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रविवार, नवंबर 29, 2020

"असम्भव कुछ भी नहीं" (चर्चा अंक-3900)

 मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
 

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कोरोना की बढ़ती रफ्तार के कारण मेरा सभी पाठकों से निवेदन है कि कार्तिक पूर्णिमा अर्थात् गंगा स्नान के पर्व पर आप लोग अपने घरों में स्नान करें।
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दोहे  "खास हो रहे मस्त" 

एकल कवितापाठ काअपना ही आनन्द।
रोज़ गोष्ठी को करोकरके कमरा बन्द।।
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कोरोना के काल मेंमजे लूटता खास।
मँहगाई की मार सेहोता आम उदास।।
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उच्चारण 
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एक गीत :  मेरी देहरी को ठुकरा कर जब 
मेरी देहरी को ठुकरा कर जब जाना है
फिर बोलो वन्दनवार सजा कर क्या होगा ?

आँखों के नेह निमन्त्रण की प्रत्याशा में
आँचल के शीतल छाँवों की अभिलाषा में
हर बार गईं ठुकराई मेरी मनुहारें-
हर बार ज़िन्दगी कटी शर्त की भाषा में

जब अँधियारों की ही केवल सुनवाई हो
फिर ज्योति-पुंज की बात चला कर क्या होगा ?
आनन्द पाठक, आपका ब्लॉग  
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  • आओ दिल को चुप रहने की कहें 
  • हो सके तो तुम भूल जाना उन्हें 
    सपनों में ख़ुदा माना था जिन्हें । 

    जिधर से आई है ये रेत ग़म की 
    उधर जाने की कौन कहे तुम्हें । 
दिलबागसिंह विर्क, Sahitya Surbhi  
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...दूल्हे ने बात को रोकते हुए सवाल किया - "फेरे हो गए..
आपकी बेटी की जिम्मेदारी किसकी …?" और पंडित की तरफ देखते हुए कहा - "बहुत देर हो गई.. जल्दी कीजिए । आगे भी जाना है ..भोर होने वाली है।"
पंडित जी के मंत्रोच्चार के साथ ही मानो
      पूर्व की लालिमा ने घर के आंगन में सुनहली भोर के
आगमन की दस्तक दे दी थी ।
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"सोना" हाँ ,यही नाम था घुंघट में लिपटी उस दुबली पतली काया का। जैसा नाम वैसा ही रूप और गुण भी।  कर्म तो लौहखंड की तरह अटल था बस तक़दीर ही ख़राब थी बेचारी की। आज भी वो दिन मुझे अच्छे से याद है जब वो पहली बार हमारे घर काम करने आई थी। हाँ ,वो एक काम करने वाली बाई थी। पहली नज़र मे देख कर कोई उन्हें काम वाली कह ही नहीं सकता था। कोई उन्हें कामवाली की नज़र से देखता भी नहीं था वो तो सबके घर के एक सदस्य जैसी थी। बच्चे बूढ़े सब उन्हें सोना ही बुलाते थे बस हम भाई बहन उन्हें प्यार से ताई या अम्मा कह के बुलाते थे। प्यार और इज्जत तो सब उनकी करते थे पर हमारे परिवार को उनसे और उन्हें हम सब से एक अलग ही लगाव था। 
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यही चाहता मन है 

ऊपर नील गगन है

सच्चे साथी की खोज में
धुँआ - धुँआ सा मन है। 
Dr.NISHA MAHARANA, My Expression 
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  • मैं अपनी  कश्ती  पार लाकर, 
  • समुंदरों   को  दिखा  रहा  हूँ। 
  • जीवन   के  ये  गीत  रचे जो, 
  • मज़लूमों   को  सुना  रहा हूँ।  

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  • "चिन्तन" 
  • दीवार की मुंडेर पर बैठ
    आजकल रोजाना एक पंछी
    डैने फैलाए धूप सेकता है
    उसे देख भान होता है
    उसकी जिन्दगी थम सी गई है 
  • मंथन
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मास्क 

मास्क लगा है,

पर तुम बोल सकते हो,

बोलना मत छोड़ो,

जब तक कि तुम्हें

पूरी तरह चुप न करा दिया जाय. 

