शीर्षक पंक्ति: राष्ट्रकवि कविवर मैथलीशरण गुप्त जी।
सादर अभिवादन।
शनिवासरीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
राष्ट्रकवि कविवर मैथलीशरण गुप्त जी ने नैराश्य से उबारने और रग-रग में उमंग और उत्साह भरने में उनका रचा एक काव्यांश पढ़िए-
"करके विधिवाद न खेद करो,
निज लक्ष्य न्निरंतर भेद करो।
बनता बस उद्यम ही विधि है,
मिलती जिससे सुख की निधि है।
समझो धिक निष्क्रिय जीवन को,
नर हो, न निराश करो मन को।"
निज लक्ष्य न्निरंतर भेद करो।
बनता बस उद्यम ही विधि है,
मिलती जिससे सुख की निधि है।
समझो धिक निष्क्रिय जीवन को,
नर हो, न निराश करो मन को।"
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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इंजन चलता सबसे आगे।
पीछे -पीछे डिब्बे भागे।।
हार्न बजाता, धुआँ छोड़ता।
पटरी पर यह तेज दौड़ता।।
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प्रभु ने तुमको दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को
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भटक गए है कुछ रास्ते मेरे
तलाश ज़ारी है इस घनी आबादी में
हर तरफ जहां दिखता है अंधेरा मुझे
फूटती है रोशनी की किरण उस चारदीवारी में
आसान नहीं होता भूल जाना किसी को
फिर चाहे दुनियां बना क्यों न ले
वक़्त को मलहम
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तुम्हारे साथ मिलकर मैं यमन का राग गाऊँगा
अभी से शाम का मंज़र ये सिंदूरी बना लेना
तवे की रोटियों का स्वाद ढाबों में नहीं मिलता
मगर जब भूख हो रोटी को तन्दूरी बना लेना
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कलम लिखती मसी बहती,नयी रचना मुखर होती।
लिखे कविता सरस सुंदर, नवल रस के धवल मोती।
चटकते फूल उपवन में ,दरकती है धरा सूखी।
कभी अनुराग झरता है, कभी ये ओज से भरती।।
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आवो हवा जमाने कि जो रही है मिल ,
कुछ इस तरह से हो गई है कातिल ,
कि घायल हो रहे है अब तो कई दिल ,
पता नहीं दिलों पर और कितना सितम ढाते हो ।
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मैं रोज़ देखता हूँ
कि शरीर मज़बूत होते जाते हैं
और आत्माएं कमज़ोर,
आख़िर में शरीर बच जाता है
और आत्मा मर जाती है.
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गृहस्थी के
हवन कुंड में तपाकर
सुनहरे रंग की हो चुकी
बूढ़ी महिलाएं
अपने अपने घरों से निकलकर
इकठ्ठी हो गयी हैं
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बाणों से हत हाथी-घोड़े, तथा मनुष्य भी जो मृत हों
गीदड़ आदि माँसभक्षी पशु, इधर-उधर घसीटें उनको
सेना सहित भरत का वध कर, शस्त्र ऋण से उऋण होऊँगा
इसमें संशय नहीं मुझे, हर अपमान का बदला लूँगा
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जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स
धन्यवाद
आदरणीय सभी प्रस्तुतियां बहुत सुंदर , सभी को बहुत बधाइयां । । मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी दीप्ति जी।
सुन्दर चर्चा.मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंराष्ट्रकवि कविवर मैथलीशरण गुप्त जी की कविता से सजी भूमिका और अत्यंत सुन्दर सूत्र संकलन । सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों से सजा सुंदर चर्चा अंक,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं सादर नमन
जवाब देंहटाएंअच्छा संकलन !
जवाब देंहटाएं:
पर जिन्होंने टिप्पणियों के लिए अनुमोदन की शर्त लगा रखी है, उन पर विचार करना उचित नहीं होगा
बहुत सुंदर सूत्र संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
मेरी पसंद को सबकी पसंद बानने के लिए हार्दिक आभार, अनिता जी , बेहतरीन संकलन ,सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई सादर नमन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंप्रिय अनीता सैनी 'दीप्ति' जी,
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन चर्चा को संजोने में आपने मेरी ग़ज़ल को भी शामिल कर मुझे उपकृत किया है।
हार्दिक आभार आपका 🙏
सस्नेह,
शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
शानदार पंक्तियां गुप्त जी की भूमिका को उत्कृष्टता देती।
जवाब देंहटाएंमनोहारी लिंक मोहक सामग्री।सभी रचनाएं बहुत आकर्षक पठनीय।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सादर।