स्नेहिल अभिवादन।
रविवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शब्द- सृजन-२२ का विषय दिया गया था-
"मज़दूर/ मजूर /श्रमिक/श्रमजीवी"
पेश है शब्द-सृजन का नया अंक-
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श्रमजीवी जीवन अभावों और चुनौतियों से भरा जीवन है
जहाँ अनेक प्रकार की विवशताएँ, विसंगतियाँ, शोषण का चक्रव्यूह,
सामाजिक समस्याएँ आदि भयावह रूप में मौजूदा हैं।
जहाँ अनेक प्रकार की विवशताएँ, विसंगतियाँ, शोषण का चक्रव्यूह,
सामाजिक समस्याएँ आदि भयावह रूप में मौजूदा हैं।
मज़दूर के अशांत अभावग्रस्त एवं दयनीय जीवन के लिए कुछ खामियाँ उसकी ख़ुद कीं हैं
तो ज़्यादा खामियाँ शोषक वर्ग की हैं
जो अपनी सुविधाओं के अनुसार सरकारों से नीतियाँ बनवा लेता है।
तो ज़्यादा खामियाँ शोषक वर्ग की हैं
जो अपनी सुविधाओं के अनुसार सरकारों से नीतियाँ बनवा लेता है।
कोरोना महामारी के संकट की आड़ में भारत में मज़दूर हितों की बलि चढ़ा दी गई है।
मज़दूर का शोषण और पूँजीपतियों, उद्योगपतियों का संरक्षण सरकारों की सुविधाभोगी राजनीति है जिसका मध्यम वर्ग समर्थन करता रहता है।
- अनीता सैनी
- अनीता सैनी
आइए पढ़ते हैं "मज़दूर/ मजूर /श्रमिक/श्रमजीवी" विषय पर सृजित कुछ रचनाएँ-
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दर दर की झेलते अवहेलना
अपने श्रम से खड़े करते
गगनचुंबी भवन…
अपने ही घर में प्रवासी कैसे हो गए
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" अपनी मेहनत " या यूँ कहे कि
-" अपनी मानवीय शक्ति " को बेचकर धन अर्जित करने वालो को "
मजदुर या श्रमिक" कहते हैं। धनवान धन लगता हैं ,बुद्धिमान बुद्धि,
मगर यदि श्रमिक अपना श्रम प्रदान ना करे
तो संसार में कोई भी सृजन असम्भव हैं।
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गोद में नन्हा बच्चा
फिर से है वह जच्चा
सिर पर ईंटों का भार
न सुख न सुविधा ऐसे में
दिखती बड़ी लाचार....
होगा इसे भी जीवन में कहीं
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पैदल चल रहा हूं साहेब
राह की फ़िक्र नहीं है मुझे...
सलामत रहू यही दुआ करता हूं रब से
घर पहुंचने की बस एक उम्मीद है...
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सीमेंट के जंगल में
मशीनों के उपयोग ने
किया उसे बेरोजगार
क्या परिवार
को खिलाए
आज मेहनतकश
इंसान
परेशान दो
जून की रोटी को
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मजदूर
बसी बसाई जिंदगी , छोड़ दिये मजदूर।
जाना इनको गाँव है , अब होकर मजबूर।।
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सूरज की खामोशियां
सब जानती हैं
तपती हवायें
पसीने और आंसुओं को
पहचानती हैं
लाठियां क्या रोकेंगी
हमारे इरादे
तुम्हारे शब्दजालों को फाड़कर
हम तो लौट रहें हैं अपने गांव---
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क्यों लेट गये मौत की पटरी ?
लेकर चले थे शहर से जो -
बिखर गयी सपनों की गठरी ,
ना ढली स्याह रात पीड़ा की
जीवन की ना नई भोर उगी !
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ओ मूर्ख!!
तुम लोकतंत्र का
मात्र एक वोट हो
और..
डकार मारती
तोंदियल व्यवस्थाओं के
लत-मर्दन से
मूर्छित
बेबस"भूख"।
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वे बुझाने आग
पेट की...?
तोड़ते पत्थर,
ढोते गारा,
हल चलाते,
बहाते पसीेना,
करते मजदूरी,
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कुछ परछाइयाँ मायूस हुईं !
