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रविवार, फ़रवरी 21, 2021

'दो घरों की चिराग होती हैं बेटियाँ' (चर्चा अंक- 3984)

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया  जी । 


सादर अभिवादन। 
रविवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।

आज भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार 

आदरणीया  जी की रचना से वाक्यांश- 


चिरकाल से लड़कों को घर का चिराग माना जाता है, लेकिन मैं समझती हूँ कि यदि उन्हें घर का चिराग माना जाता है तो मेरे समझ से वे केवल एक घर के ही हो सकते हैं, जबकि लड़कियाँ एक अपने माँ-बाप का तो दूसरा ससुराल वाला घर रोशन करती हैं। इस हिसाब से उन्हें एक नहीं दो घरों की चिराग कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-  

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आपाधापी की यहाँ, भड़क रही है आग।
पुत्रों के मन में नहीं, माता का अनुराग।।
बड़ी मछलियाँ खा रहीं, छोटी-छोटी मीन।
देशनियन्ता पर रहा, अब कुछ नहीं यकीन।।
छल-बल की पतवार से, कैसे होंगे पार,
भाई-भाई में नहीं, पहले जैसा प्यार।।
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     आप सोच रहे होंगे कि आज अचानक ये लड़के-लड़की वाली बात मैंने क्यों छेड़ दी। तो बताती चलूँ कि आज मेरी बिटिया का जन्मदिन है। विवाह के 9 वर्ष बाद मातृ सुख का सौभाग्य उसी की बदौलत प्राप्त हुआ। इन 9 वर्ष में जाने कितनी घरेलू और सामाजिक परिस्थितियों से जूझना पड़ा, यह वे हर माँ समझ सकती हैं, जिन्हें माँ बनने का इतना लम्बा अंतराल तय करना पड़ा हो। पहले जो घर सूना-सूना काट खाने को आता था, वह बिटिया के घर आते ही रौनक से भर गया। बिटिया घर में खुशियाँ लेकर आई तो समस्त घर-परिवार के साथ ही नाते-रिश्तेदारों को अपार ख़ुशी हुई तो सबने मिलजुल कर एक स्वर में उसका ख़ुशी नामकरण कर दिया। यद्यपि स्कूल में उसका नाम अदिति है, लेकिन स्कूल छोड़ सभी की वह लाड़ली खुशी ही है। 
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साथ में आए तो..
नयन मेरे चमकने लगे..
तुम भी मुस्कुराने लगे..।
और साथ चले जब..
जीवनसाथी बनकर..
आकर्षण के कवच त्यागकर..
हम दोनों एक दूसरे को पसंद आने लगे..।
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दिल आत्मा मन 
के मिलन 
का ठिकाना हूँ मैं 
अपने आप में एक नजराना हूँ मैं 
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एक मदहोशी है ऐसी 
होश में जो ले के आती, 
नाम उसका कौन जाने 
कौन जो करुणा बहाती !
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शीत गई अब जड़ता छोड़ो।
तन के, मन के बन्धन तोड़ो।
बहुत किया विध्वंस सृजन में,
शक्ति नदी की धारा मोड़ो।।2।
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मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ।
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ।
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं।
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो।
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।
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आत्मनिर्भर होकर भी
निर्भर रही पिता पर
जीवन भर
मगर स्वेच्छा से
पिता ने विवशता की डोर से
कभी नहीं बाँधा उन्हें
और न ही
पूर्वाग्रह की बेड़ियाँ
माँ के सुकोमल पाँव में
बाँधकर रखी
--
वो गया
अपने पुराने हो चुके
सपनों को साथ ले कर
इसके सपने इसके साथ रहे
रहते ही हैं
--
मेरे मुंह में तो जैसे जबान ही नहीं थी। लौकिक-परालौकिक, अला-बला जैसी चीजों पर मेरा विश्वास नहीं था। पर जो सामने था उसे नकार भी नहीं पा रहा था। सच तो यह था कि मेरी रीढ़ में डर की एक सर्द लहर सी  सी उठने लगी थी। आश्चर्य यह भी था कि ज़रा सी आहट पर उठ बैठने वाली श्रीमती जी को भी कोई आभास नहीं हुआ था, मेरे उठ कर बाहर आने का। परिस्थिति से उबरने के लिए मैंने आगंतुक को कहा, ठंड है, मैं आपके लिए चाय का इंतजाम करता हूँ, सोचा था इसी बहाने श्रीमती जी को उठाऊंगा, एक से भले दो। पर अगले ने साफ़ मना कर दिया कि मैं कोई भी पदार्थ ग्रहण नहीं करूंगा। आप बैठिए। मेरे पास कोई चारा नहीं था। फिर भी कुछ सामान्य सा दिखने की कोशिश करते हुए मैंने पूछा, कैसे आना हुआ ?
--
जानी सरद रितु खंजन आए 
पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए। 
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आज का सफ़र यहीं तक 
फिर फिलेंगे 
आगामी अंक में 

13 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह...!
    मैं तो कल काम के बोढतले इतना व्यस्त हो गया कि
    मुझे यह याद ही न रहा कि रविवासरीय चर्चा मुझे लगानी है।
    आपका आभार बिटिया अनीता सैनी।
    --
    यदि आप लोग आज्ञा दें तो कल सोमवार की चर्चा मैं लगा देता हूँ।
    --

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात !
    सुन्दर, सार्थक लिंक्स के चयन तथा प्रस्तुति के लिए बधाई प्रिय अनीता जी, रोचक एवं मनोहारी चर्चा अंक में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन एवं वंदन करती हूँ..सादर जिज्ञासा सिंह..

    जवाब देंहटाएं
  3. एक से बढ़कर एक रचनाओं का सुंदर संकलन। सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर लिंक्स से सजा काज का चर्चा मंच |सभी रचनाकारों को बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  5. हमेशा की तरह ही सुंदर लिंकों से सजा हुआ है ये मंच, ज्ञान का मंदिर है, हार्दिक आभार और ढेरों बधाई हो,

    जवाब देंहटाएं
  6. अनीता जी, बहुत बढ़‍िया कलेक्शन है...सभी ल‍िंंंंक्सएक से बढ़कर एक हैं...और कविता रावत जी की रचना तो गजब...मैं उनकी इस रचना को अपने घर में प्रत‍िपल अनुभव करती हूं...

    जवाब देंहटाएं
  7. चर्चा मंच के शीर्षक पंक्ति और भूमिका में मेरी ब्लॉग पोस्ट के वाक्यांश सहित ब्लॉग पोस्ट को सम्मान देने के लिए बहुत-बहुत आभार अनीता जी!
    वरिष्ठ साहित्यकार न होते हुए भी चर्चा प्रस्तुति में आपने मुझे इस सम्मानित नाम से सम्बोधित किया है, इसके लिए आपका धन्यवाद, आभार! बताती चलूँ कि मैं मात्र अपने आप को एक ब्लॉगर के रूप में ही देखना उचित समझती हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन रचनाओं का संकलन,कुछ नए और वरिष्ठ साहित्यकारों से भी परिचय हुआ,आभार प्रिय अनीता जी
    सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  9. शानदार भूमिका के साथ सुंदर पठनीय लिंक ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं

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