१४ फरवरी दुनियाभर में प्रेमी–प्रेमिका, प्रेम और प्रेम करने वालों के लिए प्रणय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रणय दिवस के मूल में एक दुखद कहानी है। 'ऑरिया ऑफ जैकोबस डी वॉराजिन' नाम की पुस्तक में वैलेंटाइन का जिक्र है यह दिवस रोम के एक पादरी संत वैलेंटाइन के नाम पर मनाया जाता है। बताया जाता है कि संत वैलेंटाइन दुनिया में प्यार को बढ़ावा देने में मान्यता रखते थे, लेकिन रोम में एक राजा को उनकी ये बात पंसद नहीं थी और वो प्रेम विवाह को गलत मानते थे। सम्राट क्लाउडियस को लगता था कि रोम के लोग अपनी पत्नी और परिवारों के साथ मजबूत लगाव होने की वजह से सेना में भर्ती नहीं हो रहे हैं. इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए क्लाउडियस ने शादी और सगाई पर पाबन्दी लगा दी थी। पादरी वैलेंटाइन ने सम्राट के आदेश को लोगों के साथ नाइंसाफी के तौर पर महसूस किया. उन्होंने इसका विरोध करते हुए कई अधिकारियों और सैनिकों की शादियां भी करायीं जिसके फलस्वरूप सन्त वैलेंटाइन को 14 फरवरी को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। उस दिन से हर साल 14 फरवरी को प्रणयदिवस के रूप में मनाया जाता है। संत वैलेंटाइन ने जेल में रहते हुए जेलर की बेटी को खत लिखा था, जिसमें अंत में उन्होंने लिखा था "तुम्हारा वैलेंटाइन."।
प्रणय सप्ताह की अन्तिम कड़ी
इक ख़बर अख़बार में छपने-छपाने चल पड़ी
बात उसकी, कौन जाने किस बहाने चल पड़ी
एक लड़की सिसकियों का बोझ कांधे पर लिए
उम्र का पूरा सफ़र तन्हा बिताने चल पड़ी
लोग चर्चा कर रहे थे देश के हालात पर
और मां बच्चे के ख़ातिर दूध लाने चल पड़ी
हे हरी तेरा वंदन
मन को बड़ा सुकून देता
ज़रा समय भी बदलता
बेचैन किये रहता है |
प्रणय को नर्म माटी से ज़रा ज़रा।
ये सच कि हर एक ख़्वाब की
ता'बीर नहीं होती, फिर
भी तेरी आँखों की
गहराइयों में,
ज़िन्दगी
डूब
के तलाशता है अक्षय प्रेम की विलुप्त
मणि, ये खोज है, कई जन्मों से
गले में क्रॉस पहने है मगर चन्दन लगाती है
सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है
ये नाटक था यहाँ तक आ गए संतों के हत्यारे
सुपर्णखा बनके जैसे राम को जोगन रिझाती है
दस पैसे का
एक सिक्का
जेबख़र्च में
मिलने वाला
रोजाना कभी,
किसी रोज
रोप आते थे
बचपन में
चुपके से
आँगन के
तुलसी चौरे में
बुझ गई आतिश-ए-गुल देख तू ऐ दीदा-ए-तर
क्या सुलगता है जो पहलू में धुआँ है कुछ और…
ये शेर उस खबर पर पूरी तरह फिट बैठता है जो अमेजॉन के मार्केट प्लेटफॉर्म से आई है, ऑनलाइन बाज़ार की सरताज बनी अमेजॉन पर एक ऐश ट्रे बिक रही थी, ऐश ट्रे की बनावट महिलाओं का सरेआम अपमान करने के लिए काफी थी, इसका डिजाइन कुछ ऐसा था जैसे कोई औरत अपनी टांगें फैलाकर बैठी है और आप उसकी टांगों के बीच में सिगरेट बुझा सकते हैं। हालांकि अब ‘संभवत:’ वह हटा ली गई है, मगर इस एक बात ने ये अवश्य बता दिया कि महिलाओं के शरीर की बनावट को लेकर जो मानसिकता अब भी बरकरार है, उसे बाज़ार में किस किस तरह भुनाया जा सकता है।
बानगी ही सही, परंतु अमेजॉन पर बिक रही इस ऐश ट्रे की डिजाइन से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सिगरेट पीने वाले व्यक्ति के मन में उसे बुझाते हुए क्या विचार उठते होंगे और उन विचारों की परिणति किस किस रूप में होने की संभावनायें रहती होंगी।
देश के लगभग सभी महिला अधिकारवादी संगठन जो किसी बलात्कार की घटना पर ज़ार-ज़ार रोते हैं, जिन्हें उसमें ‘दलित… वंचित…,अल्पसंख्यक…लिंचिंग’ तक सब नज़र आ जाता है परंतु वे अपनी निगाहें बाज़ार, मीडिया, समाचारपत्रों के ” इस हथकंडे” की ओर नहीं डालते। वे इस तरह से बाज़ार में परोसे जा रहे अपराध पर चुप क्यों हैं?
सुप्रभात आदरणीय शास्त्री जी 🙏
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा बेहतरीन लिंक्स के खजाने का पर्याय है। सचमुच आप महासागर से मोती चुनने में माहिर हैं। बहुत बधाई और शुभकामनाएं 🙏
मेरे लिए गर्व का विषय है यह कि मेरी पोस्ट का लिंक भी इस चर्चा में शामिल किया है आपने, हार्दिक आभार आपका 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा
मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद सर |
सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ चर्चा मंच, मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसभी रचना बहुत ही मनभावन है
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
हार्दिक आभार आपका |प्रेम दिवस की शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंसभी गुरुजनों को मेरा नमन..
जवाब देंहटाएंसादर आभार मेरी कविता शामिल करने के लिए..
शुभ दिवस
बेहतरीन रचनाओं का चयन,बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय सर,मेरी रचना को भी मान देने के लिए हृदयतल से आभार एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर चर्चा प्रस्तुति
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