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शुक्रवार, अगस्त 21, 2020

"आज फिर बारिश डराने आ गयी" (चर्चा अंक-3800)

स्नेहिल अभिवादन !
चर्चा मंच पर आप सभी विद्वजन का हार्दिक 
स्वागत एवं अभिनंदन । आज की चर्चा का आरम्भ स्मृति शेष श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की लेखनी से रचित "चलना हमारा काम है"  कवितांश से -
गति प्रबल पैरों में भरी 
फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ,
तब तक मुझे न विराम है,
चलना हमारा काम है।
--
अब बढ़ते हैं आज की चर्चा के चयनित सूत्रों की ओर-
--
आज फिर बारिश डराने आ गयी
चैन लोगों का चुराने आ गयी

बादलों से फलक मैला हो गया
पर्वतों पर कहर ढाने आ गयी

आसमाँ में चमकती यह रौशनी
जलजलों का गीत गाने आ गयी
***
पद्मा सचदेव की एक कविता उसने अगले पन्ने पर लिखी है. बहुत प्यारी है. 
गुलमोहर से कहा मैंने आज मेरा नेग तो दो 
अपने फूलों से चुरा कर एक कलछी आग तो दो 

एक कलछी रूप तो दो एक कलछी रंग तो दो 
इक जरा सी रौनक  इक जरा सा संग तो दो
***
जैसे सूरज उगने के बाद दिन ढले है
ऐसे क़िस्मत मेरी रोज़ रंग बदले है।

आख़िर बुझना ही होगा देर-सवेर इसे
दौरे-तूफ़ां में कब तलक चिराग़ जले है।

दिन-ब-दिन जवां हुई, इसका इलाज क्या
मेरे इस दिल में तेरी जो याद पले है।
***
यह चश्मा भी अजब बवाल है
उम्र का कोई भी हिस्सा हो
जीवन की हर शै में इसीका धमाल है !
जब हम खुद छोटे थे जीवन देखा
मम्मी पापा के चश्मे से
***
कुछ साल पहले तक हमारे कृषि प्रधान देश को भरपूर उपज, खुशहाली, समृद्धि व जलीय आपूर्ति के लिए जीवन दायिनी पावस ऋतु का बड़ी बेसब्री से इन्तजार रहा करता था। पर अब इसकी जरुरत तो है, इन्तजार भी रहता है, पर साथ ही इसकी भयावहता को देख-सुन-याद कर एक डर, एक खौफ भी बना रहता है।
***
जगमग जगमग जुगनू प्यारा
जैसे आसमान से उतरा हो तारा
बेटा इसे प्यार से बुलाओ
इसे कैद करने मत जाओ
पापा आजादी का महत्व बताते
जगमग जगमग जुगनू टिमटिमाते
***
रात्रि के सूने निविड़ अंधकार में
निकल पड़ो अकेले अनमने से
रास्ता नापने निस्तब्ध निर्जन में
तो जान पड़ता है चलते-चलते
बहुत कुछ है अपनी परिधि में जिसे
जान कर भी कभी जाना नहीं कैसे
***
उसके ससुराल लौटने पर  परिवार के सदस्यों ने उसका स्वागत नहीं किया। सभी उससे सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंस ) बनाए हुये थे। सास  ने चरणस्पर्श करने से मना कर दिया। पतिदेव नीचे अपनी दुकान पर आसन जमाये हुये थे। बच्चों को भी उसके निकट आने नहीं दिया 
गया ।
***
जज ने बताया कि, “आप सही हैं वकील साहब। आपके मुवक्किल ने मुझे मेरे एक रिश्तेदार से सिफारिश करवाई है, इसलिए मैं अब इस मामले का फैसला नहीं करूंगा।” आगे की पेशी पड़ गयी। वकील ने मुवक्किल को कहा, “तेरी किस्मत में पत्थर लिखा है, अच्छा खासा जीतने वाला था, सिफारिश की क्या जरूरत थी, वह भी मुझे बिना बताए, अब भुगत।
***

गणेश जी में दस दिनों तक हर रोज नया-नया कौन सा प्रसाद चढ़ाए या नए-नए मोदक कैसे बनाएं यह सवाल कई बार मन में आता है। मोदक यदि ऐसा हो जो बनाने के लिए गैस भी जलानी न पड़े और वो स्वाद में लाजबाब हो तो...आइए आज हम बनाते है पान गुलकंद मोदक ।
***
मैं
समय के पहियों पर
जीता-जागता
चलता-फिरता
उलझता-सुलझता
अक्सर दिखता रहता हूँ
सबको
आकर्षित करता रहता हूँ
***
हवा में मनमानी का जोश 
 जनतंत्र जंज़ीरों में जकड़ा 
रौब के  उठते धुएँ में 
बर्फ़-सी पिघलती मानवता 
 भविष्य आज़ादी के लिए 
दुआ में उठाता हाथ तड़पता क्यों है?
***
इजाजत दें...फिर मिलेंगे..
आपका दिन मंगलमय हो..
🙏 🙏
"मीना भारद्वाज"
--

12 टिप्‍पणियां:

  1. ऊर्जा से भरी भूमिका एवं सुंदर प्रस्तुति के मध्य मंच पर मेरी रचना 'सज़ा' को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार मीना दीदी जी।
    शुभ रात्रि।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही शानदार आज की चर्चा मंच की सभी पोस्ट है शुभ रात्रि

    जवाब देंहटाएं
  3. सन्तुलित और सार्थक चर्चा प्रस्तुति।
    --
    आपका आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा प्रस्तूति। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,मीना दी।

    जवाब देंहटाएं
  5. सम्मिलित कर सम्मान देने हेतु हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरी रचना को स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार मीना जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय मीना दी।मेरे सृजन को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन प्रस्तुति मीना जी, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं,देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूं,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर चर्चा प्रस्तुति। मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए आभार...

    जवाब देंहटाएं

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