मित्रोंं!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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वासन्ती मौसम आया है,
प्रीत और मनुहार का।
गाता है ऋतुराज तराने,
बहती हुई बयार का।।
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पंख हिलाती तितली आयी,
भँवरे गुंजन करते हैं,
खेतों में कंचन पसरा है,
हिरन कुलाँचे भरते हैं,
टेसू हुआ लाल अंगारा,
बरस रहा रँग प्यार का।
गाता है ऋतुराज तराने,
बहती हुई बयार का।।
उच्चारण
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पीर हृदय को मथती रहती
तपता रहता है ज्यों फाग
सूनी अँखियाँ राह देखतीं
जाग रहा मन का अनुराग
विरह हूक-सी ऐसी उठती
सूर्य ताप से जलधर कारे।।
तेरे इश्क पर हम ऐतबार करते हैं
कहें ना कहें तुमसे प्यार करते हैं
मौसम कोई हो, चलेगें साथ तेरे
मूंद आंखें अभी इकरार करते हैं
पहाड़ों में कोई रस्ता कहाँ आसान दिखता है
वहीं पर बाढ़ आती है जहाँ मैदान दिखता है
तरक्की की कुल्हाड़ी ने हजारों पेड़ काटे हैं
जरूरत को कहाँ कोई नफ़ा -नुकसान दिखता है
स्वामी विवेकानंद 39 वर्ष के अपने जीवन काल में ही आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण काम कर गए । उनकी इस सफलता की सबसे बड़ी वजह उनका वह मंत्र था जिसे वह हर एक को देते थे- उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए । उनका कहना था कि जिसे तुम पाना चाहते हो उसे अपने प्राण ही बना लो, हर क्षण उसी के लिए काम करो। हम असफल अगर होते हैं, तो इसलिए क्योंकि हमारा ध्यान लक्ष्य से भटक जाता है हम दूसरी चीजों और और दूसरे लोगों पर ध्यान देने लगते हैं। ध्यान न भटके, तो कोई शक्ति हमें लक्ष्य पाने से नहीं रोक सकती।
🚩 वंदेमातरम
जानाँ ! ...
तीसी मेरी चाहत की
और दाल तुम्हारी हामी की
मिलजुल कर संग-संग ,