाँपड़ झेल कर, खा सूरज की धूप।
अमलतास का हो गया, सोने जैसा रूप।।
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इंसानियत हूँ
*** एकलव्य की मनोव्यथा
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इंसानियत हूँ
अनुसरण से आचरण में ढली
इंसान में एकनिष्ठ सदभाव हूँ।
दग्धचित्त पर शीतल बौछार
सरिता-सा प्रवाह इंसानियत हूँ।
गूँगी गुड़िया पर अनीता सैनी *** एकलव्य की मनोव्यथा
एक मित्र का फोन आया कहने लगा "तुम्हें कोई पर्ची मिली क्या"
मैंने कहा कैसी पर्ची, वो बोला " जब मिलेगी तो पढ़ना, मुझे तो मिली है पर बताऊंगा नहीं क्या लिखा है" मेरे आग्रह के बाद भी उसने नहीं बताया. बात खत्म होने के कुछ देर बाद पर्ची का ख्याल दिमाग से गायब हो गया. दो दिन बाद फिर एक मित्र का फोन आया "कोई पर्ची मिली क्या."
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राह को स्वेद से सींचता हुआ
रिक्शे को दम से खींचता हुआ
बाहों पर उभरी नसें लिये
वह कृशकाय, वृद्धावस्था में
रिक्शे को लिए जा रहा है
आसमान में धूप चढ़ी है
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प्रशांत और ऋषभ नाम के दो बहुत ही
अच्छे और गहरे दोस्त थे। दोनों एक ही स्कूल में और एक ही कक्षा में पढ़ते थे। दोनों के दोनों पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी रुचि रखते थे। स्कूल में एक दिन साइकिल प्रतियोगिता रखी गई जिसमें प्रशांत हमेशा पहला नंबर आता और ऋषभ दूसरा नंबर आता था।
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धर्म ज्ञाता नरश्रेष्ठ भरत ने, निकट पहुँच कर आश्रम के
रुकने का आदेश दिया, सभी को आश्रम से कुछ पहले
अस्त्र-शस्त्र उतार कर रखे, राजोचित निज वस्त्र भी बदले
दो रेशमी वस्त्र पहनकर, पैदल ही गए उनसे मिलने
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मुझे नहीं देखने
शहरों से गाँवों की ओर जाते
अंतहीन जत्थे,
सैकड़ों मील की यात्रा पर निकले
थकान से चूर
स्त्री, पुरुष, बूढ़े और बच्चे.
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आज बागवानी से सम्बंधित कुछ बेहद साधारण मगर महत्पूर्ण बातें करेंगे |
पहली बात यदि आप बागवानी शुरू करने की शुरुआत करने की सोच रहे हैं या मन बना रहे हैं तो अभी जून तक का समय बिलकुल प्रतिकूल होने के कारण अवश्य ही रुक जाएं | बेशक इस साल बार बार बदलता मौसम और बारिश के कारण कभी कभी थोड़ी बहुत नमी बन जाती है किन्तु अगले दिन निकलने वाली तेज़ धूप आपके नन्हें पौधों के लिए घातक बन जाएगी |
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जो तुम नही कहते
वही सुनता रहता हूँ
एक घायल ह्दय लेकर
तुमको ढूढ़ता फिरता हूँ
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दो ही तरह के जर्नलिज्म का दौर चल रहा है। एक दौर सुपारी जर्नलिज्म का है। जहां मुद्दे को ऐसे उछाला जाता है जैसे गांव की कोई झगड़ालू औरत छोटी सी बात को लेकर महीनों सड़क पर निकल गाली गलौज करती रहती हो। नतीजा भारत की पत्रकारिता अपनी विश्वसनीयता को खो चुका है। ठीक उसी तरह जैसे भेड़िया आया , भेड़िया आया की कहानी में।
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सारी धूप पी लेना चाहती हूँ
जो जला रही है
मजदूर से मजलूम बना दिए गए लोगों को
साइकल के पैडल बन
सोख लेना हूँ सारी थकान
कि बेटियाँ बिना थके पहुंचा सकें
पिताओं को घर
और पिता अपने बच्चों को
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अरबी में फायबर, मैग्नीशियम, लोहा, फॉस्फरस, पोटेशियम, मैंगनीज और तांबा होता हैं। जिससे तनाव कम होता हैं, कैंसर से बचाव होता हैं और पाचन तंत्र सुधरता हैं। लेकिन कई लोगों को अरबी की सब्जी पसंद नहीं होती हैं। यदि आप ढाबे वाली दम अरबी की सब्जी इस तरीके से बनाओगे तो सभी चटकारे लेकर खाएंगे।
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सागर-सा मन डोल रहा है
भाव डिगे लहरों जैसे।
सूने तट के आज उकेरी
तेरी छवि जाने कैसे।
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शब्द-सृजन-23 का विषय है-
मानवता / इन्सानियत
आप इस विषय पर अपनी रचना
(किसी भी विधा में)
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
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फिर मिलेंगे…
आप सबका दिन मंगलमय हो
"मीना भारद्वाज"
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निराशा भरे वातावरण में मनुष्य को ऊर्जावान बनाती भूमिका के साथ ही सुंदर चर्चा, शुभ रात्रि मीना दी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल की. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमहादेवी जी की कृति "दीपशिखा" का कवितांश -
जवाब देंहटाएं"सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं
क्षितिज कारा तोडकर अब"
.... से आरम्भ आज की यह चर्चा इस कोरोनाजन्य लॉकडाउन काल में सकारात्मक ऊर्जादायक है।
सुंदर और सार्थक संकलन, संयोजन हेतु मेरी
बहुत बधाई और साधुवाद मीना भारद्वाज जी 🙏🌹🍀❤
लाजवाब प्रस्तुति आदरणीय मीना दीदी जी. मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
सुंदर प्रस्तावना के साथ उम्दा चर्चा, मीना दी। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी,
जवाब देंहटाएंबाल साहित्य पर लिखी गई कहानी भी आपने पढ़ी और उसे चर्चा मंच पर प्रविष्टी के लिए भी चुना, जिसके लिए आपका आभार और आज की चर्चा में शामिल सभी कृतियाँ वाकई काबिले तारीफ है।
💐💐
मीना जी पूरा का पूरा संकलन ही जबरदस्त है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमीना भारद्वाज जी आपका आभार।
सुन्दर सूत्रों से सजी चर्चा...
जवाब देंहटाएंरिक्शावाला शामिल करने के लिए आभार आपका !!
सटीक संतुलित
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्र संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मिलित करने का आभार