सादर अभिवादन
आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है
(शीर्षक और भूमिका आदरणीय यशवन्त माथुर जी की रचना से )
'धारयति इति धर्मः'-
जिसे धारण किया जाए
वही धर्म है
अच्छे कर्म करना ही
जीवन का मर्म है।
धर्म के सही अर्थ को समझते हुए और उसे अपने जीवन में धारण करते हुए.....
चलते हैं, आज की रचनाओं की ओर.....
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गीत
"सत्य-अहिंसा की मैं अलख जगाऊँगा"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मैं कभी वक्र होकर घूमूँ,
हो जाऊँ सरल-सपाट कहीं।
मैं स्वतन्त्र हूँ, मैं स्वछन्द हूँ,
मैं कोई चारण भाट नहीं।
फरमाइश पर नहीं लिखूँगा,
गीत न जबरन गाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे को बढ़ता जाऊँगा।।
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जब प्रेम के जल में
सच का कीटनाशक मिला कर
हम शुरू कर देंगे सींचना
अपने वर्तमान से
भविष्य को।
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दैदिप्य व्याल के हर बंध में भी
है महकता प्रज्ञ चंदन
और घिसता पत्थरों पर
भाल चढ़ता है निरंजन।
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तलब
बयां हरबात दिल की मैं,सरे बाजार करता हूँ,
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जय-जय-जय चापलूस महाराज
स्वाभिमान ना आता तुमको रास।
पिछल्ले बने घूमते तुम
नहीं रुकता कभी
तुम्हारा कोई काज ।
गुडबुक्स में ऊपर रहते तुम
बॉस करता तुम पर नाज़ ।
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लॉकडाउन के पहले साधारणतः सबको पाँच दिन तो कार्यक्षेत्र जाना ही होता था, पर छठे दिन भी हर दिन की तरह ही हर बार जाना पड़ता था। हाँ, सातवें दिन की छुट्टी मिलती थी, किंतु सप्ताह में एक दिन के लिए बहुत से काम इकट्टे हो चुके रहते थे, इसलिए उसी में दिन कट जाता था। कभी किसी के घर कोई बैठक हुई तो वह दिन भी गया। इसलिए एक दिन भी घर के काम करने का मौका नहीं मिलता था। सोचते थे
------------------------------ दर्द सबका एक-सा
- मैंने ऊपर संदर्भित अपने आलेख में भी यही कहा था और यहाँ भी यही कहता हूँ कि इस समस्या तथा ऐसी अन्य कई समस्याओं का एकमात्र समाधान चरित्र-निर्माण तथा सुसंस्कारों का विकास ही है । देश के युवा भ्रष्ट, उद्दंड एवं चरित्रहीन बनेंगे तो ऐसी घटनाओं का होना किसी भी कानून से नहीं रोका जा सकेगा चाहे हम कितने ही दोषियों को सूली चढ़ा दें ।
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आज का सफर यही तक,अब आज्ञा दें।
आप सभी स्वस्थ रहें,सुरक्षित रहें।
कामिनी सिन्हा
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उपयोगी और पठनीय लिंकों के साथ उत्तम चर्चा प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका आभार आदरणीया कामिनी सिन्हा जी।
बेहतरीन प्रस्तुति। आभार कामिनी जी।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.आपका आभार.
ReplyDeleteउत्कृष्ट संकलन के लिए अभिनंदन कामिनी जी । साथ ही मेरे आलेख को स्थान देने के लिए आपका असीमित आभार
ReplyDeleteधारयति इति धर्मः'-
ReplyDeleteजिसे धारण किया जाए
वही धर्म है
अच्छे कर्म करना ही
जीवन का मर्म है।
धर्म के सही अर्थ को समझते हुए और उसे अपने जीवन में धारण करते हुए.....
चलते हैं, आज की रचनाओं की ओर.....
चर्चा का शुभारंभ करने वाली पंक्तियां सब कुछ कह गईं. हृदयग्राही भूमिका.
और हमेशा की तरह रंग-रंग की रचनाएं.
धर्म और विद्या के बीच विभिन्न विचारों और भावों को समेटती चर्चा.
सहभागी बनाने के लिए हृदयतल से आभार.नमस्कार.
बहुत अच्छी चर्चा... बधाई प्रिय कामिनी जी 🙏
ReplyDeleteअच्छी चर्चा... बधाई
ReplyDelete'जो मेरा मन कहे' को स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर सराहनीय सूत्रों से सजी चर्चा प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हृदय से असीम आभार कामिनी जी !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संकलन |शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत चर्चा
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति कामिनी जी, हार्दिक आभार , बहुत बहुत धन्यबाद भी आपका , आपकी मेहनत को सलाम,आपकी कोशिश कमाल की है, बधाई हो, सादर नमन
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय कामिनी दी।
ReplyDeleteसादर
प्रभावशाली भूमिका प्रभावशाली शीर्षक।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति लाजवाब सामग्री उपलब्ध करवाई है आपने कामिनी जी ।
सभी रचनाएं बेजोड़।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
सस्नेह।
उत्कृष्ट एक से बढ़कर एक रचनाओं का संकलन। मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए आभार कामिनी जी।
ReplyDeleteसादर।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह सखी बहुत सुंदर चर्चा के साथ अनमोल रचनाएँ | शुभकामनाएं और आभार सखी |
ReplyDeleteआप सभी स्नेहीजनों का तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार
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