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भारोपीय भाषाओं की ग्यारह शाखाएँ अणु और दृहयु जनजाति की भाषाओं से पनपी हैं। ये जनजातियाँ पुरु जनजाति के पश्चिम में रहती थीं। पुरु जनजाति की भाषा वैदिक भाषा थी। भारत से बाहर की इन अर्वाचीन ग्यारह शाखाओं और भारत-भूमि के अंदर की बारहवीं वैदिक शाखा की तुलना पर ही तमाम भारोपीय मिसाल टिकी हुई है।  

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दूषित स्पर्श (बाल मन पे आघात) 
चित्र -साभार गूगल 
माँऽऽऽऽऽ !! फिर छू कर चला गया कोई, अभी अभी 
बिल्कुल अभी अभी, अरेऽऽऽऽ !! कहा न, अभी अभी 

बार बार क्यूँ पूछ रही हो ? ऐसी बात
जो घायल कर रहे मेरे ज़ज्बात

उफ्फ्फ ! आज लाडली को फिर छू गया कोई 
गहरेऽऽ, अनंत गहरे, घाव फिर दे गया कोई 
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जन्मदिन- एक शुभकामना 
स्निग्ध छटा सी, स्वप्निल!
मने निरंतर, जन्म-दिवस यह, 
स्वप्न सरीखी स्नेहिल!

उम्र चढ़े, आयुष बढ़े,
खुशी की, इक छाँव, घनेरी हो हासिल,
मान बढ़े, नित् सम्मान बढ़े,
धन-धान्य बढ़े, आप शतायु बनें,
आए ना मुश्किल! 
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा, कविता "जीवन कलश" 
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असंभव कुछ भी नहीं 
खो जाते हैं बहुत कुछ सुबह से रात,
खो गए न जाने कितने जकड़े
हुए हाथ, गुम हो जाते हैं
अनेकों प्रथम प्रेम
में टूटे हुए मन,
छूट जाते
हैं न
जाने कितने ही आपन जन, फिर -
भी ज़िन्दगी रूकती नहीं, 
शांतनु सान्याल, अग्निशिखा : 
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अब मैं वह दिल की धड़कन कहाँ से लाऊंगा 

तू अक्सर मिली मुझे छत के एक कोने में

चटाई या फिर कुर्सी में बैठी

बडे़ आराम से हुक्का गुड़गुड़ाते हुए

तेरे हुक्के की गुड़गुड़ाहट सुन 

मैं दबे पांव सीढ़ियां चढ़कर 

तुझे चौंकाने तेरे पास पहुंचना चाहता

उससे पहले ही तू उल्टा मुझे छक्का देती  

Kavita Rawat, KAVITA RAWAT 
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आज के लिए बस इतना ही...।
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12 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभाय
    उम्दा लिन्क आज के अंक की |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात!
    उत्तम पठन सामग्री का सुंदर संयोजन. रचनाकार वृन्द को हार्दिक बधाई सुन्दर सृजन हेतु । अति सुन्दर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार सर।

      हटाएं
  3. आदरणीय शास्त्री जी,
    सादर नमन 🙏
    सुंदर चर्चा... मेरी अनुजा डॉ.(सुश्री) शरद सिंह का आज जन्मदिन है, अतः कुछ ज़्यादा ही व्यस्तता के कारण
    पूरे लिंक्स आज नहीं पढ़ पाई हूं।
    मेरी पोस्ट को आपने चर्चा मंच में स्थान दिया है, इसके लिए हृदय से आपके प्रति आभार 🙏
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया वर्षा सिंह जी!
      आपकी अनुजा डॉ.(सुश्री) शरद सिंह को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ और आपको बधाई हो।

      हटाएं
  4. हमेशा की तरह विविध विधाओं से सुरभित चर्चा मंच मंत्रमुग्ध करता है, सभी रचनाएँ अद्वितीय हैं - - मुझे स्थान देने हेतु आभार - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  5. क्षमा सहित आपका आभार हमारी रचना को हमेशा की तरह आपका स्नेह मिला. पढ़ने की कोशिश लगातार हो रही है, उससे अधिक कोशिश कर रहे टिप्पणी करने की. इसके बाद भी बहुत बार असफलता हाथ लगती है.
    पुनः इसी विश्वास के साथ कि कोशिश सफल बनी रहे.

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर चर्चा. मेरी कविताएँ शामिल कीं.आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. अस्वस्थ होने के कारण चर्चा मंच पर उपस्थित होने में असमर्थ रही इसके लिए क्षमा चाहती हूँ।
    मेरी एक पुरानी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार सर,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  8. भाई साहब आपका बहुत बहुत आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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