बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
--
दोहे "चॉकलेट देकर नहीं, उगता दिल में प्यार"
--
भोली चिड़ियों के लिए, लाये नये रिवाज़। चॉकलेट को चोंच में, लेकर आये बाज़।।
--
रंग पश्चिमी ढंग का, अपना रहा समाज।
देते मीठी गोलियाँ, मित्रों को सब आज।।
--
समझ का सेहरा
”आप क्या जानों जीजी, पीड़ा पहाड़-सी लगती है जब बात-बात पर कोई रोका-टाकी करता है।”
पिछले काफ़ी दिनों से राधिका की जुबाँ पर यही बस यही शब्द कथक कर रहे होते हैं।
--
दस दोहे वृद्धजन पर |
डॉ. वर्षा सिंह
ऐसे भी हैं वृद्धजन, जग में जो असहाय ।
उनसे नाता जोड़ कर, उनके बनें सहाय ।।
अपने हों या ग़ैर हों, करिए सदा प्रणाम ।
मातु-पिता-चरणों तले, "वर्षा" चारों धाम ।।
Varsha Singh
--
एक घटना जिसे मीडिया ने छिपाया : गिरीश मालवीय खबर वह होती है जो निष्पक्ष तरीके से सबके सामने आए और पत्रकारिता वह है जो जिसमें सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस हो। जिसमें कुछ भी छुपा न हो। लेकिन विगत कुछ वर्षों से बदलाव और विभाजन हर क्षेत्र में स्पष्टतः नजर आ रहा है तो ऐसे में कुछ खबरें अगर जानबूझ कर जन सामान्य के सामने से रोक दी जाएँ तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। * *ऐसी ही एक महत्त्वपूर्ण खबर जिसे मुख्यधारा के मीडिया द्वारा प्रमुखता नहीं दी गई, के बारे में श्री गिरीश मालवीय ने कल (07 फरवरी को )अपनी एक फ़ेसबुक पोस्ट में बताया है, जिसे साभार यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ-
--
समय तो बीतता ही है
समय उड़ चला
हाथ हिला हिला
ले रहा विदा
अलविदा
जैसे ही कहा मैंने
मुस्कुरा दिया उसने
--
प्रतीक्षारत बसंत
पंक्तिबद्ध हैं रखे
हुए सप्तरंगी प्याले,
किसे ख़बर क्या
रखा है इन
प्यालों में... --
21 मजेदार पहेलियाँ जो समझदार लोग ही सुलझा पाएंगे!
--
कविता: निर्वाण
अंधकार से प्रकट हुए हैं
अंधकार में खो जायेंगे
बिखरे मोती रंग-बिरंगे
इक माला में पो जायेंगे Smart Indian,
--
क्यों उत्तराखड हुआ खंड - खंड?
--
ओस की नन्हीं बूंदे
ओस की नन्हीं बूँदें
हरी दूब पर मचल रहीं
धूप से उन्हें बचालो
कह कर पैर पटक रहीं |
--
सच तो यही है कि हम खुदगर्ज हैं सरकार बिल्कुल बेकार है ! इस बार इनको वोट ही नहीं दूंगा ! ऐसा क्यों पूछने पर बोले, डीए ही नहीं बढ़ाया ! इतनी मंहगाई है कुछ सोचते ही नहीं ! पिछले वाले बढ़ाते रहते थे ! वे ठीक थे ! जब उन्हें कोई नए कर ना लगाने, करोड़ों लोगों को साल भर मुफ्त खाने तथा अन्य सुविधाओं का हवाला दिया तो बोले किसने देखा है कौन कहां क्या दे रहा है ! मुझे नहीं मिला यह मुझे पता है ! जब उनको कहा कि प्रायवेट सेक्टर में लाखों लोगों की नौकरियां ख़त्म हो गईं, आपकी तो बची हुई है ! तो चिढ कर बोले, किसने मना किया, कर लें सब सरकारी जॉब ! अब ऐसी सोच से क्या बहस !!
--
खोखली प्रगति
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा,
--
गुलाब कांटेदार तनों में खिलते ही सम्मोहित कर देंने वाले तुम्हारे रंग और देह से उड़ती जादुई सुगंध को सूंघने भौंरों का लग जाता है मजमा सुखी आंखों से टपकने लगता है महुए का रस
--
Planets name in Hindi
--
ग़ज़ल , मैं यू ही उसको बंजर नही कहता
मैं यू ही उसको बंजर नही कहता
हर कहानी खुद मंजर नही कहता
जब बोलो अल्फाज चुनकर बोलो
घाव कितना देगा खंजर नही कहता
--
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की बारह ग़ज़लें
--
Do lamha pyar ka ek pal intzaar ka.
दो लम्हा प्यार का,
एक पल इंतज़ार का,
थोड़ी बेकरारी इकरार का,
मौसम है ये बहार का।
--
एक प्रेमगीत-झुकी नज़रें गुलमोहर , मुस्कान वाले दिन
झुकीं नज़रें
गुलमोहर
मुस्कान वाले दिन ।
याद हैं
अब भी
मुलेठी पान वाले दिन।
--
आज का उद्धरण
--
आज के लिए बस इतना ही।
--
बहुत सुंदर चर्चा। मेरी रचना को स्थान देने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्र संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
रोचक लिंक्स से सुसज्जित चर्चा....मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! विविधतापूर्ण रचनाओं से सुसज्जित सुन्दर संकलन संयोजन के लिए आपका आभार..मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन..सादर शुभकामनाओं सहित.. जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंसुन्दर सजा आज का चर्चामंच |मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर।मेरी लघुकथा को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व लाजवाब सूत्रों से सजी चर्चा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद सर!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक चयन ।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
बेहतरीन रचनाओं से सजी लाजबाव प्रस्तुति आदरणीय सर, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चा मंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंनमन 🙏
सदैव की भांति बेहतरीन लिंक्स का बेहतरीन संयोजन किया है आपने इस अंक में। साधुवाद 🙏
मेरी पोस्ट को चर्चा में शामिल करने के लिए आपका
हार्दिक आभार 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
आपका हार्दिक आभार |विलंब हेतु क्षमा
जवाब देंहटाएं