सादर अभिवादन।
शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है
शीर्षक व काव्यांश आ.दिगंबर नासवा जी की रचना 'यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ' से-
लहरों का सुलग उठना, मुश्किल भी नहीं इतना,ये ख़त जो अगर तेरे, सागर में बहा दूँ तो. कुछ फूल मुहब्बत के, मुमकिन है के खिल जायें, यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ तो.
आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
--
दोहे "छोटी-छोटी बात पर, होना नहीं अधीर"
छल-फरेब का जगत में, बिछा हुआ है जाल।
पानी वाले दूध में, आता खूब उबाल।५।
--
छोटी-छोटी बात पर, होना नहीं अधीर।
हरदम रहना चाहिए, धीर और गम्भीर।६।
मैं रंग मुहब्बत का, थोड़ा सा लगा दूँ तो.ये मांग तेरी जाना, तारों से सज़ा दूँ तो. तुम इश्क़ की गलियों से, निकलोगे भला कैसे,मैं दिल में अगर सोए, अरमान जगा दूँ तो.--
मुझे कोहरा पसंद नहीं,
क्योंकि उसमें दिखती है
मुझे मेरी आकृति,
जिससे मैं डरता हूँ,
जो सवाल बहुत पूछती है.
--
गाय के संबोधन से
नवाजी जाती हैं
कुछ स्त्रियाँ
कहने/सुनने वालों के
लिए तो वे बन जाती है
गुणगान का पात्र भी
पड़ा अकाल धरनि क्लेशितहै शुष्क पड़ीकाले नभ पर उजली सेमलमोती सरिस जड़ीरीता दीपक हाथ,दौड़ मैं नभ तक जाती हूँ सघन रैन घटती उँजियारा कर न पाती ।।जीना कोई हंसी खेल नहीं
आपको जीना चाहिये बड़ी संजीदगी के साथ
मसलन किसी गिलहरी की तरह -
मेरा मतलब है जीवन से सुदूर और ऊपर की किसी
चीज़ की तलाश किये बग़ैर,
मेरा मतलब है ज़िन्दा रहना आपका मुकम्मिल काम होना चाहिये.उम्र थोड़ी बढ़ी होश खोने लगे,द्वेष के बीज हृदय में बोने लगे।ताक पर जा रखे जो मिले संस्कार,भूले माता-पिता भूले अपनों का प्यार।सहस्त्र करों से समेट मोती,अट्टहास कर रहा माली।प्राची हो गई अब उदास,उल्टे पांव निज निवास।।जाने कैसे अम्मा ने उसे विजेंदर के साथ तब देख लिया जब गाँव के मर्द रात में फगुआ गाने के लिए जुटे थे और वह चाय देने के बहाने वहाँ जाकर उसे मिली थी। ढोलक और झाल के कानफोड़ू संगीत पर झूमते फगुहारों के बीच से अंधेरे में सरककर विजेंदर ने उसे बाहों में भर लिया था। वह दुर्लभ सुख उसकी नसों में झुरझुरी बनकर दौड़ने लगा था तभी अम्मा जैसे आसमान से प्रकट हो गयी। उसका झोंटा पकड़कर खींचते हुए घर के भीतर ले आयी। फिर रात भर मार खाती रही नन्हकी। बेंत का झाड़ू शायद उतना चोट नहीं दे पाया जितना अम्मा की जहर उगलती जबान ने बेध दिया था।• मेथी को बारीक काटकर अच्छे से धो लीजिए। किसी बर्तन में आटा लीजिए। इसमें कटी हुई मेथी, बेसन, नमक, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, हींग, अजवाइन, कटी हुई हरी मिर्च और जीरा डाल दीजिए। सभी सामग्री को अच्छे से मिला लीजिए। • दही डाल कर सभी सामग्री को एक बार और अच्छे से मिला लीजिए। अब आवश्यकतानुसार थोड़ा थोड़ा पानी डाल कर नरम आटा (चित्र 1) गूंथ लीजिए। आटे को 10-15 मिनट ढक कर रखिए। आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
पड़ा अकाल धरनि क्लेशित
है शुष्क पड़ी
काले नभ पर उजली सेमल
मोती सरिस जड़ी
रीता दीपक हाथ,
दौड़ मैं नभ तक जाती
हूँ सघन रैन घटती
उँजियारा कर न पाती ।।
जीना कोई हंसी खेल नहीं
आपको जीना चाहिये बड़ी संजीदगी के साथ
मसलन किसी गिलहरी की तरह -
मेरा मतलब है जीवन से सुदूर और ऊपर की किसी
चीज़ की तलाश किये बग़ैर,
मेरा मतलब है ज़िन्दा रहना आपका मुकम्मिल काम होना चाहिये.
आपको जीना चाहिये बड़ी संजीदगी के साथ
मसलन किसी गिलहरी की तरह -
मेरा मतलब है जीवन से सुदूर और ऊपर की किसी
चीज़ की तलाश किये बग़ैर,
मेरा मतलब है ज़िन्दा रहना आपका मुकम्मिल काम होना चाहिये.
उम्र थोड़ी बढ़ी होश खोने लगे,
द्वेष के बीज हृदय में बोने लगे।
ताक पर जा रखे जो मिले संस्कार,
भूले माता-पिता भूले अपनों का प्यार।
सहस्त्र करों से समेट मोती,
अट्टहास कर रहा माली।
प्राची हो गई अब उदास,
उल्टे पांव निज निवास।।
जाने कैसे अम्मा ने उसे विजेंदर के साथ तब देख लिया जब गाँव के मर्द रात में फगुआ गाने के लिए जुटे थे और वह चाय देने के बहाने वहाँ जाकर उसे मिली थी। ढोलक और झाल के कानफोड़ू संगीत पर झूमते फगुहारों के बीच से अंधेरे में सरककर विजेंदर ने उसे बाहों में भर लिया था। वह दुर्लभ सुख उसकी नसों में झुरझुरी बनकर दौड़ने लगा था तभी अम्मा जैसे आसमान से प्रकट हो गयी। उसका झोंटा पकड़कर खींचते हुए घर के भीतर ले आयी। फिर रात भर मार खाती रही नन्हकी। बेंत का झाड़ू शायद उतना चोट नहीं दे पाया जितना अम्मा की जहर उगलती जबान ने बेध दिया था।
• मेथी को बारीक काटकर अच्छे से धो लीजिए। किसी बर्तन में आटा लीजिए। इसमें कटी हुई मेथी, बेसन, नमक, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, हींग, अजवाइन, कटी हुई हरी मिर्च और जीरा डाल दीजिए। सभी सामग्री को अच्छे से मिला लीजिए।
• दही डाल कर सभी सामग्री को एक बार और अच्छे से मिला लीजिए। अब आवश्यकतानुसार थोड़ा थोड़ा पानी डाल कर नरम आटा (चित्र 1) गूंथ लीजिए। आटे को 10-15 मिनट ढक कर रखिए।
आज का सफ़र यहीं तक
@अनीता सैनी 'दीप्ति'
बहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंआपका आभार अनीता सैनी 'दीप्ति' जी!
विस्तृत चर्चा आज की …
जवाब देंहटाएंमेरी ग़ज़ल को शीर्षक का स्थान देने के लिए बहुत आभार आपका …
सराहनीय प्रस्तुति।बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा.आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति। मेरी रचना को संकलन में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार अनीता जी।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने लिए बहुत बहुत धन्यवाद, अनिता दी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआप सभी को हार्दिक बधाई
सभी रचनाएँ पठनीय और सराहनीय । मेरी रचना को शामिल करने बहुत बहुत आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा संकलन
जवाब देंहटाएं