सादर अभिवादन।
शुक्रवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है
शीर्षक व काव्यांश आ.डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी के दोहे 'लाया नूतन पात' से-
मास फरवरी चल रहा, मन है बहुत उदास।
आओ सबको प्यार से, बुला रहा मधुमास।।
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
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बड़े बुजुर्गों की सदा, करना सेवा आप।
मात-पिता को कभी भी, देना मत सन्ताप।।
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दुनिया में सबसे बड़े, मात-पिता-आचार्य।
सब को जीवन के यही, सिखलाते हैं कार्य।।
मैं क्या होना चाहूँगी अगले जन्म में ?
यक्ष प्रश्नोत्तर - मैं होना चाहूँगी.......
हाँ ! मैं होना चाहूँगी अमृता तन्मय ही
अगले, अगले या फिर हर जन्म में
जो मैं हूँ वही होना चाहूँगी - अमृता तन्मय !
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वही लकीर के फ़क़ीर सभी, देह से पृथक है
छाया, साथ साथ गुज़रने का अर्थ नहीं
कि एक ही गंत्वय हो हमारा, सभी
अनुबंध टूट जाते हैं चाहे बांधे
जितना भी नेह डोर, कोई
नहीं किसी का हम -
साया,
छाया, साथ साथ गुज़रने का अर्थ नहीं
कि एक ही गंत्वय हो हमारा, सभी
अनुबंध टूट जाते हैं चाहे बांधे
जितना भी नेह डोर, कोई
नहीं किसी का हम -
साया,
यूं तो, झूलती थी वो, पवन की बांहों में,
विहँसती थी, टोककर,
उड़ते पंछियों को, उन राहों में,
मचल उठती थी, अजनबी मुसाफिरों संग,
शायद, सोचकर कि,
गुजर जाएंगे, चैन से तन्हा पल,
कुछ तो, रहबरों ने भी, की होगी खता,
टूट कर बिखरी, इक लता!
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गुलाब का इत्र बनो ।
गुलकंद बनो ! गुलफ़ाम बनो।
कद्रदानों के बीच रहो ।
कोमल हो।
काँटों के मध्य उगो ।
महफ़ूज़ रहो ।
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करता कोशिश कुछ कहने की
लेकिन सुनना बाकी है
बन जाए जिनसे कोई कविता
वो अक्षर चुनना बाकी है।
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बीतते हुए पल-दिन साल-दर-साल,
खोए हुए से गुमसुम से दिनों रात।
ताका करते हैं यूं ही बरबस बेबात,
डबडबाई आँखों के नरम तरल कोर !
झुलस रही है तिथियाँ
श्रद्धांजलि रीतियाँ
भीड़ की आड़ में
समय की लकीरों पर
जूतों के निशान है।
लेखनी की नींद गहरी
आज थककर सो रही।
गीत आहत से पड़े सब
प्रीत सपने बो रही।
भाव ने क्रंदन मचाया
खिन्न कविता रो पड़ी।
शब्द के जाले...
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रूठी है ज़िन्दगी तो मुक़द्दर बदल गए ,
दुनियाँ के भी हों जैसे ये तेवर बदल गए ।
दीवार-ओ-दर में खुश था जहाँ तुम थे साथ पर,
कब नींव के न जाने ये पत्थर बदल गए ।
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आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
उपयोगी लिंकों के साथ सुंदर चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार अनीता सैनी 'दीप्ति'जी|
विविधतापूर्ण रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुभकामनाएं अनीता जी ।
उम्दा चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद,अनीता जी. कुछ रचनाएँ पढ़ी,कुछ पढना बाकी हैं.
जवाब देंहटाएंउदासी छंटने ही वाली है !
सुंदर संकलन आप सभी को शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंउदास मन में बसंती उमंगों से नव प्राण फूँकती हुई अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। इस आनन्दवर्धन के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंचर्चा योग्य समझने के लिए शुक्रिया !!
जवाब देंहटाएंअलग-अलग स्वाद. अलग-अलग भाव.
जवाब देंहटाएंदिलचस्प संकलन, अनीता जी.
प्रत्येक रचना का आनंद लिया.
गुलाब आपके लिए. सबके लिए. धन्यवाद.
बहुत ही उत्कृष्ट संकलन अनीता जी !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा संकलन
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