कुछ शीश टिकाए बैठीं घुटनों पर
कुछ बौराई-सी नम आँखों से
पथरीले पथ पर टहल रहीं।
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पढ़िए आदरणीया कुसुम दीदी का मज़दूरों के प्रति
यथार्थवादी सृजन-
श्रमिक
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
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चलते-चलते पढ़ते हैं
श्रमजीवी जीवन पर आदरणीय रवीन्द्र जी का चिंतन-
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पढ़िए आदरणीया कुसुम दीदी का मज़दूरों के प्रति
यथार्थवादी सृजन-
श्रमिक
मन की वीणा - कुसुम कोठारी।
चलते-चलते पढ़ते हैं
श्रमजीवी जीवन पर आदरणीय रवीन्द्र जी का चिंतन-
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प्रवासी श्रमजीवी
घर-गांव से
हज़ारों किलोमीटर दूर
अपनों से बहुत दूर
तुम चले जाते हो
फूस-माटी की झोंपड़ी छोड़कर
माँ-बाप,भाई-बहन,भार्या,बच्चों को छोड़कर
जीविका की तलाश में
मीडिया ने नाम दिया है
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ईश्वर के नाम पर धूर्त ठग लेते हैं मुझे,
पीढ़ी-दर-पीढ़ी चक्रव्यूह रचकर
शिक्षा और साधन से दूर कर देते हैं मुझे।
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आज सफ़र यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी अंक में
मजदूर-मजदूर है।
जवाब देंहटाएंबहुत मजबूर है।
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मजदूर शीर्षक पर सुन्दर रचनाएँ पढ़ने को मिली।
धन्यवाद आपका।
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अनीता सैनी जी आपका श्रम सराहनीय है।
शब्द-सृजन विशेष चर्चा में बहुत भावप्रवण व लाजवाब रचनाओं का संकलन । सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई । श्रमसाध्य प्रस्तुति अनीता जी । हार्दिक आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सामयिक चिंतन चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशब्द सृजन का ये बिषय "मजदूर " आज सबको सोचने पर मजबूर कर रहा है ,सभी रचनाकारों की रचनाएं मानवीय संवेदना को झकझोर रहा हैं ,बेहतरीन सृजन के लिए सबको सादर नमन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं से सुसज्जित लाजबाव चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रिय अनीता , श्रमवीर देश की अर्थव्यवस्था के स्थायी स्तम्भ हैं | उनके कार्य का सम्पूर्ण मूल्याङ्कन देश की आजादी के इतने वर्षों बाद तक भी नहीं हो पाया | आज कोरोना संकट में उनकी दुर्दशा की भयावह तस्वीर सारी दुनिया ने देखी | पर ये भी कडवा सच है -- उनकी इस जीवटता के चलते देश में एक सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति नये रूप में सामने आई है | संवेदनाओं को झझकोरता आज का अंक विभिन्न रचनाओं के माध्यम से श्रमजीवियों के जीवन का सम्पूर्ण चित्र प्रस्तुत करता है सभी रचनाकारों का प्रयास सराहनीय है | सभी को बधाई और शुभकामनाएं तुम्हें भी हार्दिक आभार मेरी रचना को आज की चर्चा विशेष में शामिल करने के लिए |
जवाब देंहटाएंकोरोना महामारी के संकट की आड़ में भारत में मज़दूर हितों की बलि चढ़ा दी गई है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय भूमिका के साथ श्रमसाध्य प्रस्तुति...
बहुत ही सुन्दर सार्थक और मजदूरों के प्रति संवेदना से भरा आज का चर्चा मंच...।
मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार।
शब्द-सृजन का सुंदर प्रस्तुतीकरण।
जवाब देंहटाएंश्रमजीवी विषय पर बेहतरीन सृजन।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
मेरी रचनाएँ शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |उम्दा संकलन आज का |
चिंतनशील भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक आकर्षक, बहुत सुंदर रचनाएं
सभी रचनाकारों को सार्थक सृजन के लिए हृदय तल से बधाई।
मेरी दो रचना को शामिल करने केलिए हृदय तल से आभार।
सादर।