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सोमवार, फ़रवरी 07, 2022

'मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे' (चर्चा अंक 4334)

 सादर अभिवादन। 

सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है। 

           बीते रोज़ स्वर सम्राज्ञी भारतरत्न लता मंगेशकर जी का देहावसान संगीतप्रेमियों को अपनी प्रिय दीदी को खोने का गहरा रंज-ओ-ग़म दे गया। संगीत का एक जीता-जागता युग 92 साल की आयु में अपना स्वर हमें धरोहर के रूप में सौंपकर विलुप्त हो गया। दुनियाभर में संगीत रसिक इस ख़बर से व्यथित हुए। 

         संगीत हमें संस्कार और संवेदना से जोड़ता है। संगीत एक कला है जो हमारी संस्कृति का अंग है। लता दीदी द्वारा गाए गए 30 हज़ार से अधिक गाने 36 भाषाओं में स्वरबद्ध हैं। हमारे एहसासात से गुज़रते गीत गाकर उन्होंने जीवन को रसमय बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। उनका किशोरवय का संघर्ष अत्यंत मार्मिक और प्रेरणादायक है। 13 वर्ष की उम्र में जीवन में पिता का साथ छूटना और भाई-बहनों की परवरिश के लिए लंबा संघर्ष करते हुए गायन में अपनी धाक जमाना कठिन चुनौती थी। 

          वे आजीवन अविवाहित रहीं और पूरा जीवन संगीत की साधना में समर्पित कर दिया। भारत-चीन युद्ध के बाद 27 जनवरी 1963 को नई दिल्ली में आयोजित सरकारी कार्यक्रम में जब उन्होंने संगीतकार सी.रामचंद्र के निर्देशन में कवि प्रदीप का रचा ग़ैर-फ़िल्मी गीत-

"ऐ मेरे वतन के लोगो 

ज़रा आँख में भर लो पानी, 

जो शहीद हुए हैं उनकी 

ज़रा याद  करो क़ुर्बानी।

गाया तो माहौल ऐसा बना कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू रो पड़े थे।

लता दीदी भविष्य में शोध का विषय रहेंगी जिन्हें संगीत के विभिन्न रूपों में जाना जाएगा। 

चर्चामंच परिवार लता दीदी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। 

आइए पढ़ते हैं आज की चुनिंदा रचनाएँ-

गीत "शब्दों की पतवार थाम, मैं नौका पार लगाऊँगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

चाहे काँटों की शय्या हो,
या नर्म-नर्म हो सेज सजे।
सारंगी का गुंजन सुनकर,
चाहे ढोलक-मृदंग बजे।
अत्याचारी के दमन हेतु,
शिव का डमरू बन जाऊँगा।
दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं,
आगे बढ़ता जाऊँगा।।
*****
13 साल नहीं बोले दिलीप-लता? फिर कैसे हुई सुलह
लता ने इंटरव्यू में कहा कि "आज कोई मेरे उर्दू तलफ्फुज़ की कोई तारीफ करता है तो इसका क्रेडिट मैं यूसुफ़ साहब को देती हूं. उनके एक छोटे से रिमार्क ने मुझे उर्दू के करीब ला दिया जो बहुत ही खूबसूरत ज़बान है. युसूफ साहब की उर्दू पर कमाल की पकड़ थी, जिसे सुनना कानों को मधुर संगीत की तरह लगता था."*****Watch: शाख से टूटी सुरों की लता: 10 अनजाने तथ्य
फिल्मों से इतर लता के गीत ए मेरे वतन के लोगों, ज़रा आंख में भर लो पानी ने उन्हें सबसे ज़्यादा प्रसिद्धि दिलाई. कवि प्रदीप ने इसे लिखा था. चीन से युद्ध के बाद लता ने 27 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान में इस गीत को गाया तो देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों से भी आंसुओं की धारा बह उठी थी.*****पैरों में लगी महावर आज

घर  घर   में  उत्सव  दूना,

बन  रहीं   रंगोली  आज।

युवतियां दिखें पीत बसना,

पैरों में लगी महावर आज।।

*****

वासन्ती हवा

पाले में ढके, कोहरे में खेत

झूमते पा परस वासन्ती हवा का

चुप सी खड़ी थी जो सरसों की हर वह कली कल 

फूल बन घर से गयी है

वसंत के आने की खबर उसको भी मिल गयी है !

