सादर अभिवादन !
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
आज की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष श्री केदारनाथ जी के एक पारिवारिक प्रश्न से -
आज की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष श्री केदारनाथ जी के एक पारिवारिक प्रश्न से -
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छोटे से आंगन में
माँ ने लगाए हैं
तुलसी के बिरवे दो
पिता ने उगाया है
बरगद छतनार
मैं अपना नन्हा गुलाब
कहाँ रोप दूँ!
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जो ले जाये लक्ष्य तक, वो पथ होता शुद्ध।
भारत तुम्हें पुकारता, आओ गौतम बुद्ध।।
बोधि वृक्ष की छाँव में, मिला बुद्ध को ज्ञान।
अन्तर्मन से छँट गया, तम का सब अज्ञान।।
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फालतू की ऐँठ में, अकड़ा हुआ है आदमी।
मज़हबों की कैद में, जकड़ा हुआ है आदमी।।
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सभ्यता की आँधियाँ, जाने कहाँ ले जायेंगी,
काम के उद्वेग ने, पकड़ा हुआ है आदमी।
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आतंकी से लड़ रहे जवान
प्राण कर रहे अपने अर्पण।
मदिरा की घूंट के पहले,
राष्ट्र-उन्नयन का हो प्रण।
***
सन्मार्ग पथिक बन जाता है,
निर्विकार, निर्लिप्त हृदय से,
राग भैरवी भजन सुनाता,
नीरस मन को भी विह्वल कर देता,
भक्तिमय संसार बनाता,
मोह-जगद् में तब जाकर,
सन्यासी वह है कहलाता ।
***
कोरोना समय में घर लौटते हुए
बहुतों को नसीब नहीं हुई डेहरी
डेहरी को नहीं नसीब हुआ
उनका आखिरी चुम्बन
डेहरी को नहीं नसीब हुआ
उनका आखिरी चुम्बन
नहीं नसीब हुआ उसके माथे का स्पर्श
कहाँ छोड़ता है कोई अपनी डेहरी
***
निस्तब्ध मटमैले जलाशय में,
अन-पहचानी झाँकती आकृति,
ललाट पर बिखरी सलवटें,
नुकीले दाँत,अहं-दंश की आवृति।
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गंगा ,जमुना ,
दुर्गा ,सीता ,
विन्ध्य,सतपुड़ा क्या थी ?
किसी गीत के
सुन्दर मुखड़े
जैसी मेरी माँ थी |
***
चित्रकार का चित्त-चितवन
सचाई तलाशने
आदर्श-लोक के सफ़र पर हैं
जहाँ बदलाव और विद्रोह की तड़प
ज़ख़्मी होकर सो गई है।
***
अकेले मिलना अब हो नहीं सकता
जब भी मिलना है सरेआम मिलना।
मेरे रंजों ग़म उन्हें भाते नहीं
फिर क्या मिलना और क्योंकर मिलना।
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सालाना इम्तहान समाप्त होते ही हम बड़ी बेसब्री से अपने मामाजी और चाचाजी के परिवारों से मिलने के लिये अधीर हो जाते थे ! कभी हम तीनों भाई बहन मम्मी बाबूजी के साथ उन लोगों के यहाँ चले जाते तो कभी वे सपरिवार हम लोगों के यहाँ आ जाते !
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पत्थरों पर बैठकर जब
आँखों से सिंधु निहारूँ।
उर्मि की उठती रवानी
नाम तेरा ही पुकारूँ।
कल्पना ये कल्पना है
आपके बिन सब अधूरी।।
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गौतम बुद्ध के जन्म तथा मृत्यु के समय के विषय में अनेक मतभेद हैं, अतः उनकीजन्मतिथि अनिश्चित है. हालाँकि, अधिकांश इतिहासकारों ने बुद्ध के जीवनकाल को 563-483 ई.पू. के मध्य माना है. अधिकांश लोग नेपाल के लुम्बिनी नामक स्थान को बुद्ध का जन्म स्थान मानते हैं.
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'शब्द-सृजन-20 का विषय है-
"गुलमोहर "
आप इस विषय पर अपनी रचना (किसी भी विधा में)
आगामी शनिवार (सायं 5 बजे) तक
चर्चा-मंच के ब्लॉगर संपर्क फ़ॉर्म (Contact Form ) के ज़रिये
हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ आगामी रविवासरीय चर्चा-अंक में
प्रकाशित की जाएँगीं।
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आपका दिन मंगलमय हो 🙏
"मीना भारद्वाज"
सुप्रभात मीना जी आपको और इस लिंक के सभी साथियों को |सभी लिंक्स अच्छे और पठनीय हैं |आपका हृदय से आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक लिंकों के साथ उपयोगी चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
चर्चा की शुरुआत ही हृदयस्पर्शी कविता के साथ ,दिल को छू गया ,सभी लिंक्स लाज़बाब हैं मीना जी ,सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसभी को हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआप सबका आभार। इस कठिन समय में कुछ सूझता नहीं।ऐसे ही साझे सपनों की जरूरत है।सपने जो दृष्टि देते हैं। जूझने और जूझकर संकटों से बाहर आने की।
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति आदरणीया मीना दीदी. सभी रचनाएँ बेहतरीन चुनी है आपने मेरे सृजन को स्थान देने हेतु तहे दिल से आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
कविवर केदारनाथ सिंह जी के काव्यांश से आग़ाज़ करती सुंदर प्रस्तुति। बेहतरीन रचनाओं का चयन। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा में मेरी रचना सम्मिलित करने हेतु सादर आभार आदरणीया मीना जी।
आदरणीया मीना दीदी,
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम ,
सभी विद्वतजनों को भी मेरा प्रणाम । इस चर्चामंच में प्रकाशित सभी लिंक की कविताएं बहुत ही सुन्दर है । मेरी एक छोटी सी रचना को भी इतने विशाल मंच पर स्थान देने हेतु सादर आभार ।
हार्दिक धन्यवाद मीना जी ! इन दिनों व्यस्तता के कारण देख ही नहीं पाई चर्चामंच ! मेरे संस्मरण को इसमें स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए।
जवाब देंहटाएंसभी लिंक बेहतरीन, सभी रचनाकारों को बधाई।
बहुत शानदार प्रस्तुति।