शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आज भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना का काव्यांश-
छुपा है पर्दो में कितने, जाने क्या राज़ गहरा होगा।
अब्र के छंटते ही बेनकाब, चांद का चेहरा होगा ।
साये दिखने लगे चिनारों पे, जानें अब क्या होगा।
मुल्कों के तनाव से, चनाब का पानी ठहरा होगा ।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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नफरत-चाहत की भाषा का
आँखों में संचित भण्डार
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बिन काग़ज़ के, बिना क़लम के
लिख देतीं सारे उद्गार
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छुपा है पर्दो में कितने, जाने क्या राज़ गहरा होगा।
अब्र के छंटते ही बेनकाब, चांद का चेहरा होगा ।
साये दिखने लगे चिनारों पे, जानें अब क्या होगा।
मुल्कों के तनाव से, चनाब का पानी ठहरा होगा ।
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बिछड़े संगी साथी
मन में खलिश तो रही होगी
टूटी भावनाओं की किर्चें
तुम्हें चुभी जरूर होंगी
बासंती बयार के जादू में
बहे जा रहे हो
किसके प्रेम में हो गुलमोहर
बड़े मुस्कुरा रहे हो
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यदि लज्जा वश , संकोच वश स्त्रियां खुल कर कुछ नहीं कह पाती हैं
तो उसे निर्बल , असहाय , निरुपाय कह-कहकर ही जगती बुलाती है
क्यों पुरुषत्व को भी स्त्रीत्व के ही शरण में पुनः-पुन: आना पड़ता है
तब तो समर्पित स्त्रीत्व अपना होना भी त्याग कर सृष्टि आगे बढ़ाती है
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रंगों के शहर में
नजरें
कारोबारी हो जाया करती हैं।
रंगों
का कारोबार
बदन
पर केंचुए सा
रेंगता है।
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देख अमा की रात को, नहीं मनाना शोक।
घट-बढ़ ही है जिन्दगी, सीखे तुमसे लोक।।2
रूप रुपहला है मिला, लगते वृत्ताकार।
सूरज से रौशन रहे, लेकर किरण उधार।।3
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कौए मुझे कितने नापसंद थे,
सख़्त नफ़रत थी मुझे
उनकी काँव-काँव से,
उनका मुंडेर पर आकर बैठना
बिल्कुल नहीं सुहाता था मुझे,
उड़ा देता था मैं उन्हें
तरह-तरह के उपाय करके.
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मनुष्य और पशु में
बड़ा अंतर है
हिंसा-अहिंसा का।
जहाँ मनुष्य वाणी से
भावनाओं को अभिव्यक्त करता है,
वही पशु हिंसा द्वारा ।
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गेसुओं में खिले गुलाब तरोताज़ा थे
उन हांथों के स्पर्श से
भोर में जो रख देते थे माथे पर एक मीठा चुम्बन,
उसने नहीं देखा था सुबह का सूरज कभी,
माँ के चरणों से छनती स्नेह-धूप
हजार सूरजों पर भारी थी..
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उम्र भर
न जाने हम कितने
ही इम्तहां से
गुज़रे,
कभी कठपुतलियों की तरह, शिफर
पे डोलते रहे, कभी आँखों में
पट्टी बांधे, जिस्म ओ जां
से गुज़रे, बहुत दूर
उफ़क़ पार थीं,
न जाने हम कितने
ही इम्तहां से
गुज़रे,
कभी कठपुतलियों की तरह, शिफर
पे डोलते रहे, कभी आँखों में
पट्टी बांधे, जिस्म ओ जां
से गुज़रे, बहुत दूर
उफ़क़ पार थीं,
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वाणी में व्यंग्य न इतना घुले,
लज्जा से किसी का शीश झुके।
किसी का आत्मविश्वास टूटे,
या किसी का धैर्य छूटे।
कोई कुस्मृति याद आ जाए,
मन अवसाद से घिर जाए।
किसी के मन में ग्लानि भरे,
या किसी की एकाकी बढ़े।
लज्जा से किसी का शीश झुके।
किसी का आत्मविश्वास टूटे,
या किसी का धैर्य छूटे।
कोई कुस्मृति याद आ जाए,
मन अवसाद से घिर जाए।
किसी के मन में ग्लानि भरे,
या किसी की एकाकी बढ़े।
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अभी वो खुद को भी ठीक से समझ नहीं सकी थी
कि दूसरों को समझने की बारी आ गई
खुद के पैरों पर खडी़ होती उससे पहले
किसी का सहारा बनने की जिम्मेदारी उसके कंधे पर आ गई
अभी वो खुद से ठीक से रू -ब -रू भी नहीं हुई थी
कि इक नई जान को इस दुनियाँ से रूबरू कराने की जिम्मेदारी आ गई
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वह आकाश से उत्तरी
नीम की फुनगी पर
हौले से आ बैठी
थोड़ी देर सुस्ताकर
मुंडेर पर आ बैठी
नन्ही पीली चिड़िया
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आज का सफ़र यहीं तक
फिर फिलेंगे
आगामी अंक में
"उसके भी कुछ सपने थे!" को इस चर्चा में सामिल करने के लिए तहेदिल से शुक्रिया🙏💕🙏💕🙏💕🙏💕
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स
हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों से सजी बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति । प्रस्तुति में मेरे सृजन को साझा करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति। हर एक रचना बहुत आनंदकर और प्रेरणादायक है। मेरी रचना को यहाँ साझा करने के लिये हृदय से अत्यंत आभार। आप सभी का स्नेहिल प्रोत्साहन और आशीष सदा मिलता रहे।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल की. आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत आभारी हूं....मेरी रचना को जो आपने सम्मान दिया। सभी रचनाएं बहुत अच्छी हैं ...सभी रचनाकार साथियों को खूब बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और पठनीय लिंकों के साथ श्रम के साथ की गयी चर्चा के लिए बिटिया अनीता सैनी का आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर संपादन 💐💐
जवाब देंहटाएंबढ़िया संकलन
जवाब देंहटाएंचुनिंदा रचनाओं का संकलन,कुछ नए रचनाकारों से भी मिलना हुआ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति प्रिय अनीता,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमन को मुग्ध करने वाले सुन्दर सूत्रों का संकलन अति आकर्षक है । हार्दिक बधाईयां एवं शुभकामनाएँ तो है ही आनन्द प्रदान करने के लिए ।
जवाब देंहटाएंमनोमुग्ध चर्चा! शीर्षक में मेरी पंक्तियां दे कर जो सम्मान मुझे और मेरे लेखन को दिया उसके लिए में सदा अनुग्रहित रहूंगी।
जवाब देंहटाएंचर्चा में स्थान देने के लिए हृदय तल से आभार।
सभी रचनाकारों को बधाई,सारी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर, पठनीय।
सादर।