स्नेहिल अभिवादन।शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।---समकालीन परिस्थितियों पर कविवर शैलेन्द्र जी की कालजयी रचना का अंश पढ़िए-ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है- शैलेन्द्रआइए पढ़ते हैं मेरी पसंद की रचनाएँ----
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कौन जानता था कि किसी रोज
रुग्णों की हरतरफ कतार होगी,
स्व:जनों के बीच मे रहकर भी,
मिल-जुल पाने से लाचार होगी।
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"उषा इधर आओ”
“हाँ....क्या ?”
"चलो तुम ये भिंडी काटो”
"हैं भिंडी ...पर क्यों.....मैं क्यों ?”
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बिसना की आँखों में अचानक
अँधेरा छागया .
दो दिन से अन्न का दाना भी मुँह में नहीं गया था .
पैरकाँप रहे थे
,आँतें सिकुड़ गईँ थीं .
पग पग चलना दूभर हो रहा था .
दिल्ली से देवगढ़ लगभग तीन
सौकिलो मीटर की यात्रा .
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यदि मूर्ख बनोगे तो प्यारे,
दुनिया में आदर पाओगे।
जी, छोड़ो बात मनुष्यों की,
देवों के प्रिय कहलाओगे!
प्रेम का वायरस
प्रतीक एवं साक्षी लम्बे समय से लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रहे थे,
परंतु विगत कुछ दिनों से इन दोनों में अनबन चल रही थी।
बात इतनी बिगड़ गई कि दोनों ने अलग रहने का फैसला किया।
उनके बीच की समस्या ऐसी नहीं थी कि पैचअप न हो सके,
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इन्तजार..
और प्यार करने का हक उनका भी है
तभी तो क्वींसलैंड के नीले समुद्री
छोर पर पर्यटकों का इन्तज़ार करती हैं
डॉल्फिनस्…
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माँ बनना हर स्त्री के लिए गौरव की बात होती है
और स्वस्थ संतान की कामना भी हर माँ करती है।
मैंने लगातार बच्चों के विकास को देखते हुए
इस बात पर दृष्टि रखी हुई है।
समय और विचारों के अनुरूप साथ ही
अपने करियर के प्रति जागरूकता ने विवाह की उम्र बढ़ा दी है
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वक्त किसी के लिए
ठहरता नही
मगर तुम्हें उम्मीद है
कि वो ठहरेगा
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारे लिए
और इंतजार करेगा
तुम्हारा
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यादें बाकी रह जाती हैं,
वक़्त गुज़र जाता है।
जिसे भूलना चाहो अक्सर,
वही नज़र आता है।
जीवन की यह नदी डूब कर,
पार इसे करना है,
मन में जिसके संशय हो वह,
नहीं उबर पाता है।
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समुद्र तट के बैठ किनारे
सुन रहीं हूँ शोर
आती जाती, उठती गिरती
लहरों का
डोलती रहेगी जीवन नैया भी
सुख दुख की लहरों पर
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मैं अनुपयोगी सी खड़ी अपनी पुरानी साइकिल को देख रहा था।
जिसने मुझे 'साइकिल वाले पत्रकार भाई' की पहचान दी है।
अन्यथा कोईकिसी को यह तो नहीं कहता न कि कार वाले पत्रकार
-बाइक वाले पत्रकार ?
मन खुश कर ही देते हैं
ये चाँद है जो हर रात
नज़र आता है आसमान पर
और कभी कभी
दिख जाता है खिड़की से भी
ये हमारे मिज़ाज़ को नज़रअंदाज़ कर देता है
दिन चाहे जैसा भी बिता हो
ये हर रोज़ अपनी चांदनी की ठंडक
भेज थपकी दे के कर सुला देता है
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शब्द-सृजन-23 का विषय है- मानवता / इन्सानियत आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे)
तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं। -- आज सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।-अनीता सैनी --
शब्द-सृजन-23 का विषय है- मानवता / इन्सानियत आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में) आगामी शनिवार (सायं 5 बजे)
तक चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं। -- आज सफ़र यहीं तक
कल फिर मिलेंगे।-अनीता सैनी --
आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस है। मुझे मशहूर पत्रकार एवं कहानीकार स्व कमलेश्वर की इस छटपटाहट एवं बेचैनी का स्मरण हो आया है -
जवाब देंहटाएं" इन बंद कमरों में मेरी सांस घुटी जाती है, खिलकिड़ियाँ खोलता हूंँ,तो ज़हरीली हवा आती है।"
अतः अब बात वहाँ तक पहुँच गयी है कि पत्रकारिता जगत को अमृत प्रदान करने के लिए समुद्र-मंथन की तरह मंथन-चिंतन होना चाहिए ।
ऊर्जा का संचार करती भूमिका और सुंदर चर्चाओं से भरे मंच पर मेरी रचना " मेरी संघर्ष सहचरी साइकिल [ भाग -1]" को स्थान देने के आपका अत्यंत आभार आदरणीया अनीता सैनी जी।
अद्यतन लिंकों के साथ में सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी जी।
हमेशा की तरह बेहतरीन लिंक्स का उत्तम संयोजन....💐
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार अनीता जी 🙏
सुन्दर चर्चा प्रस्तुति, आभार
जवाब देंहटाएंहर रंग की पहचान सजी है सुंदर चर्चा खूब जमी है
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा दिए गए सभी लिंकों का आनंद लिया। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सुगढ़ प्रस्तुति । सभी लिंक्स अत्यन्त सुंदर ..मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंसशक्त प्रस्तुति, साधुवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं