सादर अभिवादन।
सोमवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
लीजिए पढ़िए चंद सद्यप्रकाशित चुनिंदा रचनाएँ-
नवगीत "आगे बढ़ना आसान नहीं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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३- रहूँ सतर्क
किसी पर विश्वास
रखूँ न रखूँ
४-वो एक दिन
हो जाएगी समाप्त
मृत्यु के साथ
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चांद गया था दवा चुराने | ग़ज़ल | डॉ शरद सिंह | नवभारत
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सब विष-भरे
फल हैं सखी।
सुख के कहाँ
पल हैं सखी।
नयना हुए
नल हैं सखी।
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बेटियाँ जानती हैं उनके जन्म के बाद नहीं बजेगी थाली:)
क्या डराते हो तुम आंधियों के मिजाजों से
चलना सीखा हमने तूफानों में पलते पलते
जो भी है दिल में पलाश आज ही कह दो
बात बन जाती है फ़साना यूं टलते टलते
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बहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत धन्यवाद....
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी|
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए इस अंक में |
बेहतरीन संकलन।
जवाब देंहटाएंकैसे लिखूँ? रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
सभी को बधाई।
सादर
बेहतरीन संकलन।
जवाब देंहटाएंरवीन्द्र जी मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार 🙏
सुन्दर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सराहनीय चर्चा प्रस्तुति। मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया संकलन
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