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बुधवार, नवंबर 11, 2020

"आवाज़ मन की" (चर्चा अंक- 3882)

 मित्रों।
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।

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देव संस्कति को अपनाओ,
रक्ष सभ्यता को छोड़ो।
 राम और रहमान एक हैं,
उनसे  ही नाता जोड़ो।
भेद-भाव, अलगाववाद का,
वातावरण मिटायें हम।
घर-आँगन को रंगोली से,
मिलकर खूब सजायें हम।।
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  • कविता - 14  
  • जीवन 

    उथले पानी में 
    बीता है 
    जीवन सारा 
    और अक्सर 
    हमने बात की है 
    गोताखोरी की 
दिलबागसिंह विर्क, Sahitya Surbhi  
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चुल्लूभर पानी 

 तुम्हारे लिए 

कोई 
चुल्लूभर पानी 
लिए खड़ा है 
शर्म हो 
तो डूब मरो... 
नहीं तो 
अपनी गिरेबाँ में 
बार-बार झाँको  

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सुलग रहा यादों का जंगल, 
तन्हा और बेजान, 
आवाज़ उर में धड़क रही,
    बन मीठा-सा गान, 
ह्रदय प्रीत में  सुलग रहा, 
सुमरुँ  पिया का नाम , 

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हम बालकनी से कभी नीचे उतरे ही नहीं.
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अपूर्णता ही कल तक ले जाती है
कुछ नया पाने के लिए, प्रातः
से अपरान्ह, साँझ से
निशीथ, सब एक
ही तार में हैं
पिरोए
से, 
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा : 
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यात्राविवरण  (क्रमांक ३) 

ऋषिकेश से जल्दी ही चल दिए क्यों कि अब बहुत लम्बी यात्रा करानी थी |रास्ता बहुत सकरा था |बेहद चढ़ाई थी |कभी तो ऊपर से आती बसों को पहले निकालने के लिए ऊपर जाती बसों को रुकना पड़ता था |जब वे बसे निकल जातीं तब नीचे रोके गए वाहनों को जाने दिया जाता था |पर दृश्य बहुत मनोरम होते थे|कहीं कहीं तो नीचे झांक कर देखते तो भय सा ने लगता था |कहीं ठण्ड  लगती तब स्वेटर का सहारा लेना पड़ता |

वेन की गति धीमी रखने को कहा तब ड्राइवर ने कहा की पहुँचते पहुंचते रात हो जाएगी |आपको कहीं रात में रुकना पडेगा |जैसेतैसे रात को ९ बजे रूद्र प्रयाग पहुंचे 

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दीपावली के पटाखों संग मस्ती 
दीपावली के आते ही प्रदूषण ज्यादा दिखाई देने लगता है. विगत कई वर्षों से ऐसा देखने में आ रहा है कि जैसे ही किसी हिन्दू पर्व का आना होता है वैसे ही ज्ञान देने वालों की संख्या में वृद्धि होने लगती है. दीपावली पर पटाखे न चलाने की सलाह, होली पर रंग न खेलने की सलाह. एक पर्व के कारण प्रदूषण का फैलना और दूसरे के कारण पानी की बर्बादी को मुख्य कारण बताया जाता है. 
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निकट समंदर बहता जाता 

जाग-जाग कर फिर सो जाता

नींदों में मन स्वप्न दिखाता,

रंग-रूप-रस-गंध खान में 

निज आनंद छुपा रह जाता !

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लघुकथा :  अदला - बदली 

पराठे सेंकते हुए वसु ने अवि को आते देखा तो वहीं से हँसते हुए बोल उठी ,"सुनो ! ये वाला पराठा थोड़ा करारा हो गया है ,तो मैंने उसको मोड़ दिया है । चुपचाप बिना देखे खा लेना ।" 

अवि पानी लेने रसोई में आ गया था ,"मतलब पराठा जल गया है न ... ऐसे बोलो न ,बिना मतलब के बहाने बना रही हो ," और हँसता हुआ प्लेट ले कर डायनिंग टेबल की तरफ चल गया ,"वैसे जानती हो स्वाद तो इसी पराठे का ज्यादा अच्छा है । "

वसु दूसरा पराठा ले आयी ,"सुनो !देखो न ये वाला कितना अच्छा सिंका है न ... ऐसा करो इस को देखते हुए उस करारे पराठे को खा लो । तुम तो अक्सर यही करते ही हो ... कल्पना से वर्तमान की ख़्याली अदला बदली ... " 


निवेदिता श्रीवास्तव, झरोख़ा  
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कलाकार से 

सुनो कला


कार,

गली-गली घूमकर 

चिल्लाने से क्या फ़ायदा,

यहाँ सभी बहरे हैं,

कोई नहीं ख़रीदेगा

तुम्हारा सामान,

कोई नहीं पहचानेगा 

तुम्हारा हुनर 

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आज का उद्धरण 
विकास नैनवाल 'अंजान', एक बुक जर्नल  
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आज के लिए बस इतना ही..।
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9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति। मेरी पोस्ट्स को आज की चर्चा में स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

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  2. वाह ! देश और दुनिया की नब्ज को पकड़ने वाली पठनीय रचनाओं की ख़ुशबू समेटे चर्चा मंच का एक और नया अंक, आभार मन पाए विश्राम जहां को इसमें स्थान देने के लिए, आने वाले ज्योतिपर्व के लिए शुभकामनायें !

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । सभी रचनाएँ अत्यन्त सुन्दर । सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।

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  4. अनुपम संकलन एवं प्रस्तुति, मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर।मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।

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  6. बेहतरीन रचनाओं का संकलन,सादर नमस्कार सर

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर प्रस्तुति. मेरी रचना को शामिल करने हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं

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