शीर्षक पंक्ति: आदरणीया गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आज भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीया गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी
की रचना का काव्यांश--
भोर ने उतारी कुहासे की शाल अब
गुलमोहर मुट्ठी भर लाया गुलाल अब.
वैभव अनन्त हुआ ,आया वसन्त .
कुहासे की नीरव पदचाप अब आगामी शीत ऋतु के आगमन तक ठिठक गई है।
प्रकृति का लजीलापन दर्शाता कुहासा एक ऐसी चादर है जिसे सर्दी लगने पर धरती ओढ़ लेती है।
पंछियों का मुदित कलरव अब सुदूर तक सुना जा सकता है अब।
रास्ते,सड़कें,पटरियाँ और पगडंडियाँ अब साफ़-साफ़ दिखाई देने लगेंगीं।
बसंत में फूले ढाक-पलाश के जंगल अब और रमणीय लगने लगे हैं।
धुँधला क्षितिज अब मनमोहिनी प्रभामय रेशमी रश्मियों से खिल उठा है।
-अनीता सैनी 'दीप्ति'
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
--
कोरोना के काल में, ऐसी मिली शिकस्त।
महँगाई ने कर दिये, कीर्तिमान सब ध्वस्त।।
ईंधन महँगा हो रहा, जनता है लाचार।
बिचौलियों के सामने, बेबस है सरकार।।
--
सर्दी का अन्त हुआ ,आया वसन्त .
लम्बे अब दिन हुए .उजले हैं अनछुए .
धूप नई निखरी है .पात पात बिखरी है .
उत्सव दिगन्त हुआ आया वसन्त.
--
कभी नीलकंठ बन
मिलूं शुभ्र गगन में
कभी राजहंस बन
नीलम सी झील में
मेरे झंकृत मन के शोभित पल!
--
प्रेम स्वीकृति चाहता है, अंदर की सत्ता का
चाहे वो जैसा भी हो, क्योंकि उस भीतर
की सुंदरता में ही रहता है, परम
सत्य का वास, बाह्य खोल
समय के साथ अपनी
मौलिकता खो
देता है, कर
जाता
है
चाहे वो जैसा भी हो, क्योंकि उस भीतर
की सुंदरता में ही रहता है, परम
सत्य का वास, बाह्य खोल
समय के साथ अपनी
मौलिकता खो
देता है, कर
जाता
है
--
मुस्कुराकर हर बार मिले ,
सुकून चेहरे पर झलके ,
यूं ही हो जाते दिल के मेहमा ,
अपनेपन का अहसास जताकर ।
--
तोड़ दो वह क़ैद जिसने धूप को बंदी किया
दस्तकें देते रहोगे और कब तक द्वार पर !
फूल नीले, पत्तियां काली, हवा कैसी चली !
कौन जाने लग गई इस बाग़ को किसकी नज़र
--
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यौं मलिच्छ बंस पर, सेर शिवराज हैं॥
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी,
ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं।
--
सुबह ने मेरे माथे को , चूम-चूम कर ऐसे जगाया
और अंगड़ाईयों से मुझे , खींच जैसे-तैसे छुड़ाया
मैं भी अलस नयनों की , बेसुध खुमारियों को
गरम-गरम चुसकियों से , जगाए जा रही थी
कि सूरज की उतावली किरणों ने हरहराकर
मुझे ही , हर कोने-कोने तक , बिखरा दिया
या शायद बसंत ने मुझे फिर से बहका दिया !
--
--
श्रम से सजाई गयी सुन्दर चर्चा प्रस्तुूति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी दीप्ति जी।
बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य प्रस्तुति । सभी सूत्र बेहद उम्दा । चर्चा में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों से सजी लाज़बाब प्रस्तुति प्रिय अनीता,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत सुंदर , सभी आदरणीय को बहुत शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत धन्यवाद ।
वाह अनीता जी, सभी लिंंक एक से बढ़कर एक हैं...इन रचनाओं को पढ़वाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंमेरी कहानी 'विद्वेष' को 'चर्चामञ्च' में स्थान देने के लिए आभार आ.अनीता जी! आज का अंक मन को बहुत भाया।
जवाब देंहटाएंसभी विद्व रचनाकारों का अभिनन्दन!
हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ हर प्रकार के रसास्वादन कराने हेतु ।
जवाब देंहटाएंगिरिजा कुलश्रेष्ठ जी की मुग्ध करती पंक्तियां उस पर इतनी सुंदर व्याख्यात्मक परिदृश्य सचमुच तिलिस्म सा समा बांध गया।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय तल से शुक्रिया।
सादर।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रिय अनीता सैनी 'दीप्ति' जी,
जवाब देंहटाएंआपके श्रम को नमन... सभु लिंक्स एक से बढ़ कर एक हैं। साधुवाद 🙏
आपने मेरी पोस्ट को भी इसमें स्थान दिया... बहुत आत्मीय आभार आपका 🙏
सस्नेह,
शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत ही उम्दा रचनाएँ देखने और पढ़ने को मिली, रंग बिरंगे किस्से-कहानियो का शानदार गुलदस्ता सजाया है आपने अनिता जी ,आपकी मेहनत दमक रही है , मेरी रचना को शामिल किया इस के लिए हार्दिक आभार, नमन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ आकर्षक एवम उम्मदा हैं।
जवाब देंहटाएं