*****

तीन मुक्तक

जिनमें कबीर सी निर्भयता , क्या वो स्वर अब भी मिलते हैं ,

जिनमें गांधी सी जन - चिंता , क्या वो उर अब भी मिलते है। 

कितना भी हो बड़ा प्रलोभन , शीर्ष सुखों के दुर्लभ सपने ,

जो न झुके राणा प्रताप से , क्या वो सिर अब भी मिलते हैं। 

*****

एक प्यारी सी पाती

“इस्कूल में टीचर पिटाई करे और ज्यादा पढ़ के कॉलेज चले जाओ तो टीचर जी पुलिस को बुला लें पिटाई करने को | बड़ा बुरा हो रा ये तो | कमबख्त पढाई न ही करो तो ठीक या फिर पुलिस बन जाओ बड़े होकर और दे दनादन, दे दनादन... सोचकर ही शशांक को बड़ा मज़ा आता |”*****सावधान,वे ग़रीबों के बारे में सोच रहे हैं !
फ़िलहाल सरकार की जेब बजट से फ़ुल है।ऐसे में कल्याण का ढोल बख़ूबी बज सकता है।सरकार यही करना चाहती है।वह कहती है कि विपक्ष ग़रीब-विरोधी है पर विपक्ष इसे सरासर ग़लत मानता है।वह ग़रीबों से एकजुटता दिखाने के लिए ख़ुद भी कितना ग़रीब है ! उसकी अंदरूनी चाहत है कि ग़रीब बने रहें।इन्हीं से उसका कल्याण हो सकता है।दरअसल  कल्याण की दरकार उसे ग़रीब से ज़्यादा है।सरकार है कि विपक्ष के मंसूबे पूरे नहीं होने देना चाहती।इसलिए वह लगातार ‘ग़रीब-कल्याण-योजना’ लाने को प्रतिबद्ध है।आख़िर उसे भी तो अपना कल्याण करवाना है।*****आज ही जी लो, कर लो अपने मन की आज पोस्ट ऑफिस में एक व्यक्ति मिला जो बेहद दरिद्र दिखा पर उसके खाते में करीब पैंतीस लाख थे, बीबी कोरोना में मर गई, बेटा बहु जर्मनी में है, पांच वर्षों से आये नही और यह बीस बावीस हजार की पेंशन में से पंद्रह हजार बेटे के सेविंग खाते में डाल रहा, इतना अमीर जीर्ण शीर्ण आदमी नही देखा था - उसे बताया यह सब फिर वो मुस्कुराकर चला गया इस वादे के साथ कि वो आज इंडियन कॉफी हाउस में शाम को खाना खायेगा, डेज़र्ट के साथ और अगले महीने से बेटे के खाते में अब रुपये नही डालेगा और हरिद्वार, ऋषिकेश जाएगा मार्च में.... उसकी आँखोँ में मौत की आगत देखी मैंने - अपनी शेष बची उम्र के दो साल उसे देकर लौट आया घर मैं कुछ ऐसे जैसे एकदम खाली हो गया हूँ...*****आज बस यहीं तक फिर मिलेंगे आगामी सोमवार। रवीन्द्र सिंह यादव

8 टिप्‍पणियां:

  1. अद्यतन लिंको के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति!
    स्वर कोकिला भारत रत्न लता मंगेशकर को शत शत नमन|
    आपका आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी|

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  2. स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को विनम्र श्र्द्धांजलि, दीर्घकाल तक वे जगत को अपने गीतों से महकाती रही हैं और आगे भी महकाती रहेंगी, अपने संगीत में वे अमर हो गयी हैं। पठनीय रचनाओं के सूत्रों की खबर देती सुंदर चर्चा, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीया लता जी के यादों को समेटे बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति सर, सरस्वती सवरुपा लता मंगेशकर जी को सत सत नमन

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति। लताजी की स्मृति में उनसे जुड़ी रचनाओं को पढ़ते पढ़ते मन भर आया।
    वो गीत याद आ रहा है -
    ना जाने क्यूँ,होता है ये जिंदगी के साथ, किसी के जाने के बाद, मन करे उसकी याद, छोटी छोटी सी बात....

    अन्य रचनाएँ भी बहुत अच्छी हैं।

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  5. आदरणीय लता जी की स्मृतियों से ओतप्रोत सराहनीय अंक ।
    सुर साम्राज्ञी लता दीदी को शत शत नमन ।
    आपको सादर शुभकामनाएं आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी ।

    जवाब देंहटाएं

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