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शनिवार, फ़रवरी 19, 2022

'मान बढ़े सज्जन संगति से'(चर्चा अंक-4345)

सादर अभिवादन। 

शनिवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है

शीर्षक व काव्यांश आ.आदरणीय मीना भारद्वाज जी के सृजन 'सृजन' से-

मित्र बढ़े ऐतबार संग और नेह सोच से सोच मिलाए ।

दर्प बढ़े ‘मैं‘ के बढ़ने संग वैर वाणी में कटुता आए ।

क्रोध बढ़े संयम खोने से उम्र योग से योग मिलाए ।

मान बढ़े सज्जन संगति से ज्ञान बुद्धि से लग्न लगाए ।


आइए अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

--

गीत "आशा पर उपकार टिका है"

आशाएँ श्रमदान कराती,
पत्थर को भगवान बनाती,
आशा पर उपकार टिका है।
आशा पर ही प्यार टिका है।।
महानगर में बसंत 
सड़कों के किनारे लगे
बबूर, कीकर के वृक्षों  के काले पत्तों के बीच 
अपुष्ट खिले बेगनबेलिया से 
झाँकता है और 
घुल जाता है झूलते अमलताश की यादों से जुड़ी 
गांवों की स्मृतियों में ।  

मित्र बढ़े ऐतबार संग और नेह सोच से सोच मिलाए ।

दर्प बढ़े ‘मैं‘ के बढ़ने संग वैर वाणी में कटुता आए ।

क्रोध बढ़े संयम खोने से उम्र योग से योग मिलाए ।

मान बढ़े सज्जन संगति से ज्ञान बुद्धि से लग्न लगाए ।

--

ओढ़ प्रीत की चादर ढूँढूँ,तेरा रूप सलोना।
ब्याह रचा कर कबसे बैठी,चाहूँ मन का गौना ।।
चेतन मन निष्प्राण हुआ अब,माँगे एक किनारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।

बचपन की याद का घरौंदा 

अंतर्मन में एक बसा है, 

कृतज्ञता का भाव जगा तो 

हर अलगाव यूँही बहा है ! 

--

गुस्ताख़ी सूरज की

ह्रदय में जिसके मायूसी, चेहरे पर उदासी, 
कुम्हलाये मुख पर जो बरबस लायेगा हंसी,
उसे मिलेगी खुशियों की करामाती पिटारी !
आज यहां कल वहां है डेरा,
कोउ नहिं जाने  कहां सबेरा।
कभी     मातु     की    गोद,
कभी  किलकारी  आंगन में।
राजा ने कहा :
अच्छे लोकतंत्र के लिए
मज़बूत विपक्ष चाहिए
राजा के अनुयायी भी
यही कहते घूमते हैं :
विपक्ष कमज़ोर है
और वे भी जो
जेल में दो कैदी एक साथ एक बहुत गंभीर बिमारी से बाहर आया ही था कमजोरी और खिन्नता से भरा, दूसरा भी हर रोज कुछ शारीरिक पीड़ा से गुजर रहा था।दोनों साथ रह कर अपना समय एक दूसरे के सहारे बीता रहे थे, दोनों को एक-दूसरे की आदत हो गई गंभीर कैदी हर रोज प्रार्थना करता दूसरे कैदी की सजा उसकी सजा से पहले खत्म न हो...दूसरे को सश्रम कारावास के दौरान दूसरे कैदियों के साथ काम करते हुए अचानक कोरोना
-- 

आज का सफ़र यहीं तक 

@अनीता सैनी 'दीप्ति'

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन चर्चा प्रस्तुति|
    आपका आभार आदरणीया अनीता सैनी 'दीप्ति' जी|

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर लिंक्स। सभी रचनाएँ शानदार।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर सराहनीय चर्चा प्रस्तुति । बहुत बहुत शुभकामनाएं अनीता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रशंसनीय प्रस्तुति। अनीता जी आभार आप का।

    जवाब देंहटाएं
  5. आज की चर्चा का शीर्षक व काव्यांश “सृजन” से लेने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ! सदैव की भांति अति उत्तम सूत्र चयन ।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!खूबसूरत प्रस्तुति प्रिय अनीता ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर चयन। सभी रचनाएं उत्कृष्ट।

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहद सुंदर चर्चा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. अनीता जी, कुछ धारदार, कुछ रुई के फाहे सी. चर्चा रंग-रंग की रचनाओं की.
    बीच में सूरज भी टांकने के लिए सविनय आभार. शीर्षक से यह दोहा भी याद आया ..
    जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग.
    चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटत रहत भुजंग.

    और यह भी...

    कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन.
    जैसी संगति बैठिए, तैसो ही फल दीन.

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर चर्चा रही आज की,मीना जी का सुघड़ काव्यांश प्रस्तुति की शोभा को चार चांद लगा रहा है।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह ‌

    जवाब देंहटाएं

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