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मंगलवार, फ़रवरी 01, 2022

"फूल बने उपहार" ( चर्चा अंक-4328)

सादर अभिवादन

आज की प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है

(शीर्षक आदरणीय शास्त्री सर जी की रचना से)

बिना किसी भूमिका के चलते हैं, आज की कुछ खास रचनाओं की ओर...

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 दोहे "फूल बने उपहार" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

सरदी अब घटने लगी, चहका है मधुमास।
खेतों से नव-अन्न की, आने लगी सुवास।।
--
बया नीड़ से झाँकती, अपने चारों ओर।

 हरित धरा पर हो गयी, अब तो सुन्दर भोर।।

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बोधगम्यता

बोधगम्यता ही कहूँगी

रात्रि की, कि 

चाँद रुपी लालटेन से

चाँदनी बरसाना 

 उन्मुक्त भाव से 

अंबर पर तारे छिड़कना

और फिर यों हीं 


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नहीं तो अजल से यही है फ़साना ...

इसी चापलूसी की सीढ़ी से आना.
बुलंदी की छत पे जो तुमको है जाना.
 
कई बार इन्सानियत गर जगे तो, 
कड़ा कर के दिल से उसे फिर हटाना.
 
भले सच ये तन कर खड़ा सामने हो,
न सोचो दुबारा उसे बस मिटाना.

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टके के तीन
सैनानी जिसने सेना में जवानों को खिलाये जाने वाले खाने में परसी जा रही पतली दाल का वीडियो वायरल करने पर सेवा मुक्त कर दिया गया, यह समाचार पढ़कर दुःख भी हुआ और सन्तोष भी।" अभी मैं उधेड़बुन में ही था।

कि मित्र रमेश आ गया,-"महेश किस दुविधा में फँसे हो?" आते ही उसने मुझसे कहा।

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सात दोहे

जल से काया शुद्ध हो, सत्य करे मन शुद्ध,
ज्ञान शुद्ध हो तर्क से, कहते सभी प्रबुद्ध।

धरती मेरा गाँव है, मानव मेरा मीत,
सारा जग परिवार है, गाएँ सब मिल गीत

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येड़ा बन कर पेड़ा खाना
मुहावरे जिंदगी के तजुर्बों पर ही बनते हैं ! इनमें समाज और लोगों के अनुभवों का सार होता है। ऐसा ही एक मुहावरा है, ''येड़ा बन कर पेड़ा खाना !'' वैसे तो यह एक बंबइया मुहावरा है, जिसका मतलब होता है, खुद को बेवकूफ जतला कर अपना अभिलाषित या वांछित
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"नवीन चौरे" की उस कविता को सलाम जिसे सदी की कविता कहना जरूरी हो जाता है

कुछ भी खौलने तक
नहीं पहुँच पाता है
गरम होना बहुत बड़ी बात है
ठंडे रहने के फायदे में
जब इंसान होने से बचने के रास्ते
उँगलियों में कोई गिनाता है

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नेताओं का भी दर्द तो समझों कोई (व्यंग्य)

वादे नये इरादे पुराने हैं।
नेताजी हमारे बड़े दिलवाले।
कब अकड़ना है और कब पैर पकड़ना है
नेता जी ये बड़े अच्छे से जाने।
आपत्ति में भी अपने लिए अवसर ढूढ़ने वाले।
वक़्त पड़ने पर जनता जनार्दन बोलकर 
जनता के चरणों में लोटने वाले।

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आज का सफर यही तक, अब आज्ञा देआप का दिन मंगलमय होकामिनी सिन्हा

13 टिप्‍पणियां:

  1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर और श्रमसाध्य चर्चा।
    आपका आभार कामिनी सिन्हा जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सार्थक चर्चा में मुझे भी सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक और सराहनीय रचनाओं का संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही उम्दा बाद शानदार प्रस्तुति
    मेरी रचना को इस
    खूबसूरत चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद प्रिय मैम🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन संकलन।
    मेरे सृजन को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. चर्चा मंच पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी को तहेदिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन चर्चा ...
    आभार मेरी गज़ल को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं

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